#शब्द : ६
संतो अचरज एक भौ भारी, पुत्र धइल महतारी : १
पिता के संग भई बावरी, कन्या रहल कुंवारी : २
खसमहि छाडि ससुर संग गौनी, सो किन लेहु बिचारी : ३
भाई के संग ससुर गौनी, सासुहि सावत दीन्हा : ४
ननद भौज परपंच रचो है, मोर नाम कहि लीन्हा : ५
समधी के संग नहीं आई, सहज भई घरबारी : ६
कहहीं कबीर सुनो हो संतो, पुरुष जन्म भौ नारी : ७
#शब्द_अर्थ :
पुत्र = जीव ! महतारी = माया ! पिता = जीव ! कन्या = माया ! खसम = जीव ! ससुर = श्वसुर , अहंकार! भाई = अज्ञान ! सासुर = मायावी जगत ! सासु = संशय ! सावत = सौत ! ननद भौज = राग द्वेष ! परपंच = प्रपंच ! समधी = सम विचार ! धी = बुद्धि , प्रज्ञा !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाइयों इस संसार के कोई रिश्ते नाते नही बचे है जिसके साथ माया मोह संगत नहीं करती ! हर रिश्ता चाहे वो बाप हो बेटा हो भाई हो मां बहन सास ससुर हो समधी हो सब के साथ मोहिनी बनकर लूटती है सब को मोहित कर अपने बस में करती है गुलाम करती है और शोषण करती है आपस में लड़ाती है , बैर उत्पन्न कराती है और सुख के बदले जीवन नर्क और अशांति दुख दर्द से भर देती है !
माया के साथी मोह अहंकार लालच तृष्णा भी टूट पड़ते है और कोई रिश्ते नाते नही बचते है !
जीव मालिक है , माया का पिता है , जीव ने ही माया को जन्म दिया है पर वो अपने सगे बाप जीव तक को संसार में छलने से नहीं छोड़ती तो और की बात ही क्या ?
माया का स्वरूप जन्म और चरित्र बताने के बाद कबीर साहेब मानव जीव को माया से सावधान रहने सतर्क रहने की बात करते है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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