Sunday, 1 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 72 : Jiv ki nirmiti Ichha padi jiv par bhari !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७२ : जीव की निर्मित कल्पित इच्छा जीव पर पड़ी भारी !

#रमैनी : ७२

नारी एक संसारहि आई * माय न वाके बापहि जाई 
गोड़ न मूंड न प्राण अधारा * जामें भभरि रहा संसारा 
दिना सात ले उनकी सही * बुद अद बुद 
अचरज का कही
वाहिक बन्दन करे सब कोई * बुद अदबुद अचरज बड़ होई 

#साखी : 

मस बिलाई एक संग, कहु कैसे रहि जाय /
अचरज एक देखो हो संतों, हस्ती सिंहहि खाय // ७२ //

#शब्द_अर्थ :

नारी = माया, इच्छा , कल्पना ! बापहि = जीव ! जाई = पैदा हुवा ! भभरि = भयभीत , भ्रम में पड़ना ! दिना सात = सातो दिन ! सही = सत्य ! बुद = ज्ञानी ! अदबुद = अग्यानी ! मूस = जीव , चूहा ! बिलाई = माया , इच्छा ! हस्ती = मन माया ! सिंह = जीव !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाइयों सुनो मैं एक अचरज करने वाली बात आपको बताता हूं ! संसार में जीव पैदा हुवा उस जीव ने मन विलास से माया मोह उत्पन्न किया ! जीव मन के मोह माया इच्छा की विविध कल्पना का पिता है ! पर यही इच्छा मोह माया अपने पीटा जैव पर भारी पड़ गई , बेकाबू हो गई ! क्या सामान्य लोग , ज्ञानी अज्ञानी सब इस माया मोह के मन विलास और कल्पना के पूर्ति के लिए दिन रात सातों दिन भाग दौड़ कर रहें है और इच्छा ये है , कल्पना ये है की वो आगे आगे ही दौड़ती रहती है जिसकी गति बड़ी अचरज करने वाली है ! संसार में बिल्ली चूहे को खाती हूवि देखा जाता हैं सिंग हाथी पर चढ़ जात हैं पर यहां उल्टा हो रहा है चूहा बिल्ली पर हावी है उसी प्रकार जीव जो वास्तव में इच्छा माया मोह का पिता है अपने इस जन्म दाता पर हावी हो गई है और उसका शोषण कर रही है ! 

कबीर साहेब कहते है विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म और दूसरे धर्म सतही बात करते है कोई अंदर के बात नहीं बताते है ! कोई नही बताते कैसे जीव को मोह माया इच्छा तृष्णा के शोषण से मुक्त करे और जीव को सुख शांति मुक्ति का मार्ग बताए ! हम वो सदधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म का मार्ग बताते है जो शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय सरोकार पर आधारित है ! 

#धर्मविक्रमादित_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

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