Wednesday, 4 September 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 74 : Shiddhi Vikar Chhidne se Paani Agni se nahi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ७४ : शुद्धि विकार छोड़ने से ही , पानी अग्नि से नही !

#रमैनी : ७४

तहिया होते गुप्त अस्थूल न काया * न ताके सोग ताकि पै माया
कंवल पत्र तरंग एक माहीं * संगहिं रहै लिप्त पै नहीं 
आस ओस अंड मा रहई * अगणित अंड न कोई कहई 
निराधार आधार लै जानी * राम नाम ले उचरी बानी
धर्म कहै सब पानी अहई * जाती के मन पानी अहई 
ढोर पतंग सरे घरियारा * तेहि पानी सब करैं अचारा 
फंद छोडि जो बाहर होई * बहुरि पंथ नहिं जेहै सोई 

#साखी : 

भरम का बांधा यह जग, कोई न करै विचार / 
एक हरि की भक्ति जाने बिना, भौ बूडि मुवा संसार // ७४ //

#शब्द_अर्थ : 

तहिया = गर्भ के प्रारंभ काल में ! ताके = जीव के ! पै = परंतु ! माया = वासना! आस = वासना ! ओस = माता कर रज ! अंड = पिता का वीर्य ! निराधार = शुद्ध चेतन राम ! उचरी = उच्चारण करना ! धर्म = मूलभारतीय हिन्दूधर्म ! पानी = जल ! ढोर = पशु ! पतंग = पक्षी, कीड़े ! घरियारा = मगरमच्छ , घड़ियाल ! फंद = बंधन ! जोहै = देखना ! हरि = चेतन राम ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है चेतन राम कण कण में सर्वत्र व्याप्त विद्यमान है वो पिता के वीर्य और माता के अंड में भी है और उसके निर्मित के पहले मां और पिता रूप में भी है ! स्थूल अस्थूल सभी अवस्था में चेतन राम है ! अगणित अंड पिंड के रूप में वह है ! जो वासना माता पिता में रहती है वही वासना इच्छा माया मोह अंड पिंड में भी रहती है उसकी उस समय स्वतंत्र अहमियत नहीं रहती पर गर्भ में माता का पिंड और पिता का अंड वीर्य मिल जाता है तो दोनो का एक अलग अस्तित्व और जाणिव और वासना काम करने लगती है ! 

जिस प्रकार कमल पत्र तालाब में रहते हुवे भी जल के तरंग से अलिप्त रहता है वैसे ही चेतन राम निर्विकार निर्लेप भाव से संसार में रहता है जीव ने संसार में मोह माया इच्छा के बंधन में स्वयं को बंधन में रखा है वो चाहे तो अपने को बंधन मुक्त कर निर्लेप निर्गुण निराकार अविनाशी चेतन राम के स्व स्वरुप का पा सकता है पर माया वासना का बंधन ये है की कभी छूटता नही , कोई बिरला ही इसमें सफल होकर स्वरूप चेतन राम रूप को प्राप्त होता है जैसे परमात्मा कबीर !  

कबीर साहेब कहते है मुक्ति केवल वासना , माया , इच्छा , मोह, तृष्णा , चाहत को छोड़ कर ही मिल सकती है शील सदाचार के मार्ग पर चलकर मोह माया वासना को पहचाना जा सकता है !

कबीर साहेब कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म में आग्नि , होम हवन , पानी तर्पण अर्पण शुद्धि पाप मुक्ति आदि में इनका उल्लेख किया है जो सब बेकार है न अग्नी पाप जला सकती है न पानी पाप धो सकते है ! जिस पानी में किट पतंग जनावर मगर रह कर मर जाते है वो पानी कैसे पाप धो डालेगा ? कबीर साहेब ब्राह्मणधर्म को अंधश्रद्धा और अज्ञान , विकृति अधर्म का पिटारा मानते है इसे वो धर्म नही अधर्म मानते है और मूलभारतीय हिन्दूधर्म से अलग ! 

मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग अलग है यही बात धर्मात्मा कबीर यहा लोगोंको समझाते हैं ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
कल्याण , #अखण्डहिंदुस्तान

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