Monday, 2 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 73

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७३ : मोह माया इच्छा अधार्मिक गृहणी !

#रमैनी : ७३

चली जात देखी एक नारी * तर गागरि ऊपर पनिहारी 
चली जात वह बाटहि बाटा * सोवनहार के ऊपर खाटा 
जाडन मरे सफेदी सौरी * खसम न चीन्हे धरणी भई बौरी 
सांझ सकार दिया लै बारे * खसमहि छाडि संबरे लगवारे 
वाही के रस निस दिन राँची * पिया सो बात कहै नहि सांची 
सोवत छांडि चली पिय अपना * ई दुख अबधौ कहै केहि सना 

#साखी : 

अपनी जांघ उघरि के, अपनी कही न जाय /
की चित जाने आपना, की मेरो जन गाय // ७३ //

#शब्द_अर्थ : 

नारी = मनोवृत्ती ! पनिहारी = पानी भरने वाली ! बाटा = रस्ता ! खाटा = खाट ! सफेदी सौरी = सफेद चादर ! खसम = पति , चेतन राम , परमात्मा! घरणी = गृहिणी , पत्नी , मनोवृति ! बौरी = पगली ! संबेरे = स्मरण ! लगवारे = जार , अन्य प्रियकर ! रस = मोह , माया ! रांची = आसक्त ! पिया = निज स्वरूप , आत्मरूप , चेतन राम! अपनी जांघ = अपनी इज्जत ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो माया मोह वो इच्छा है जो कुछ भी करा सकते है , वह क्या सही क्या गलत नहीं देखती ना धर्म देखती है ना उसके परिणाम की उसे चिंता होती है वह एक कुलच्छिनी की तरह होता है अपने पति चेतन राम , परमात्मा , अपने अंतरमन की भी नही सुनती और पति की परवाह किए बिना अपने प्रियकार मोह तृष्णा के साथ दिन रात बिताती है और कभी भी उसके साथ रमने में तयार रहती है !

ऐसी स्त्री , गृहणी किसी को मिल जाए तो उसकी क्या हालत होगी पूछते है कबीर साहेब और कहते है इस मायाके के कारनामे बताकर कौन अपनी इज़्ज़त की धज्जिया उड़ायेगा ! 

 कबीर साहेब कहते है अगर इस नारी से बचना है तो आत्मबोध की जागृति से ही बचा जा सकता है और वो मार्ग मूलभारतीय हिन्दूधर्म का शील सदाचार का मार्ग है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

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