Thursday, 12 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 83 : Nam Swadeshi , Kam Videshi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ८३  :  नाम स्वदेशी काम विदेशी !

#रमैनी : ८३

क्षत्री करे क्षत्रिया धर्मा * सवाई वाके बाढ़े कर्मा 
जिन अवधु गुरु ज्ञान लखाया * ताकर मन ताहि ले धावा 
क्षत्री सो जो कुटुम सो जूझई * पाँची मेटि एक कै बुझई 
जीव मारी जीव प्रतिपारे *  देखत जन्म आपनो हारे 
हाले करे निशाने घाऊ * जूझी परे तहाँ मन्मथ राऊ 

#साखी : 

मन्मथ मरै न जीवै, जीवहि मरण न होय /
शून्य सनेही राम बिनु, चले अपन पौ खोय // ८३ // 

#शब्द_अर्थ : 

क्षत्रिया धर्मा = युद्ध , शिकार , संहार !  अवधू = संन्यासी , त्यागी !  कुटुम = कुटूम्ब , पांच इंद्रिय का शरीर ! एक = जीव ! हाले = अति जलद ! घाऊ = घाव , चोट !  मन्मथ = मन के विकार  ! अपन पौ  = स्वभाव , अपनापण , अहंकार !  राऊ = मालिक , राजा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडितोंने अपने स्वार्थ के लिए और अपने सब से ऊंचे स्थान के लिए वर्ण जाति उचनीच विषमता अस्पृश्यता आदि अमानवीय विकृत व्यवस्था बनाई ! यहाँ के मूलनिवासी राजकुल वर्ग , गणराज प्रतिनिधि वर्ग को अलगकर मूलभारतीय की एकता तोड़ दी !  इस वर्ग को विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग क्षत्रिय यानी क्षेत्र के लोग , मूलभारतीय लोग तो कहते रहे , स्थानीय लोग बताते रहे , खातेदार खत्री ,  भूमिपुत्र , भूमिहार बताते रहे पर अपने से नीचे का वर्ग बनाया उसे जनेऊ , उपनयन होमहवन , हव्य में हिस्सा , प्राणी हत्या , लड़ने का अधिकार , राज चलाने का अधिकार माना पर वैदिक पूजा और धर्माचार्य बनाने पर रोक लगा दी , वो कभी ब्राह्मण , ब्राह्मण धर्माचार्य नही बन सकते यह स्पष्ट किया ! 

मूलभारतीय समाज का गणराज्य के प्रतिनिधि वर्ग आज की तरह ही अपना मूल समतावादी सनातन पुरातन सिंधू हिंदू संस्कृति के पूर्व से चला आ रहा मूलभारतीय लोकधर्म हिन्दूधर्म की शिक्षा भूलकर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंके पंडित के भुलावे में फस कर अपने को स्थाई दूसरा वर्ण  स्वीकार किया ! और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्रह्मिनोकी गुलामी अधिपत्य मान लिया मूलभारतीय हिन्दू धर्म की  एकता व्यवस्था तहसनहस कर वर्ण जाति की बंद चौकट मान्य की ! 

क्षत्रिय को यही बताया गया की यही उनका उत्तम धर्म है ब्रह्मिनोकी गुलामी और ब्राह्मण वैदिक धर्म की रक्षा यही उनका उत्तम धर्म है जो उनको आगे कीर्ति और स्वर्ग का उत्तराधिकारी बनाता है !  जैसे विदेशी पंडितों ने बताया सिखाया यहां के गणराज्य के प्रतिनिधि ने माना , गणराज्य समाप्त हुवे , राजशाही , एकाधिकार , हुकुमशाही आई ! 

दूसरा वर्ण मान्य कर क्षत्रिय ये भी भूल गया की वो अपने सगे रिश्तेदार व्यापारी , किसान , कामगार का भी शोषण करता रहा और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को हानी पहुचकार विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की सेवा चाकरी करता रहा ! वो कोल्हू का बैल बन बैठा , उसके अंदर का चेतन राम  भूल गया , अपना मानव जीवन उद्देश भूल कर स्वर्ग जाने के बजाय जल्दबाजी में वो नर्कवासी हो गया ! अपना ही पुण्यशील , अमृतवृक्ष मूलभारतीय हिन्दूधर्म के डाली पर विषवृक्ष की डाल का पोषण रक्षण करता रहा ! 

वर्ण जाति स्थापित करने के लिए मूलभारतीय  कुलाचार , कुल , कुलदेवता की अड़चन को दूर करने के लिए स्थाई गोत्र और उसके लिए गोत्र के ब्राह्मण पंडे पुजारी के कुछ पंडे के नाम आगे किए गए जैसे वशिष्ठ आदि   , जन्म कुंडली , मुहूर्त , नाम आदि का अवडंबर किया गया उसमे वर्ग , वर्ण गोत्र गुसाए गए पूरे मूलभारतीय हिन्दू समाज की इनके इस मकड़ी जाल फसाकर इनका खून विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी पीते रहे , इनके खून पसीने की कमाई पर विदेशों यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी पलते रहे !

क्षत्रिय अपना घर कुटुम्ब भूल गया , विदेशी को अपना समझा , उसकी सेवा चाकरी जी हुजूरी में लग गया आगे विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडितोंने  राज प्रतिनिधि के बाद का व्यापारी वर्ग को इसी प्रकार तोड़ कर वैश्य वर्ण बना दिया ! जो गणराज्य , लोकशाही के समर्थक थे उनको समाज , शहर से भगाकर अछूत बनाया गया , बताया गया ! बहुसंख्य किसान कामगार सैनिक , खेत मजदूर , छोटे कारागीर पर वही काम करते रहने की जाती वर्ण व्यवस्था ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य त्रि वर्ण के लोगोंने अपने हित और एकाधिकार की रक्षा के लिए थोपा !  वर्ण जाति अस्पृश्यता विषमता भेदाभेद का अधर्म विकृति हिंदुस्तान पर छा गई ! देश टूट गया समाज टूट गया , मूलभारतीय हिन्दूधर्म टूट गया केवल नाम बाकी रहा , मसाला विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म का भरा गया , पुरानी बोटल में पुराने सनातन हिंदूधर्म के नाम से नया जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता का विष उसमे भर कर अमृत अमृत कहकर लोगो को पिलाया गया ! 

धर्म की हानि हुवी तब महावीर , बुद्ध , कबीर नानक और कितने ही अन्य सद्धर्मी लोग विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के खिलाफ उठ खड़े हुवे , उनमें बौद्ध धर्म के मौर्य कुल नाग वंश के राजा राम और कृष्ण भी थे , मूलभारतीय हिन्दूधर्म के भगवान शिव ने और उसके बाद उसके अन्य धर्मगुरु जननायक शिव , शंकर,  महादेव आदि असंख्य ज्ञानी लोगों बताया भाई मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग अलग है ! कबिर साहेब यही बात यहां बता रहे है !

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

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