#रमैनी : ७९
बढ़वत बढ़ी घटावत छोटी * परखत खरी परखावत खोटी
केतिक कहों कहां लौं कहों * औरो कहाें पड़े जो सही
कहे बिना मोहि रहा न जाई * बिरही ले ले कुकुर खाई
#साखी :
खाते खाते युग गया, बहुरि न चेतहु आय /
कहहि कबीर पुकारि के, ये जीव अचेतहि जाय // ७९ //
#शब्द_अर्थ :
खरी = सत्य ! खोटी = असत्य ! बिरही = विरही, बिछुड़ा ! कूकुर = कुत्ता , मन ! खाते खाते = जीते जीते , अनेक जन्म !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है इस जिंदगी में हम इच्छा वासना लोभ की पूर्ति करते करते दिन रात खपते है , कस्ट करते रहते है पर इच्छा तृष्णा ये है की कभी मन भरता ही नही , हम उसके पीछे दौड़ते रहते है ऐसे कितने ही जन्म और युग बीत जाते है पर हम चेतते नही !
कबीर साहेब कहते हैं भाईयो मैं तुम्हे एक बहुत ही बड़ी बात बताता हूं और वो है इच्छा बढ़ाओ तो वो बढ़ते ही रहती है और कम करो तो कम होती है छोड़ दो तो छूट जाती है ! बस मन में चेतन राम के स्वरूप को जानने की देरी है !
कबीर साहेब कहते हैं राम स्वरूप को जानना आसान है बस शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो तो इच्छा तृष्णा मोह कम कम होते होते छूट जाते है और आत्म स्वरूप चेतन राम के दर्शन होते है भवसागर छूट जाता है ! भवसागर के दुखो से मुक्ति मिलती है , मोक्ष निर्वाण प्राप्त होता है ! कबीर साहेब कहते है भाई मैं चेताने का काम करता हूं , वो सत्यधर्म का रास्ता बताता हूं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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