Saturday, 30 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 78 : Ab Ham Jaaniho !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७८ : अब हम जानिया हो ! 

#शब्द : ७८ 

अब हम जानिया हो, हरि बाजी को खेल: १
डंक बजाय देखाय तमाशा, बहुरी लेत सकेल : २
हरि बाजी सुर नर मुनि जहंडे, माया चाटक लाया : ३
घर में डारि सकल भरमाया, वृद्यय ज्ञान न आया : ४
बाजी झूठ बाजीगर साँचा, साधुन की मति ऐसी : ५
कहहिं कबीर जिन जैसी समुझी, ताकी गति भइ तैसी : ६

#शब्द_अर्थ : 

हरिबाजी = ईश्वरीय धोखा , झूठ ! खेल = तमाशा ! डंक = डंका, नगाड़ा ! बजाय = बजाना , शोर करना ! बहुरी = बार बार ! जहंड़ें = ठगे गये ! चटाक : झूठी आशा ! घर में डारि = घर में चोरी ! बाजी = खेल, तमाशा ! बाजीगर = ईश्वर , ईश्वर के नाम से ! मति = समझ , ज्ञान ! गति = स्थिति , आगे बढ़ना ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाइयों अब मैने ईश्वर के नाम पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग जो धोखा कर रहे है उसे जान लिया है ! 

ईश्वर उसके अवतार , प्राण प्रतिष्ठा , पत्थर की मूर्तियां , उसकी पूजा सब झूठ है ! विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग शंख बजाकर , मंदिर में घंटी बजवाकर नगाड़े पिटवाकर , वैदिक होम हवन के तमाशे कर और बेकार के वैदिक मंत्र ज़ोर जोर से बोल कर आम जनता को भ्रमित कर रहे है जिस को भूल कर कुछ राजे रजवाड़े , धनिक व्यापारी सेठी उनके बहकावे में आ रह है , यहां तक की खुद को पढ़े लिखे लोग ज्ञानी साधु संत भी इनके तमाशे से भ्रमित हो कर ईश्वर , ईश्वर अवतार के बेहूदे , वाहियात तमाशे को सच मान रहे है ! इन विदेशी ब्राह्मणों का फंदा है झूठ बार बार बोला , सर चढ़ कर बोलो तो लोग झूठ को भी एक दिन सच मान लेते है ! 

कबीर साहेब कहते हैं भाईयो जैसा सोचोगे वैसे जीवन में गति मिलेगी , उसी रास्ते पर चल पडोंगे ! झूठ के ईश्वर और उसके अवतार , मूर्ति में विश्वास करोगे तो वैसे तुम्हारा अंधविश्वास होगा ! इस ईश्वर के अंधविश्वास से बाहर आवो ! ईश्वर मूर्ति में नहीं , मूर्ति पूजा में नहीं , अवतार और प्राण प्रतिष्ठा में नहीं , होम हवन और वैदिक मंत्र में नहीं वो है खुद तुम्हारे पास , तुम्हारे अंतकरण में ! तुम्ही राम हो , चेतन तत्व राम हो हरि हो शिव हो ! तुमसे अलग कोई खुदा नहीं ! खुदी को कर बुलंद इतना की खुदा तुमसे खुद पूछे बता तेरी मर्जी क्या है , वही तुम्हारी गति होगी ! सद्गति चाहो तो सद्गति मिलेगी दुर्गति चाहो तो दुर्गति होगी ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखण्डहिंदुस्थान, शिवसृष्टि

Friday, 29 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 77 : Aapan Aash Kijai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७७ : आपन आश कीजै बहुतेरा ! 

#शब्द : ७७

आपन आश कीजै बहुतेरा, काहु न मर्म पावल हरि केरा : १
इन्द्री कहाँ करे विश्रामा, सो कहाँ गये जो कहत होते रामा : २
सो कहाँ गये जो होत सयाना, होय मृतक वह पदहि समाना : ३
रामानन्द रामरस माते, कहहिं कबीर हम कहि कहि थाके :  ४

#शब्द_अर्थ : 

बहुतेरा = बहुत प्रकार से ! विश्रामा = शांति ! सयाना = बुद्धिमान ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो अपने ऊपर की आस्था , स्व पर भरोसा करो , सब से जादा खुद पर भरोसा करो उसे कम न आकों क्यू की तुम खुद हरि हो , चेतन राम हो ! अमरत्व चेतन राम से खुद तुम बने हो ! फिर अपने आप को क्यू किसी से कम , शुद्र , अस्पृश्य गुलाम, अछूत समझे ? 

जैसे सब का शरीर है इंद्रिय है वैसा ही शरीर इंद्रिय तुम्हारे पास ही है पुरुषत्व , पुरुषार्थ करो , तुम किसी के गुलाम नहीं ! केवल राम नाम रटने से कुछ नहीं होगा ! केवल हरि हरि कहने से कुछ नहीं होगा , केवल शिव शिव कहने से कुछ नहीं होगा ! इंद्रिय शक्ति को काम में लगावो , अपनी गुलामी मिटाने के लिये काम में लगावो !  आज ही तुम तुम्हारी गुलामी दुर्दशा मिटा सकते हो क्यू की तुम अभी जिंदा हो , कर सकते हो ! मृत व्यक्ति चाहे जितना होशियार , ताकतवर रहा हो बहुत पढ़ाई की हो बहुत सारी डिग्रियां हासिल की हो सब मरने के बाद बेकार हो जाती है , मृत डॉक्टर किसी का इलाज नहीं कर सकता चाहे वो कितना ही तज्ञ , होशियार, नामचीन रहा हो ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के कुछ लोगोने राम भक्ति यानी राम नाम रटाऊ उद्योग शुरू किया है वे दशरथ पुत्र राम राजा का नाम लेकर भक्ति करने की बात करते हैं,  किसी ने कृष्ण भक्ति का पंथ शुरू किया , तो किसीने शिव भक्ति का शिव पंथ शूरू किया ! वेदांत , भागवत , वैष्णव, वारकरी अनेक नाम से नाम भक्ति के मार्ग में लगाकर ये रामानंदी पंथी  विदेशी ब्राह्मण तुमको अस्पृश्यता , विषमता, छुआछूत , विषमता जातिवाद वर्णवाद भेदाभेद  उच्चनीच आदि अमानविय विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म से लड़ने से रोकने की चाल है , अन्य कुछ नहीं ! 

कबीर साहेब झूठे रामानंदी , योगी , नाम भक्ति की पोलखोल कर कहते है , राम चेतन राम तुम खुद हो ! शक्ति राम तुम खुद हो , आत्माराम तुम खुद हो ! खुदपर भरोसा करो , इंद्रिय शक्ति , विचारशक्ति पर भरोसा करो और पुरुषार्थ करो यही बात मै कह कह कर थक गया हूँ !  विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग तुम्हारे लिये लड़ने वाले नहीं क्यू की वही शोषण करते हो , तुम मानव हो राम तुम में हि राम है तुम किसी से कम नहीं ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Thursday, 28 November 2024

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Shabd : 76 Aapan Pou Aapuhi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७६ : आपन पौ आपुहि बिसरयो ! 

#शब्द : ७६ 

आपन पौ आपुहि बिसरयो : १
जैसे श्वान काँच मंदिर में, भरमित भूसि मरयो  : २
ज्यों केहरि बपु निरखि कूप जल, प्रतिमा देखि परयो : ३
वैसे ही गज फटिक शिला में, दशनन आनि अरयो : ४
मर्कट मुठि स्वाद नहिं बिहुरे, घर घर रटत  फिरयो : ५
कहहिं कबीर ललनी के सुवना, तोहि कवने पकरयो : ६

#शब्द_अर्थ : 

आपन पौ = अपना स्वरूप ! भूसि = भौंकना ! केहरि = सिंह ! बपु = देह ! प्रतिमा = परछाई ! गज = हाथी ! फ़टिक शिला = स्पटिक पत्थर ! दशनन = दांत  ! अरियो = टक्कर मारना ! मर्कट = बंदर ! नहिं बिहुरे = बंधन से नही छूटा !  ललनी = बास की चरखी ! सुवना = शुक  पंछी ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो आप ही अपने स्वरूप को भूल गये हो !  आप ही अपने भीतर के चेतन राम स्वरूप को भूल गये हो ! 

जैसे किसी कुत्ते को काँच घर यानी शीशे के घर में बंद कर दो तो वह शीशे में अपनी ही प्रतिमा को दूसरा कुत्ता समझकर भौंकते भौंकते मर जाता है पर लड़ना भौंकना नही छोड़ता जैसे जंगल का सिंह अपनी ही प्रतिमा कुवे के पानी में देख कर उस प्रतिमा को दूसरा शेर अपना शत्रु और प्रतिबंद्धि मान कर कुवे में छलांग लगा कर पानी में डूब कर मर जाता है , जैसे हाथी अपनी प्रतिमा स्पटिक  पत्थर में को दूसरा हाथी  समझकर सर मार मार कर लहू लोहान होकर अंत में मर जाता है जैसे बंदर पूरे जंगल के पेड़ के फल खाते रहने के बाद भी कुछ चनों के लिये सींग दाने के लिये बंदर पकड़ने वाले मदारी के चने के लिये अपना हाथ फंदे में डालकर पकड़ा जाता है और जिंदगी भर जम्भुरा बन कर मदारी के इशारे पर करतब नाच दिखाया मर जाता है , जैसे सुवा पंछी , तोता कुछ हरि मिर्ची के लालच में लकड़ी के पिंजरे में कैद हो जाता है और पंख तोड़ दिये जाते है ताकि उड़ ना सके और पूरी जिंदगी एक गुलाम और कैदी जैसे जी कर मर जाता है वैसा ही हाल दुर्दशा मानव की हो रही है ! 

मूलभारतीय लोग अपने मूलभारतीय हिन्दूधर्म को भूलकर पराये धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिमधर्म में फस गये है , वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार के अधर्म विकृति को अपनाकर , धर्मांतर कर उसके गुलामी लाचारी को स्वीकार कर अपना स्वरूप निर्भय मानवता , आजादी , समता खो गये है ! 

कबीर साहेब अपनी आजादी स्वतंत्रता सत्व को कभी ना भूलो का संदेश यहाँ देते है , लालच मोह माया के फंदे में ना अटको अपना देश धर्म समाज संस्कृति को पहचानो अपना अस्तित्व , मूलभारतीय हिंदूधर्म, मूलभारतीयपन ना खोवे यही सिख कबीर साहेब यहां देते हैं ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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Wednesday, 27 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 75 : Aso Bhram Birguchan !;

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७५ : ऐसो भरम बिगुर्चन भारी ! 

#शब्द : ७५ 

एसो भरम बिगुर्चन भारी : १
वेद कितेब दीन औ दोजख, को पुरुष को नारी : २
माटी का घट साज बनाया, नादे बिंद समाना : ३
घट बिनसे क्या नाम धरहुगे, अहमक खोज भुलाना : ४
एकै त्वचा हाड़ मल मूत्रा, एक रुधिर एक गुदा : ५
एक बुंद से सृष्टि रची है, को ब्राह्मण को शुद्रा : ६
रजोगुण ब्रह्मा तमोगुण शंकर, सतोगुणी हरि होई : ७
कहहिं कबीर राम रमि रहिये, हिन्दू तुरुक न कोई : ८

#शब्द_अर्थ : 

भरम = भ्रम ! बिगुर्चन = उलझन ! दीन = धर्म , मजहब, पंथ ! दोजख = नरक ! घट = शरीर ! साज = शरीर की बनावट ! नादे = प्राण ! बिंद = वीर्य ! अहमक = अग्यानी ! गुदा = मांस ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते भाई कुछ लोगोने अनावश्यक भेदभाव फैलाए रखा है , वेद और कुरान ये हमारे ईश्वरीय धर्म ग्रंथ है और हमारा ही धर्म ग्रंथ श्रेष्ठ है कहने वाले विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण और तुर्की मुस्लिमधर्म धर्म के मुल्ला मौलवी दोनो यहाँ के मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज को कमजोर कर राज करना चाहते हैं इस लिऐ धर्म के नाम पर नर्क आदि का डर दिखाकर स्त्री पुरुष की समानता नहीं मानते जब की ईश्वर ने स्त्री पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया है , दोनों एक जैसे ही प्राण और वीर्य से बने है , स्त्री पुरुष विषमता बेकार है ! 

कबीर साहेब जिस प्रकार स्त्री पुरुष विषमता भेदभाव बेकार है कहते है उसी प्रकार मानव मानव में रज तम सत गुण पर आधारित विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म का वर्ण जाति विभाजन और चार वर्ण , हजारो जाति उप जाती और उनमें भेदभाव उचनीच , विषमता अस्पृश्यता बेकार है मानते है और न कोई जन्म से या कर्म से ब्राह्मण है ना कोई गुण और जन्म से क्षुद्र अस्पृश्य मानते है ! सब मूर्खता है ! लोगों को ठगने का धंधा है ! यह काई धर्म नही अधर्म और विकृति है ! 

कबीर साहेब गुण पर मानव विभाजन और जन्म पर मानव विभाजन भेदाभेद दोनो गलत मानते है और त्याज्य मानते हैं ! कबीर साहेब कहते है एक चेतन तत्व राम से एक जैसे ही सारे मानव की निर्मिती हुई है त्वचा , हाड़ मांस प्राण वीर्य रुधिर सब एक जैसे है , वर्ण जाति वेवस्था ईश्वर निर्मित नहीं , स्त्री पुरुष भेदभाव विषमता ईश्वर निर्मित नहीं दिनों वेद , मनुस्मृति , कुरान आदि द्वारा निर्मित है और ये दोनों धर्म ग्रंथ मानव निर्मित है ! अंततः ना कोई तुरुक मुस्लिम है ना यूरेशियन पंडित ब्राह्मण है न वो श्रेष्ठ है न मूलभारतीय कनिष्ठ है , शुद्र और अस्पृश्य होने का सवाल ही नहीं उठता ! मानव मानव एक समान यही मूलभारतीय हिन्दूधर्म है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
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#कल्याण, #अखण्डहिंदुस्थान , #शिवसृष्टि

Tuesday, 26 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 74 : Eso Yogiya Bad Karmi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७४ : ऐसो योगिया बदकर्मी ! 

#शब्द : ७४

ऐसो भोगिया बदकर्मी, जाके गमन अकाश न धरणी : १
हाथ न वाके पाव न वाके, रूप न वाके रेखा : २
बिना हाट हटवाई लावै, करै बयाई लेखा : ३
कर्म न वाके धर्म न वाके, योग न वाके युक्ति : ४
सींगी पात्र किछउ नहिं वाके, काहेक माँगे भुक्ति : ५
मैं तोहिं जाना तैं मोहिं जाना, मैं तोहिं माहिं समाना : ६
उत्पत्ति परलय एकहु न होते, तब कहु कौन ब्रह्म को ध्याना : ७
योगी आन एक ठाढ कियो है, राम रहा भरपूरी : ८
औषध मूल किछउ नहिं वाके, राम सजीवन मूरी : ९
नटवट बाजा पेखनी पेखे, बाजीगर की बाजी : १०
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, भई सो राज बिराजी : ११

#शब्द_अर्थ :

बदकर्मी = गलत काम करने वाला ! गमन = घूमना , यात्रा ! रेखा = चिन्ह ! हाट = बाजार ! हटवाई = बाजारी ! बयाई = तौलाई , दलाली ! लेखा = हिसाब ! युक्ति = उपाय ! सींगी = हिरन के सींग का बाजा ! पात्र = बर्तन ! भुक्ति = भोजन , भिक्षा ! आन = अन्य ! पेखनी = मुद्रा , आसन ! बाजी = तमाशा ! राज = व्यवस्था ! बिराजी = अव्यवस्था , भ्रष्ट ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो योग के नाम पर लुट मची है ! शरीर के अंग की करामात , विभिन्न आसन लगाकर लोगोंको ये योगी बेवकूफ बना रहे है और आध्यात्म , धर्म विचार में खुद को ऊंचे स्थान पर पहुंचे लोग बता रहे है जब की योग केवल एक शरीर व्यायाम की कला है और अभ्यास से उसमें निपुणता प्राप्त होती है ! ये योगी अपना खेल आसन के तरीके बताकर अपना उदारनिरवाह करते है भिक्षा , भोजन मांगते है ध्यान आकर्षण के लिए हिरन के सींग का बाजा बजाते है और लागोंको कुछ हट धर्मीता के शारीरिक आसन बताते है जैसे बैठकर ख़ुद को एक हाथ से हवा में ऊपर उठाना आदि , जटा रख कर खुद को कभी सौ दो सौ साल के उम्र के बताते है कुछ जड़ी बूटी , शिलाजीत बेचते है बाजार बाजार जा कर बस यही खेल तमाशा दिखाने और बेचने का काम करते है ! 

कबीर साहेब कहते हैं ये योगी पूरे ढोंगी है धर्म आध्यात्म कुछ नही जानते ! न उनके आहार विहार में काई तथ्य है ! ये भटके हुए लोग है ! माया मोह इच्छा में फंसे हुए ये लोग विलासित जीवन जीना चाहते है पैसा कमाना यही उनका मकसद है बाकी सब दिखावा है वे राजपाट के लालची है , अव्यवस्था फैलाना लोगोंको डरना इनका धर्म और काम है ! 

योगी क्या जाने राम ! राम तो संजीवन है ! कोई जड़ी बूटी , मूली नहीं जो योग और भोग से प्राप्त हो ! राम नीति , का नाम है शील, सदाचार, सत्य का नाम है उल्टे सीधे करतब आसन हट योग का खेल तमाशा नहीं ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखण्डहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Monday, 25 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 73 : Firahu Ka Fule Fule Fulee !

#पवित_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७३ : फिरहु का फूले फूले फूले ! 

#शब्द : ७३

फिरहु का फूले फूले फूले : १
जब दश मास ऊधर्व मुख होते, सो दिन काहेक भूले : २
ज्यों माखी सहते नहिं बिहुरे, सोचि सोचि धन कीन्हा : ३
मुये पीछे लेहु लेहु करें सब, भूत रहनि कस दीन्हा : ४
देहरि लौं बर नारी संग है, आगे संग सुहेला : ५
मृतक थान लौं संग खटोला, फिर पुनि हंस अकेला : ६ 
जारे देह भस्म होय जाई, गाड़े माटी खाई : ७
काँचे कुम्भ उदक ज्यों भरिया, तन की इहै बडाई : ८
राम न रमसि मोह के माते, परेहु काल वश कुवा : ९
कहहिं कबीर नर आप बंधायो, ज्यों लालनी भ्रम सूवा : १०

#शब्द_अर्थ : 

सहते = कष्ट सहनकर ! बिहुरे = छोड़ना ! भूत = बीता ! धन = संपत्ति ! देहरि = दरवाजे की चौखट ! सुहेला = प्रियजन ! मृतकथान = श्मशान घाट ! खटोला = खटिया , अर्थी ! हंस = जीव ! कुंभ = घड़ा ! उदक = पानी ! रमसि = रमना, निवास करना ! काल = अज्ञान ! कुवा = कूप ! ललनी = बॉस की नली जिसमें छोटी चरखी का सुग्गा फसा होता है ! शुक = शुक पंछी ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर बार बार मानव को उसके शरीर की नश्वरता बताते हुवे कहते है भाइयों क्यों इस नश्वर शरीर पर इतराते हो , घमंड करते हो ? जरा याद करों वो नौ मास जब तुम माँ के उदर में उल्टे लटके पड़े थे ! तब तुम्हारा काई बस नही चलता था ! चेतन राम की इच्छा और इजाजत के बैगर पत्ता तक नहीं हिलाता , तुम किस खेत की मूली हो ? 

किसी मक्खी चूस की तरह तुमने जीवन भर धन दौलत संपत्ति बटोरने में लगा दिया , ये मेरा ये मेरा कहते रहे और अंत समय में केवल एक अर्थी पर तुम्हारी बिदाई हुई ! कोई साथ में नहीं आया न धन संपत्ति न प्रियजन , सब यही छूट गया ! अनेक लोगोके यही हाल तुमने देखे होंगे ! उनके शव को जलाते या मिट्टी में दफनाते देखे होंगे तब भी तुम नहीं जागते हो ! 

कबीर साहेब कहते हैं अरे भाई यह शरीर काँच के बर्तन जैसा है , तड़कते , टूटते देर नहीं लगती ! इस तन की बढ़ाई और शेखी बेकार है ! होश में आवो , चेतन तत्व परमात्मा राम को याद करो वो तुमसे क्या चाहता है ओर तुम क्या कर रहे हो जरा समझो ! वो राम चाहता है तुम गर्व ना करो , प्रेम से रहो , भाईचारे से रहो , झूठ ना बोले , चोरी ना करो , लालच ना करो , विषमता शोषण ना करो ! तुम सब उल्टा कर रहे हो धर्म के जगह अधर्म का पालन कर रहे हो , संस्कृति के बदले विकृति अपना रहे वो ! नीति , न्याय, शील सदाचार के बदले विकृत अधम पर धर्म अपना कर अपने भाई बहनों का शोषण कर रहे हो ! यह राम का काम नहीं रावण का काम है ! उसे छोड़ो , भाई तुम भ्रम से बाहर आवो ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
₹कल्याण, #अखण्डहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Sunday, 24 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 72 : Chalhu ka Tedho Tedho Tedho !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७२ : चलहु का टेढो टेढ़ों टेढ़ों !

#शब्द : ७२ 

चलहु का टेढो टेढ़ों टेढ़ों : १
दशहूँ द्वार नरक भरि बूडे, तू गन्दी को बेड़ों : २
फूटे नैन वृदय नहिं सूझे, मति एकौ नहिं जानी : ३
काम क्रोध तृष्णा के माते, बूडि मुये बिनु पानी : ४
जो जारे तन भस्म होय धुरि, गाड़े किरमिटी खाई : ५
सीकर श्वान काग का भोजन, तन की इहै बडाई : ६
चेति न देखु मुग्ध नर बौरे, तोहि ते काल न दूरी : ७
कोटिन यतन करो यह तन की, अन्त अवस्था धुरी : ८
बालू के घरवा में बैठे, चेतत नहिं अयाना : ९
कहहिं कबीर एक राम भजे बिनु, बूडे बहुत सयाना : १० 

#शब्द_अर्थ : 

दशहु द्वार : शरीर में दस छिद्र !; गन्दी = गंदगी ! बेड़ों = जहाज ! किरमिट = कीड़े ! सीकर = सियार ! मुग्ध = मोह ग्रस्त ! अयाना = बोला , अडानी , अज्ञानी ! सयाना = होशियार , ज्ञानी ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाई अहंकार मत करो , किस बात का घमंड ? जिस का तुम घमंड अहंकार कर रहे हो वो तन वो शरीर जिस की सुंदरता में तुम मोहग्रस्त हो मदमस्त हो वो काई वैसा ही रहने वाला नहीं है बालपन , तरुण , वृद्धा अवस्था , रोग आदि से गुजर कर एक दिन ये प्रिय शरीर तुम्हे बोझ लगाने लगेगा ! इस शरीर को ठीक से देखो नाक कान आंख बेंबी मुख और मूत्र मार्ग गुदा से गंदगी बाहर आकर बहती रहती है ! अंदर गंदगी भरी पड़ी है ! इस का तुम्हे घमंड हो गया ? कितने मूर्ख हो ! अरे भाई इस तन की काई बढ़ाई ना करो , तन से राम हट जाए तो निर्जीव तन को लोग तुरंत अपने से दूर करते है , उसे कौवे गिद्ध सियार कुत्ते नोच नोच कर खाते है मिट्टी में दफनावो तो मिट्टी के कीड़े चट कर जाते है , मिट्टी मिट्टी बना देती है , जलवो तो लकड़ी के धुवां बन कर धुवां बन कर उड़ जाती है और मुट्ठी भर राख बन जाती है ! ऐसे तन की तुम बढ़ाई करते हो ! सुंदर दिखाने वाला ये तन एक दिन झूर्रिया दाग धब्बे से भर जाता है और खुद ही खुद को पहचान नहीं पाते हो उस तन को सोने चांदी हीरे मोती से सजावा तब भी एक दिन विद्रूप होगा ही ऐसे तन के मोहजाल में फंसे हो उसकी इच्छा तृष्णा में फंसे हो , भाई जागो ! 

कबीर साहेब इस शरीर को बालू का घर कहते है, सीकर श्वान का भोजन कहते है , कीड़े का खाना कहते है , नर्क का द्वार कहते है , धुवां और राख कहते है और सभी ज्ञानी अग्यानी को चेताते हुवे कहते है शरीर का माया मोह आसक्ती बेकार है , जितना जल्दी त्यागो उतना अच्छा क्यू की वह नाशिवंत है , मिटने वाला है ! अमर अजर अविनाशी केवल एक तत्व है चेतन राम ! निर्गुण निराकार अविनाशी परमतत्व परमात्मा चेतन राम ! उसकी भक्ति करो जब तक वो शरीर में है वो जीव है वरना निर्जीव ! उस सजीव सदाशिव को पहचानो उसकी बात मानो भ्रम में ना पड़ो ! उसी में मन की स्थिरता , सुख और शांति है ! नैतिक शील सदाचार के आचरण से राम के दर्शन होते है अन्य कोई मार्ग नही ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण, #अखण्डहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Saturday, 23 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 71 : Chaatuk Kahaan Pukaaro !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७१ : चातुक कहाँ पुकारो दूरी ! 

#शब्द : ७१

चातुक कहाँ पुकारो दूरी, सो जल जगत रहा भरपूरी : १
जेहि जल नाद बिंद को भेदा, षट कर्म सहित उपनेउ वेदा : २ 
जेहि जल जीव शीव को बासा, सो जल धरणी अमर परकाशा : ३
जेहि जल उपजल सकल शरीरा, सो जल भेद न जानु कबीरा : ४

#शब्द_अर्थ : 

चातुक = चातक पक्षी , आशा! जल = पानी , तृप्ति ! नाद = आवाज, शब्द! बिंद = बूंद , वीर्य ! षट कर्म = ब्राह्मण कर्म , कार्य , कर्मकांड ! जीव = सामान्य मानव ! शीव = कल्याणकारी ! अमर = अविनाशी ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो चातक पक्षी तो आप जानते हो पीयू पीयू की आवाज करता है लोग सोचते है वह केवल स्वस्ति नक्षत्र में बारिश का आकाश से बरसा पानी ही पीता है और उस नक्षत्र में बारिश नहीं हुई तो साल भर प्यासा ही रहता है हालांकि ये सच नहीं पानी पानी में कोई भेद नहीं हर नक्षत्र का पानी एक समान होता है और प्यास बुझाता है ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण लोगोने पानी को लेकर अनेक भ्रामक धारणाएं बनाई और फैलाए रखी है , मकसद है तीरथ , गंगा स्नान , पवित्र जल गंगा जल आदि की भ्रामक धारणाएं फैलाकर लोगोंसे कर्मकांड कराना पैसा दान दक्षिणा सोना चांदी जमीन जायजाद सामान्य लोगोंसे एटना ! इस कर्मकांड का जाल वेद , वैदिक होम हवन , उपवेद , मनुस्मृति में शुद्धिकरण पाप मोचन आदि के नाम पर किया जाता है यहाँ तक कि मृत व्यक्ति के मुख में गंगा जल डालकर उसे स्वर्ग मिलेगा कहना भी एक ढकोसला है ! 

कबीर साहेब कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से बचो, वो तुम्हे कंगाल बना देंगे ! पानी पानी में कोई भेद नहीं ये शरीर भी पानी से ही बना है , परमात्मा , चेतन राम ने पानी एक जैसा बनाया है , मिलावट करो , रंगीन करो तो वैसा हो जायेगा जैसा मीठा, खारा , हरा लाल पर चेतन राम ने पानी शुद्ध रूप में बनाया उसमें कोई भेदाभेद नहीं वहां कोई अस्पृश्यता विषमता छुआछूत नहीं ! 

ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंकी चाल है पानी को छुआछूत से जोड़ना , शुद्धिकरण से जोड़ना , पाप मुक्ति से जोड़ना ! पानी का स्वरूप कल्याणकारी है एक जैसे गुणकारी है वह किसीसे कोई भेदाभेद नहीं करता जैसे परमात्मा चेतन राम ! 

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Friday, 22 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 70 : Jas Maans Pashu Ki Tas Maans Nar Ki !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७० : जस मास पशु की तस मास नर की ! 

#शब्द : ७०

जस मास पशु की तस मास नर की, रुधिर रुधिर एक सारा जी : १
पशु की मास भख़ें सब कोई, नरहिं न भखें सियारा जी : २
ब्रह्म कुलाल मेदनी भइया, उपजी बिनशि कित गइया जी : ३
मास मछरिय तै पै खइया, जो खेतन में बोइया जी : ४
माटी के करि देवी देवा, काटि काटि जिव देइया जी : ५
जो तोहरा है साँचा देवा, खेत चरत क्यों न लेइया जी : ६
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, राम नाम नित लेइया जी : ७
जो कछु कियहु जिभ्या के स्वारथ, बदला पराया देइया जी : ८

#शब्द_अर्थ : 

एक सारा = एक समान ! ब्रह्म = ब्राह्मण ! क़ुलाल = कुल के बच्चे ! मेदनी = पृथ्वी ! भइया = हुआ ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो जैसा मांस पशु का होता है गाय , घोड़े का होता है वैसा ही मांस मानव का होता है ! जानवर मार कर उनका मास हिस्र पशु शेर , कुत्ते भी खा लेते है पर भाई शेर भी सियार का मांस नहीं खाता , वो भी परहेज करता है उसके लिये क्या अच्छा है और क्या बुरा ! 

खुद को विदेशी वैदिक यूरेशियन ब्राह्मणधर्म के ब्राह्मण गोत्र के लोग और ऊंचे कुल के लोग जनेऊ पहनने वाले ढोंगी लोग अपने होम हवन में सैकड़ों गाय बैल घोड़े की बलि देते रहे है , खून की नदिया बहाते रहे है , मांस मछली खाते रहे है ये मूर्ख ये नही जानते क्या सब का खून एक जैसा होता है , सब को काटने मारने से दर्द होता है, क्या ये ये होम हवन में बलि दी गई गाय घोड़े खेत में उगते है ? जो तुम उसे पैदा कर होम हवन में बलि देते हो ? पूछते है कबीर साहेब 

कबीर साहेब कहते हैं ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी ब्राह्मण ने माटी के पाथर के अगणित देवी देवता बनाए है , अवतार बनाया है और उन फालतू देवी देवता को खुश करने के नाम पर ये यजमानोसे गाय बैल घोड़े आदि की हत्या कराते है और असभ्य असंस्कृत वैदिक ब्राह्मणधर्म के गंदगी का परिचय देते है ! मास मछली , मदिरा, सोम रस मंदाकिनी ये सब इनके प्रिय है , जो देव और धर्म का नाम लेकर जम खाते और व्यभिचार करते रहे ! ये जीभ के स्वाद के लिए मास मदिरा का सेवन करते रहे पर भाईयो बुरा करेगा तो उसका भी बुरा होगा यह निसर्ग नियम है , दूसरे का गला काटोगे तो एक दिन तुम्हारा भी ग़ला कटेगा यह सृष्टि का न्याय है ! इस लिये प्राणी हत्या जीव हत्या ना करो , भोजन के क्या भोज्य क्या अभोज्य समझो , जीभ के चोंचले ना करो , जैसा करोगे वैसा भरोगे ! 

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Thursday, 21 November 2024

Jantri Jantri Anupam Baje !

#पवित_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६९ : जंत्री जंत्र अनुपम बाजे ! 

#शब्द : ६९

जंत्री जंत्र अनुपम बाजे, वाके अष्ट गगन मुख गाजे : १
तू ही बाजे तू ही गाजे, तूहि लिये कर डोले : २
एक शब्द मो राग छतीसों, अनहद बानी बोले : ३
मुख कै नाल श्रवण कै तुम्बा, सतगुरू साज बनाया : ४
जिभ्या के तार नाशिका चरई, माया का मोम लगाया : ५
गगन मंडल में भया उजियारा, उल्टा फेर लगाया : ६
कहहिं कबीर जन भये विवेकी, जिन जंत्री सो मन लाया : ७

#शब्द_अर्थ : 

जंत्री = यंत्री , चेतन राम, बाजा बजाने वाला ! जंत्र = यंत्र , वीणा, बाजा ! अनुपम = विलक्षण ! अष्ट = आठ , कमल ! गगन = आकाश , खोपड़ी ! मुख : द्वार ! गाजे = गर्जना करना , आवाज करना ! अनहद : अन सुनाई आवाज ! नाल = डंडी ! तुम्बा = लुकी का खाली गोल ! चरई = खूंटी! माया = चमड़ा ! गगन मंडल = खोपड़ी, आकाश ! जंत्री = चेतन राम, परमात्मा चेतन राम स्वरूप कबीर ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो अपना शरीर एक वाद्य यंत्र वीणा जैसा है ! इसमें मुख एक डंडी जैसा है , कान दोनों तरफ लगे तुम्बे है , जीभ तार है नाक खूंटी है और तुम्बे पर चाम अर्थात चमड़ा चढ़ाया है और उसे माया के मोम से पकड़ रखा है ! साज का आवाज ऊपर यानी खोपड़ी में जा कर फिर उल्टा फेर लेकर मुख तक नाक के कम ज्यादा मात्रा अनुपात से छत्तीस वर्ण से अनेक शब्द से ये वीणा निर्माण करने वाला परमात्मा चेतन राम अपनी अनसुनी अनहद , अनाघात वाणी से पूरा मानव शरीर सम्मोहित कर उसे नानाविधि कर्म करता है ! 

कबीर साहेब कहते भाई यह मानव शरीर तो बड़ा आलौकिक विलक्षण अनुपम है पर इसमें ही ना रमो उसे बनाने वाले चेतन राम परमपिता परमेश्वर परमात्मा को पहचानो ! यह वीणा रूपी बाजा बड़ा अच्छा है पर अगर उसमें गलत गीत बजवोगे तो पछताओगे ! वीणा यानी इस शरीर से परमात्मा के गुण गांवों ना की अपना अहंकार सुनावो ! 

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Wednesday, 20 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 68 : Jo Charakha Jari Jay !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६८ : जो चरखा जरि जाय बढईया न मरै  ! 

#शब्द : ६८

जो चरखा जरि जाय बढ़ेंया न मरे : १
मैं कातों सूत हजार,चरखुला जिन जरे : २
बाबा मोर बियाह कराव,अच्छा बरहि तकाय : ३
जों लों अच्छा बर ना मिलै, तों लौं तुमहि बिहाय : ४
प्राथमें नगर पहुंचते, परिगौ सोग संताप : ५
एक अचम्भव हम देखा, जो बिटिया ब्याहिल बाप : ६
समधी के घर लमधी आये, आये बहु के भाय : ७
गोडे दूल्हा दै दै, चरखा दियो दृढ़ाय: ८
देव लोक मरि जाएंगे, एक न मरे बढ़ाय : ९
यह मनरंजन कारने , चरखा दियो दृढ़ाय : १०
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, चरखा लखे जो कोय : ११
जो यह चरखा लखि परे, ताको अवागवन न होय : १२

#शब्द_अर्थ : 

चरखा = शरीर , भवचक्र !  बढ़ेंया = मन! सूत हजार = हजारों कर्म ! बाबा = गुरु ! बरहि = वर , दूल्हा ! नगर = अंतकरण !  बिटिया = पुत्री, अविद्या ! बाप = पिता , जीव !  गोडे = पैर , चलना ! चूल्हा = भट्टी  अज्ञान की आग !  बढ़ाय = आगे ले जाना ! मनरंजन = विषय लालसा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है इस संसार में जीव बार बार जन्म लेता है क्यू की उसका संसार के प्रति मोह माया इच्छा कभी भरती नहीं , ये शरीर छूट जाता है तो वो दूसरा शरीर धारण करता है और फिर वही मोह माया इच्छा की पूर्ति में लग जाता है इस प्रकार भवचक्र भवसागर में जीव फसा हुआ है ! 

जीव का पिता मन है , जीव अपनी इच्छा मोह माया के पूर्ति के लिये मन को सदैव काम में लगाये रखता है वो मन से अधिक अधिक की मांग करता है और मन को शरीर के इच्छा पूर्ति के लिये गुलाम बना देता है जब की मन मालिक होना चाहिए जीव ने उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए पर यहां उल्टा ही हो रहा है जीव जो शरीर में बसता है उस शरीर के सारे अवयव जो भाईबंध , रिश्तेदार है सब को इच्छा पूर्ति के काम में लगा देता है पैर उसी तरफ आगे बढ़ते है जहां जीव चाहता है , दारू के अड्डे, चोरी के घर , वैश्या के मकान , जुवा घर  सब प्यारे लगते है !  अच्छे लोग , ज्ञानी , राजे भी इस माया मोह से छुटे नहीं वो भी इसी भव चक्र में फंसे है !

मन के इस मनोरंजन का कोई अंत नहीं और जीव का भवचक्र तब तक मुक्तता नहीं जब तक प्रज्ञा बोध अर्थात चेतन राम अपने स्वरूप को पहचानते नहीं और जीव तृष्णा मोह माया इच्छा अधार्मिक त्याग कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन कर यह जीवन और कर्म नहीं सुधारता , तब तक वो बार बार जन्म मृत्यु के फेरे में कर्म फल भोगता रहेगा , यही वह चरखा है जिसका वर्णन कबीर साहेब हम को समझाने के लिए कर रहे हैं ! 

चरखा में कर्म का हजारों सूत कातना छोड़ो , पहले बुरे कर्म करना छोड़ो तो एक कदम आगे बढ़ोगे और अंततः सारे कर्म फल भी गिर जायेंगे और जीव भव सागर से मुक्त होगा ! वही सच्चा सुख है शांति है ! वही परमात्मा कबीर पद चेतन राम है ! 

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Tuesday, 19 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 67 : Jo Pai Bij Rup Bhagwan !;

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६७ : जो पै बीज रूप भगवान ! 

#शब्द : ६७

जो पै बीज रूप भगवान, तो पण्डित का पूछो आन : १
कहाँ मन कहाँ बुधि कहाँ हंकार, सत रज तम गुण तीन प्रकार : २
विष अमृत फल फले अनेका, बहुधा वेद कहै तरबे का : ३
कहहिं कबीर तैं मैं क्या जान, को धौं छूटल को अरुझान : ४

#शब्द_अर्थ : 

आन = अन्य , दूसरा ! बहुधा = बहुत प्रकार , विविध !  धौं  = भला !  छूटल = मुक्त !  अरुझान = बंधा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पण्डित पाण्डे पुजारी ब्राह्मण सभी वैदिक धर्म गुरु शंकराचार्य , काशी के वैदिक पंडित से पूछते है तुम्हारा वास्तविक वैदिक ब्राह्मणधर्म क्या है ?  

तुम कहते हो सुवर की नाक से विष्णु पैदा हुआ , विष्णु के पेट से कमल पर बैठा चार मुख वाला पके बाल , सफेद दाढ़ी बाल वाला ब्रह्मा पैदा हुआ , तुम कहते हो ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मण पैदा किया , भुजा से क्षत्रिय , पेट से वैश्य और पाव से शुद्र पैदा किया , इस प्रकार चार वर्ण धर्म का तुम पुरस्कार करते हो और उसे वर्णधर्म कहते हो ! फिर तुमने त्रिगुण और त्रि देव बताते हो और सत रज तम इन त्रि गुण से मानव में भेदाभेद , अस्पृश्यता विषमता छुआछूत और अनेक जाती भी, वर्ण संकर से उपजाति , जाती बाह्य अस्पृश्य का समर्थन करते हो और उसलिए विषमता , अस्पृश्यता उचनिच , भेदाभेद का समर्थन करने वाली मनुस्मृति का दण्ड विधान बताकर चार वर्णधर्म को असंख्य जातीधर्म में परावर्तित कर अपरिवर्तनीय जातिधर्म , वर्णधर्म का पुरस्कार करते हो ! 

फिर तुम तुम्हारा विदेशी यूरेशियन वैदिक का तुम्हारे देश यूरेशिया में चलित वैदिक होम हवन में बलि प्रथा में गाय घोड़े जैसे गोमेध , अश्वमेध का समर्थन करते हुवे होम अग्नि अग्नि से साक्षात विस शरीर ब्रह्मा , रुद्र इंद्र सोम वरुण विष्णु आदि ब्राह्मण वर्ण जनेऊ धारी देवता प्रगट होते है कहते हो और सोम रस , दारू , घोड़े के साथ लैंगिक वेभीचार का समर्थन करते हो , होम हवन के बलि दिए गाय के अंतड़ी का जनेऊ बनाकर पहनते हो और उसे अग्नि पवित  अर्थात जनेऊ कहते हो ! 

तुम अब होम हवन से साक्षात प्रगट होते देवी देवता नहीं आते देख और वैदिक मंत्र में कोई दम नहीं जान कर उन त्रि देव का समूह बनकर प्रमुख देवता और उप करोड़ो देवता बताते वो और उनके मिट्टी , पत्थर के पुतले वैदिक मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा की बात करते हो , करोड़ों  देवी देवता उसके अवतार , उप अवतार , स्वामी बाबा की बात करते हो , साथ साथ तुम्हने वैदिक होम हवन की पूजा पद्धति बनाई रखी है ताकि वर्ण जाति उचनीच विषमता अस्पृश्यता आदि अमानवीय विचार कायम रहे ! 

तुम एक ब्रह्म की बात करते हो और द्वैत अद्वैत की बात करते हो हिंदुस्तानी मूलभारतीय हिन्दूधर्म मानवधर्म के मानवता शील सदाचार भाईचारा समता अहिंसा की बात भी अब करने लगे हो  , कर्म सिद्धांत , कर्म फल , कार्य कारण भाव सिद्धांत आदि का विचार अमानवीय वैदिक ब्राह्मणधर्म में मिलाकर और सांख्य , वेदांत आदि विचार भी वर्ण जाती वाद के साथ मिलाकर ब्राह्मणवाद का समर्थन करते हो वर्ण जाति को मजबूती देने के लिए गोत्र , पाप पुण्य, पुनर्जन्म , अवतार, पत्थर की मूर्ति पूजा आदि का विचार धर्म मे मिलाकर उसपर अपना वैदिक  धर्म का उल्लू सिधा करना चाहते हो ! 

आखिर तुम्हारे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का मूल सिद्धांत एक ही है भारतीय समाज को बेवकूफ बनाकर उनसे दान दक्षिणा लेते रहना , असंख्य देवी देवता की पूजा कराते रहना , जाती वर्ण व्यवस्था बनाए रखना विषमता अस्पृश्यता उचनिच भेदाभेद छुआछूत आदि अमानवीय विचार बनाए रखना ! 

धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की पोल खोलने के बाद अपने आदिम सनातन पुरातन सिंधु हिन्दू संस्कृति के पूर्व काल से चला आ रहा मूलभारतीय हिन्दूधर्म का मानवता वादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा का मानवीय धर्म का समर्थन करने की बात करते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म त्याज्य मानते है ! 

मन चंगा तो कटोरी में गंगा !

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Monday, 18 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 66 : Yogiya Ke Nagar Baso Mat Koi !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६६ : योगिया के नगर बसो मत कोई ! 

#शब्द : ६६ 

योगिया के नगर बसो मत कोई, जो रे बसे सो योगिया होई : १
ये योगिया के उलटा ज्ञान, काला चोला नहिं वाके म्यान: २
प्रगट सो कंथा गुप्ता धारी, तामें मूल सजीवन भारी : ३
वो योगियो की युक्ति जो बुझे, राम रमै तेहि त्रिभुवन सूझे : ४
अमृत बेली छिन छिन पीवै, कहैं कबीर योगी युग युग जीवै : ५  

#शब्द_अर्थ : 

नगर = समाज , संसार ! काला चोला = मैल मन ! म्यान = मध्य भाग , शरीर ! कंथा = गुदड़ी , शरीर ! गुप्ता धारी = गुप्त शस्त्र धारी ! मूल सजीवन = संजीवन , चेतन तत्व, राम ! भारी = महान ! युक्ति = चाल, हाथ चलाखी ! त्रिभुवन = सारा विश्व ! अमृत बेली = अमृत लता , स्वरूप , चेतन तत्व ! युग युग जीवै = मोक्ष निर्वाण प्राप्त ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो आज कल जहां देखो वहां योगी बड़े करामात , खेल दिखाते नजर आ रहे है वे केवल नजर का खेल है जैसे नींबू काटना और लाल रंग का अर्क आना जिसे इनके जैसे बेहूदे योगी खून बताते हुवे लोगोंको डराते है और पैसा एटते है ! ये लोगोंको डरने के लिये काले लिबास भी पहनते है और गुप्ति आदि शस्त्र भी रखते है , न इनका तन साफ है न मन साफ है ! 

ये ढोंगी योगी खुद को बड़े तपस्वी बताते है पर सब झूठ है कुछ हाथ की सफाई और वस्तु के मिश्रण आदि से कुछ करामात , खेल , जादू दिखाने की कला उन्होंने गुरू से सिख ली इसे ही वे ज्ञान , विद्या योग सिद्धि कहते है ! इस पर ही इनका गुरूर है , अहंकार है!

ये योगी कच्चे गुरु के चेले है और माल कामना यही उनका फंडा और धंधा है , इनके जाल में मत फंसो ये काई सच्चा धर्म ज्ञान नहीं बस ऊपरी सतही शो बाजी है ! योग के नाम से उल्लू बनकर पैसा धन कमाना , भौतिक सुख सुविधा हासिल करना यही इनकी मनीषा है , ये धर्म के विपरीत जीवन जीते है झूठ फरेब है, भौतिक सुख यही इनका धर्म है !  

मूलभारतीय हिन्दूधर्म का इनको जरा भी ज्ञान नहीं ना वो शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करते है न इसे चरितार्थ करते है तो इन कच्चे गुरु के चेलोंको अमरत्व , मोक्ष, निर्वाण , कैसे प्राप्त होगा ? ये राह भटके लोग है , हट धर्मीता ही इनका योग है ! इसमें कोई राम नही ! 

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Thursday, 14 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 62 : Mai Mai Dunon Kul Ujiyaari !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६२ : माई मैं दूनों कुल उजियारी !

#शब्द :  ६२

माई मैं दूनों कुल उजियारी : १
सासु ननद पटिया मिलि बंधलो, भसुरहि पारलों गारी : २
जारों माँग मैं तासु नारि की, जिन सरवर रचल धमारी : ३
जना पाँच कोखिया मिलि रखालों, और दुई औ चारी : ४
पार परोसिनि करों कलेवा, संगहि बुधि महतारी : ५
सहजे बपुरे सेज बिछावल, सुतलिऊं मैं पाँव पसारी : ६
आवों न जावों मरों नहिं जीवों, साहेब मेट लगारी : ७
एक नाम मैं निजु कै गहलौं, ते छूटल संसारी : ८
एक नाम मैं बदि कै लेखों, कहहिं कबीर पुकारी : ९

#शब्द_अर्थ : 

माई = चेतन , आत्म ! मै = स्वरूपस्थ राम चेतन तत्व, स्वभाव , वृत्ति !  दुनों कुल = व्यवहार और परमार्थ ! सासु = संशय ! ननद = कुमति ! भसुर = जेठ, अहंकार ! तासु नारि =  अविद्या !  सरवर = सरोवर, अंतकरण ! धमारीं = उपद्रव ! जना पाँच = पाँच इंद्रिय ! कोखिया = कोख , पेट ! दुई = शुभ अशुभ ! चारी = चार अंतकरण वृत्ति !  पार परोसिनि = सर्व साधारण !  कलेवा = भोजन ! सहजे = सहज स्वरूप ! साहेब = सदगुरु , चेतन राम कबीर ! मेट = नष्ट ! लगारी = लगाव ! बदि = बोलना ! लेखों = विचार ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो इस सृष्टि में केवल ही वस्तु अविनाशी है वो है चेतन तत्व राम , निर्गुण निराकार अविनाशी परमतत्व चेतन राम ! 

जीव , मानव शरीर मर्त्य है वह मोह माया इच्छा ग्रस्त है उसके पॉच इंद्रिय  , अंतकरण की वृत्तीया , स्वभाव जरूरतें उसपर अमल करते है और कुमति उसकी दुर्गति करती है , अहंकार उसे दूसरे का तिरस्कार करता है , अविद्या , संशय उसे अधर्म और विकृति असभ्यता बना देते हैं ! 

कबीर साहेब सहज वृत्ति को धर्म कहते है कोई दिखावा नहीं , सत्य मार्ग को सहज मार्ग कहते है ! कबीर साहेब इस संसार को वास्तविक मानते हुवे उसे सत्य , शिव ,  सुंदर मानते है , स्वार्थ नहीं , परमार्थ ही परमार्थ दूसरे का कल्याण सोचो कहते है, कल्याणकारी मानते है ! व्यवहार और परमार्थ दोनों को एक जैसा मानने की सिख देते है ताकि दोनों में धर्म का पालन हो तो मानव जीवन कृतार्थ होगा !  कबीर साहेब कहते हैं मैने जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म मार्ग बताया है उसपर चलो तो अवागमन , जन्म मृत्यु के फेरे से मानव को मुक्ति मिले ! परमेश्वर परमपिता चेतन तत्व राम कबीर के दर्शन हो !  

#धर्मविक्रमादित्य_परमहंस_दौलतराम 
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Wednesday, 13 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 61 : Mariho Re Tan Ka Lai Kariho !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६१ : मरिहो रे तन का लै करिहो ! 

#शब्द : ६१ 

मरिहो रे तन का लै करिहो, प्राण छुटे बाहर लै डरियो : १
काया बिगुर्चन अनबनि भाँति, कोई जारे कोइ गाड़े माटी : २
हिन्दू ले जारे तुरुक ले गाड़े, यहि बिधि अंत दुनो घर छाड़े : ३
कर्म फ़ाँस यम जाल पसारा, जस धीमर मछरी गहि मारा : ४
राम बिना नर होईहैं कैसा, बाट माँझ गोबरौरा जैसा : ५
कहहिं कबीर पाछे पछतैहो, या घर से जब वा घर जैहो : ६

#शब्द_अर्थ : 

बिगुर्चन = बिगुचना , उलझन ! अनबनि = बिगड़ा ! अंत = मरने पर ! गोबरौरा = गोबर का कीड़ा ! या घर = सँसार , नर योनि ! वा घर = पशु योनि , पशु जन्म , नरक ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते भाईयो सुनो हम सब मर्त्य है , अमर कोई नहीं एक चेतन राम के शिवाय ! मृत्यु के बाद इस शरीर का विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग क्या करते है ? विदेशी तुर्की धर्म के लोग क्या करते है ? या तो वे जलाते है या दफनाते है ! मृत्यु के बाद प्राण रहित इस नश्वर शरीर की यही दशा होती है ! फिर इस शरीर का घमंड किस लिऐ , अहंकार किस लिऐ ? 

कबीर साहेब कहते है भाई कर्म फांस और कर्म फल से कोई बच नहीं सकता ! हम सब मछली जैसे है जो धीमर के जाल में आ गया वो मर गया ! इस लिये संसार में जो मृत्यु का जाल बिछा है उसे देख कर चलो , उस से बचो और जीवित रहते अच्छे कर्म करो , यही मौका है सदधर्म का पालन कर जीवन को सफल बनानेका नहीं तो नर्क के कीड़े गोबरेला जैसे तुच्छ वस्तु गोबर मल को जीवन का यथार्थ समझकर इकठ्ठा करते रहोगे और अंत में पछताओगे ! 

कर्म फल के सिद्धांत को पहचानो मूलभारतीय हिन्दूधर्म इसी कर्म फल को आसान भाषा में बताते हुवे कहता है , जिसे करोगे वैसे भरोगे ! वैदिक अधर्म के रास्ते पर चलोगे तो अंततः तुम नर्क कीड़े बनोगे जैसे गोबर का कीड़ा है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Tuesday, 12 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 60 : Maya Moh Mohit Kinha !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६० : माया मोह मोहित किन्हा ! 

#शब्द : ६०

माया मोह मोहित किन्हा, ताते ज्ञान रतन हरि लिन्हा : १
जीवन ऐसी सपना जैसी, जीवन सपन पमाना : २
शब्द एक उपदेश दीन्हों, तैं छाडु परम निधाना : ३
ज्योति देखि पतंग हुलसे, पशु न पेखें आगि : ४ 
काल फाँस नर मुग्ध न चेतहु, कनक कामिनी लागि : ५
शेख सैय्यद कितेब निरखे, सुमृति शास्त्र विचार : ६
सतगुरू के उपदेश बिनु तैं, जानि के जीव पार : ७
कर विचार विकार परिहरि, तरण तारण सोय : ८
कहहिं कबीर भगवंत भजु नर, दुतिया और न कोय : ९

#शब्द_अर्थ : 

निधाना : आधार ! हुलसै = प्रसन्न होना ! पशु = पशु , मूर्ख ! निरखे = देखना , पढ़ना ! तरण = मुक्त ! तारण = तारणहार ! कितेब = मुस्लिम धर्म कुरान ! सुमृति = वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद , मनु स्मृति! भगवंत = सदगुरु , अंततः परमात्मा चेतन राम ! भजु = सेवा भक्त ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो मोह माया इच्छा तृष्णा ने मानव को मोहित कर दिया है , विवेकहीन बना दिया है ! ये जीवन दुर्लभ है पर सुख का सपना बन कर रह गया ! भाइयों इस सपने से मोह माया से कोई सदगुरु और सदधर्म ही तुम्हे पार कर सकता है ! 

सोना चांदी हीरे मोती महल नौकर चाकर विलास की जिंदगी चाहने वाले स्त्री और पद प्रतिष्ठा की हाव में जीवन का असली मकसद भूल कर पाप कर्म में पड़ रहे है , धर्म को छोड़ कर अधर्म अपना रहे है ! चमक दमक देख कर पतंगा उसके पास जाता है और जल जाता है , पशु और मूर्ख ये नहीं जानते माया मोह आग की तरह है उसके संपर्क मे आयेंगे तो ज़ुलस जायेंगे ! 

मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज भी मूढ़ता से अपना सदधर्म छोड़ कर विदेशी तुर्की धर्म के जाल फंस गए है और धर्मांतर कर कर रहे है और इसके पहले वे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वर्ण जाति वादी नरक में फंस गए है ! 

कबीर साहेब कहते भाईयो विचार करो , सदधर्म और अधर्म को पहचानो , संस्कृति , सभ्यता को पहचानो और विकृति असभ्यता को छोड़ दो ! अपने सनातन पुरातन आदिवासी मूलभारतीय सिंधु हिन्दू संस्कृति और मूलभारतीय हिन्दूधर्म को याद करो जो शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक मूलभारतीय हिन्दूधर्म आपको आपके पुरखों ने दिया है वही तारणहार है वही भगवंत का सच्चा धर्म है जो जाती वर्ण व्यवस्था के नरक से निकाल कर फिर से आपको सुख दे सकता है , मूलभारतीय हिन्दूधर्म ही तारणहार है ! 

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Monday, 11 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 59 : Maya Maha Thagini Ham Jaani !;

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५९ : माया महा ठगिनी हम जानी ! 

#शब्द : ५९ 

माया महा ठगिनी हम जानी : १
त्रिगुणी फांस लिये कर डोले, बोले मधुरी बानी : २
केशव के कमला है बैठी, शिव के भवन भवानी : ३
पण्डा के मुरति है बैठी, तीरथ हूँ में पानी : ४
योगी के योगिनि है बैठी, राजा के घर रानी : ५
काहू के हीरा है बैठी, काहू के कौड़ी कानी : ६
भक्ता के भक्तिनि हैं बैठी, ब्रह्मा के घर ब्रह्मानी : ७
कहहिं कबूर सुनो हो संतो, ई सब अकथ कहानी : ८

#शब्द_अर्थ : 

त्रिगुणी फांस = सत रज तम गुण बंधन ! केशव = विष्णु ! कमला = लक्ष्मी ! भवानी = पार्वती ! ब्राह्मनी = गायत्री , सावित्री, सरस्वती ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो मेरी बात जिसे मैं बार बार आपको समझा रहा हु वो माया मोह इच्छा तृष्णा बड़ी चलाख है फरेबी है रूप बदलने वाली है ! वह कभी सद्गुण में दिखाई देती है तो साधु संत , धर्म ज्ञानी , धर्म गुरु जैसे शिव , ब्रह्मा के मन में अर्धांगिनी बन कर राज करती है जैसे उनकी पत्नियां पार्वती , सावित्री , गायत्री ! तो कभी धर्म आचरण में मायावी अपना रूप बदलकर पत्थर की मूर्ति की पूजा अर्चना , होम हवन , बलि , प्रार्थना , नमाज आदि रूप ले लेती है और पानी , तीरथ, दान दक्षिणा बन कर लोगोंको पुण्य के लालच दे ठगती है ! कभी राजसी ठाठ में होती है तो हीरा मोती सोना चांदी , हाथी घोड़े महल नौकर चाकर के राजसी ठाठ के लिये युद्ध कराती है , मानव हत्या कराती है और नाच गाने , मांस मदिरा आदि में चूर होकर अहंकारी बना देती है , तो किसी भिखारी को मोह में डालकर कुछ कौड़ियां , कुछ रूपये मिल जाय इस इच्छा से भी परेशान करती रहती है ! 

यही नहीं इस माया ने न भोगी छोड़े है न योगी , न साधु न संन्यासी वे भी इच्छा ग्रस्त है चाहे वे वैदिक ब्राह्मणधर्म के देवी देवता विष्णु हो इंद्र हो रुद्र हो सभी मोह माया ग्रस्त है उनके भक्त पाण्डे पुजारी भी कहा छूटे वे भी भक्ति में आसक्ति रखे हुए है उस भक्ति के एवज में कुछ चाहते है जैसे स्वर्ग सुख आदी आदि ! 

कबीर साहेब कहते हैं कोई मकान कोई स्त्री पुरुष बाल बच्चे गरीब श्रीमंत बड़े छोटे यहांके वहांके कोई भी मोह माया के बंधन से नहीं छूटा ! जो मोह माया इच्छा तृष्णा त्रिगुण रहित है वो है केवल एक मात्र निराकार निर्गुण अविनाशी चेतनतत्व राम जिस अवस्था में परमात्मा खुद कबीर है ! जो मोह माया ग्रस्त है थे वे सभी दुखी थे और है क्यू कि उन्होंने चेतन तत्व राम को जाना ही नहीं ! कबीर साहेब मूलभारतीय हिन्दूधर्मी लोगोंको मूलभारतीय हिन्दूधर्म बताते हुवे वो मुक्ति का मार्ग बताते है !

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Sunday, 10 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 58 : Narhari Laagi Doun

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५८ : नरहरि लागि दौ बिकार बिनु इन्धन ! 

#शब्द : ५८ 

नरहरि लागि दौन बिकार बिनु इन्धन, मिले न बुझावनहारा : १
मैं जानों तोही से व्यापै, जरत सकल संसारा : २
पानी माहिं अगिन को अंकुर, जरत बुझावै पानी : ३
एक न जरे जरै नौ नारी, युक्ति न काहू जानी : ४
शहर जरे पहरू सुख सोवै, कहै कुशल घर मेरा : ५
पुरिया जरै वस्तु निज उबरै, बिकल राम रंग तेरा : ६
कुबजा पुरुष गले एक लागा, पूजि न मन की सरधा : ७
करत विचार जन्म गौ खिसे, ई तन रहत असाधा : ८
जानि बुझि जो कपट करतु है, तेहि अस मन्द न होई : ९
कहहिं कबीर तेही मूढ़ को, भला कौन बिधि होई : १० 

#शब्द_अर्थ : 

नरहरि = ज्ञान, स्वज्ञान, स्वरूप ! दों = संताप ! बुझावनहारा = सदगुरु ! अंकुर = अंश ! एक = वासना ! नौ = नौ नाडिया ! शहर = वृदय ! पहरू = साधक ! पुरिया = गठरी ! वस्तु निज = खुद की स्थिति ! विकल = अशांत ! राम = जीव , खुद ! रंग = भाव ! कुबजा = कुबड़ा ! सरधा = श्रद्धा ! खीसे = कमजोर ! असाधा = असंयमित ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो अगर मानव को कोई मनोरोग लग जाये , मन अशांत हो जाये तो उसे शांत करना , सही करना बहुत कठिन होता है ! ये ऐसी बीमारी है जो अंदर से ही आती है और उसे अंदर की शांति से ही दूर किया जा सकता है ! पानी में आग जाये तो उसे कौन बुझाए ? पानी की आग पानी से ही बुझती है वैसे ही मन की अशांति , दुविधा मन को ही दूर करना पड़ता है !  

मन की आग , द्वेष , नफरत बड़ी भयानक होती है वह न केवल दूसरे की हानि कर सकती है , चोरी , लूटमार , बलात्कार , खून करा सकती है वह खुद को भी बर्बाद कर देती है , शरीर आग की तरह जलता है बुद्धि का पानी सुखकर बंजर बन जाता है , कुछ अन्य और अच्छा सूझता ही नहीं ! यहा तक कि लोग आत्म हत्या भी कर लेते है ! 

इस मनोवृति , मनोरोग , पागलपन की दवा कबीर साहेब बताते हुवे कहते है भाइयों नफरत न पनपने दे , अहंकार को न पनपने दे , माया मोह इच्छा तृष्णा में ना फंसे ! मन की साधना करे , अच्छे लोगोंकी , साधु संतो की संगत करो , कपट विचार मन में न आने दे , धर्म विचार सुनो , अधर्म को छोड़ो , धर्म का पालन करो को मन की अंशाति , तृष्णा , मनोरोग से बचा जा सकता है ! 

मानव ने मानव समाज बनाया , आत्मा और परमात्मा का बोध हुआ ! सहजीवन की नींव है अपने से दूसरे को बड़ा मान कर सम्मान देना , निसर्ग नियम को न तोड़ना ! सृष्टि में सब से पहले नाग की उत्पत्ति हुई फिर पेड़ फिर फल फिर मानव जोड़ी स्त्री पुरुष और स्व और पराया का भान तब नीति यानी शील अर्थात धर्म की जरूरत महसूस हुवी और शील के बाद सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि का विस्तार होते होते हम वैज्ञानिक सोच तक पहुंचे !  

मनोविकार की उत्पत्ति पर आज अनेक दवा भी बनी है पर आज भी विज्ञान यही कहता है मन के विकार को मन में सदभाव ही शांति और सुख ला सकता है और तृष्णा मोह माया इच्छा अधार्मिक वृति और कार्य से बचकर हम मन की शान्ति और सुख पा सकते है !

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Saturday, 9 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 57 : Naa Hari Bhajasi N !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५७ : ना हरि भजसि न आदत छूटी !

#शब्द : ५७ 

ना हरि भजसि न आदत छूटी : १
शब्दहिं समुज़ि सुधारत नहीं, आंधर भये हियहु की फूटी : २
पानी माहिं पषाण की रेखा, ठोंकत उठे भभूका : ३
सहस घड़ा नित उठी जल ढारै, फिर सूखे का सूखा : ४
सेतहिं सेत सितंग भौ, सैन बाढ़ू अधिकाई : ५
जो सन्निपात रोगियन मारै, सो साधुन सिद्धि पाई : ६
अनहद कहत कहत जग बिनसै, अनहद सृष्टि समानी : ७
निकट पायना यमपुर धावै, बोलै एकै बानी : ८
सतगुरु मिलैं बहुत सुख लहिये, सतगुरू शब्द सुधारें : ९
कहहिं कबीर ते सदा सुखी है, जो यह पद बिचारै : १०

#शब्द_अर्थ : 

हरि = चेतनतत्व राम ! भजसि = चिंतन करना ! आदत = गलत आदत ! रेखा = छोटा भाग ! भभूका = आग , क्रोध की अग्नि ! सेतहि सेत = गंजा होना ! सितंग = शिथिलता , कमजोरी ! सैन = नींद , आलस ! सन्निपात : उन्मादी ज्वर, बीमारी ! सिद्धि = कार्य सिद्धि , सफलता, मोक्ष ! अनहद = असीम ! निकट पयाना = निकट समय ! एकै बानी = अहंकार ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो हरि का अर्थ तात्पर्य जाने बिना हरि हरि , राम राम , कृष्ण कृष्ण , शिव शिव ऐसे रटने से कोई फायदा नहीं वो केवल एक शाब्दिक आदत हो जायेगी , आदतन शब्द रटोगे पर हासिल कुछ नहीं होगा ! मुख में राम और बगल में छुरी होगी तो राम नाम का क्या फायदा ? अपनी वाणी अर्थात शब्द को तोल तोल कर बोलो , व्यर्थ ना बोलो ! आपके वाणी से किसी को दुख ना पहुंचे ये ध्यान रखो ! शब्द उस पत्थर के ढेले जैसा है जो मुख से निकलते ही काम करता है जैसे किसी तालाब के पानी में पत्थर फेंको तो तुरंत तरंगें उठती है और दूर तक जाती है वैसे ही शब्द बड़े गहरे और लंबे समय तक काम करते है और एक बार किसी को दुख पहुंचे तो फिर कितने ही मिठे बोल बोलो , मरहम पट्टी करो शब्द के घाव जल्दी नहीं भरते ! 

उसी प्रकार कुछ साधु सन्यासी योग आदि साधना अभ्यास कर कहते है उन्होंने बड़ी सिद्धि पाई , उनके शब्द में बड़ा अर्थ है , ये कर लेंगे वो कर लेंगे , श्राप देंगे आदि आदि और कहते है उन्होंने ईश्वरीय अनहद बानी सुनी है वे इसी प्रकार ॐ तत सत , किसी नाम का जप करते रहते है पर जल्दी क्रोधित हो जाते है ऐसे लोगोंको क्या कहे ये तो मानसिक रोगी है ! भाई अनहद बानी , ॐ इत्यादि उच्चार से कुछ नहीं होता अपनी सोच और शब्द सुधारना होता है ! अपने अंतरमन में झांककर मन के मैल , बुराइयां , अनैतिकता आदि को बाहर निकालने की कला नहीं सिखी तो योग , तपस्या बेकार हुई ! समाज की कोई सेवा की नहीं और गालीया बके ऐसे योगी का क्या फायदा ?

कबीर साहेब कहते है जब अच्छे गुरु मिलते है सच्चा धर्म ज्ञानी मिलता है जो आपको अपनी वाणी सुधारने मे मदत करे वहीं सच्चा गुरु , हितकार्ता , मित्र है ! ऐसे लोगोंकी संगत बड़ी सुखदाई और मन को सुकुन देने वाली होती है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
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Friday, 8 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 56 : Nar Ko Nahin Partit Hamari !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५६ : नर को नहिं परतीत हमारी ! 

#शब्द : ५६

नर को नहिं परतीत हमारी : १
झूठा बानिज कियो झूठे सो, पूंजी सबन मिलि हारी : २
षट दर्शन मिलि पंथ चलायो, तिरदेवा अधिकारी : ३
राजा देश बड़ों परपंची, रैयत रहत उजारी : ४
इत ते उत उत ते इत रहहू, यम की साँड सवारी : ५ 
ज्यों कपि डोर बाँधु बाजीगर, अपनी खुशी परारी : ६
इहै पेड़ उत्पति परलय का, विषया सबै विकारी : ७
जैसे श्वान अपावन राजी, त्यों लागी संसारी : ८
कहहिं कबीर यह अदबुद ज्ञाना, को माने बात हमारी : ९
अजहूँ लेहूँ छुड़ाय काल सो, जो करै सुरति संभारी : १० 

#शब्द_अर्थ : 

परतित = प्रतीत ! बनिज = व्यापार ! पूँजी = जमा ! षट दर्शन = योगी, जंगम, सेवड़ा, संन्यासी, दरवेश, ब्राह्मण ! तिरदेव = ब्रह्मा विष्णु रुद्र ! अधिकारी = शासक ! राजा = पंथ आचार्य ! देश = संप्रदाय ! परपंची = प्रपंची , धोखेबाज ! रैयत = प्रजा, सामान्य लोग ! उजारी = उजाड़, वीरान ! इत उत = लोक परलोक ! यम = वासना ! साँड़ = मस्त बैल ! कपि = वानर! परारी = दूसरे ! पेड़ = मूल ! सुरती = सूरत ! संभारी = संयम ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो अपने आप पर विश्वास करो संसार में बड़े प्रपंची ढोंगी लोग है जिन्होंने धर्म के नाम पर अधर्म फैलाया है ! कोई खुद को योगी कहता है तो कोई जोगी और कुछ अपने को दरवेश बताते है तो कुछ अपने को ब्राह्मण पंडित ज्ञानी बताते है पर है सब ढोंगी और झूठे इन्होंने धर्म के नाम से धंधे चला रखा है ! 

इन सब झूठे धर्म व्यापारी में सब से खतरनाक और छलावे वाले विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के धर्माचार्य पंडित पाण्डे पुजारी ब्राह्मण शंकराचार्य मठाधीश आदि है ! ये कहते है उनके त्रि देव ब्रह्मा विष्णु इन्द्र यही पूरे सृष्टि के तीन देव है ईश्वर है भगवान है जो कभी कभी अवतार लेते है जैसे मच्छ कच्छ वराह सिंह वामन आदि और इनके पत्थर के मूर्ति में ब्राह्मण प्राण प्रतिष्ठा कराकर उन्हें जिंदा करते है और ये ब्राह्मणों द्वारा पूजा से प्रसन्न होते है और इच्छित वर देते है इसलिए पाण्डे पुजारी ब्राह्मण दान दक्षिणा लेते है पहले ये वैदिक ब्राह्मणधर्म के देवी देवता होम हवन की अग्नि से साक्षात सशरीर प्रगट होते थे और इच्छित वरदान देकर तथास्तु बोलते थे आज कल कोई इनके देवता होम हवन के अग्नि से प्रगट नहीं होते है ! 

इन विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म प्रपंचीयोने चार वर्ण हजारों जाती उचनिच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार का ब्राह्मण पंथ निर्माण किया और जानबुझ कर स्थानीय आदिवासी मूलभारतीय लोगोंके समता शांति अहिंसा भाईचारा शील सदाचार मानवतावादी मूलभारतीय हिन्दूधर्म में अपना स्वार्थी पंथ ब्राह्मण वैदिक पंथ मिलाकर खुद को झूठमूठ के हिन्दू कहने लगे ! इन विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के अधर्म से बचने की बात कबीर साहेब कहते है !  

कबीर साहेब कहते हैं जैसे किसी बंदर के गले में रस्सी बांधकर बाजीगर , खेल दिखाने वाला बंदर से उल्टे सीधे करतब करा कर पैसे मांगता है वैसे ही विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण ने यहां के मूलभारतीय हिन्दूधर्मी लोगोंके गले में जाती वर्ण व्यवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार अधर्म का पट्टा बांध रखा है , कबीर साहेब इस से बाहर आने की बात करते है ! अग्यान से बाहर आने की बात करते है , गुलामी से मुक्त होने की बात करते है ! 

कबीर साहेब अधमि विकृत वैदिक ब्राह्मणधर्म को देश के बाहर करने की बात करते ताकि देश और रैयत , देश के लोग दोनों आज़ाद होकर खुशी की जिंदगी जिये ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
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Thursday, 7 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 55 : Nar Ko Dhadhas Dekho Aai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५५ : नर को ढाढ़स देखो आई !

#शब्द : ५५

नर को ढाढस देखो आई, कछु अकथ कथ्यो है भाई : १
सिंह शार्दुल एक हर जोतिनि, सीकस बोइनि धानै : २
बन की भुलैया चाखुर फेरें, छागर भये किसाने : ३
छेरी बाघे ब्याह होत है, मंगल गावै गाई : ४
बन के रोझ धरि दायज दीन्हो , गोह लो कंधे जाई : ५
कागा कापर धोवन लागे, बकुला किरपहिं दाँते : ६
माँखी मुंड मुँडावन लागी, हमहूँ जाब बराते : ७ 
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, जो यह पद अर्थावै : ८
सोई पण्डित सोई ज्ञाता, सोई भक्त कहावै : ९ 

#शब्द_अर्थ : 

ढांढस = साहस , धैर्य ! अकथ = न कहने बताने योग्य ! शार्दुल = सिंह , एक पक्षी ! सीकस = अन उपजाऊ , ऊसर ! भुलैया = लोमड़ी ! चाखूर फेरे = घास निकाले ! छागर = बकरा ! छेरी = बकरी ! गाई = गाय ! रोझ = नीलगाय ! धरि = पकड़ा ! गोह = बड़ी छिपकली ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर मानव के स्वभाव की बात समझाते हुवे कहते है मानव मन क्षण क्षण में बदलता रहता है और अलग अलग बर्ताव करता है कभी वो शेर बन जाता है तो कभी गाय ! जिससे शत्रुता बताता है उसका दोस्त भी बने जाता है , दिखावा करता है , उसके मन में कुछ और काम में और कुछ भी होता है ! 

मानव ऐसे ऐसे विपरीत काम करता है कि दंग रह जावोगे ! क्या कभी बकरी और बाघ का विवाह होता है ? क्या कोई जानवर पक्षी प्राणी कीड़ा अपने स्वभाव को भूलकर विपरीत हरकत करता है ? नहीं ! पर मानव का ऐसा नहीं है उसके मुंह में राम और बगल में छुरी भी हो सकती है ! जैसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण करता है और सामान्य मानव भी ऐसे ही होता है ! 

कबीर साहेब कहते है मैं उसी को ज्ञानी पंडित मानता हूँ जो अपने मन में चल रहे विपरीत अधर्म को समय रहते पहचानता है और जीव को अधर्म करने से बचाता है ! 

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Wednesday, 6 November 2024

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Shabd : 54 : Sai Ke Sang Saasur Aai !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५४ : सांई के संग सासुर आई ! 

#शब्द : ५४

सांई के संग सासुर आई : १
संग न सूति स्वाद नहिं मानी, गयो जोबन सपने की नाई : २
जना चारि मिलि लगन सोधाये, जना पाँच मिलि माँडो छाये : ३
सखी सहेलरि मंगल गावै, दुख सुख माथे हरदि चढ़ावै : ४
नाना रूप परी मन भँवरि, गांठी जोरि भाई पतियाई : ५ 
अरघा दै लै चली सुवासिनि, चौके राँड भई संग सांई : ६
भयो विवाह चली बिनु दुलहा, बाट जात समधी समुझाई : ७
कहैं कबीर हम गौने जैबै, तरब कंध लै तूर बजैबै : ८

#शब्द_अर्थ : 

सांई = मालिक , चेतन तत्व राम ! सासुर = संसार ! जना चारि = मन चित्त बुद्धि अहंकार ! जना पाँच = पांच तत्व ! सखी सहेलरि = पांच इन्द्रिय ! भँवरि = चक्कर ! भाई = अज्ञान ! अर्घ्य = अर्पण ! सुवासिनि = सुहागन ! चौके = पूजा का पाट , अंतरमन ! राँड़ = पति बिन ! समधी = सगुण उपासक ! कंध = जनेऊधारी ! तूर = तुरई बाजा ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के सगुण उपासना जैसे पत्थर पूजा , बाहरी देव देवता की उनकी मान्यता , होम हवन, जनेऊ, बलि आदि अधर्म , समझ को नकारते हुवे मानव के मनोवृति की स्थिति कैसे होती है यह समझाते हुवे कहते है मानव की मनोवृति लालची है माया मोह में फंसकर अधर्म करने वाली है ! वह खाद्य अखाद्य में कभी कभी भेद नहीं करती और हिंसा , चोरी, लुट पर उतर आती है ! अपने पास जो है उससे उसे संतुष्टि नहीं मिलती वो दुष्चरित मनोवृति उसे धर्म अधर्म में भेद करने नहीं देती और लैंगिक कुकर्म के लिए लालायित करती है , अहंकार से भरा मानव भले ही अग्यानी हो मूर्ख हो खुद को ब्राह्मण पंडित बताते है जैसे कि विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी जो सगुण उपासना में लोगोंको बेवकूफ बनते है करोड़ों मनगढ़ंत देवी देवता , अवतार , प्राण प्रतिष्ठा आदि के मार्ग से लूटते रहते है ! 

कबीर साहेब चेतन तत्व राम को निराकार निर्गुण अविनाशी बताते हुवे कहते है ये विदेशी कंधे पर जनेऊ धारी ब्राह्मण बड़े जोर जोर से निरर्थक वैदिक मंत्र बोलकर , ऊंची आवाज कर तुरई आदि बजा कर सगुण उपासना में लोगोंको आकृष्ट कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते है पर कबीर कहते है भाई राम बाहर नहीं तुम्हारे भीतर है , कण कण में है , मन में है , अंतकरण में है , उसे साथ रहो , यहां वहां ना भटको ! तुम्हारे शरीर को समझो , उसके मनोवृति को समझो ! राम तुम्हारे पास ही है ! 

#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस 
#दौलतराम 
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती 
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ 
#कल्याण , #अखंडहिंदुस्थान, #शिवसृष्टि

Tuesday, 5 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 53 : Vai Birava Chinhe Jo Kora !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५३ : वै बिरवा चीन्हें जो कोरा ! 

#शब्द : ५३

वै बिरवा चीन्हें जो कोरा, जरा मरण रहित तन होय : १
बिरवा एक सकल संसारा, पेड़ एक फ़ुटल तिनि डारा : २
मध्य की डारि चारि फल लागा, शाखा पत्र गिने को वाका : ३
बेलि एक त्रिभुवन लपटानी, बाँधे ते छूटै नहिं ज्ञानी : ४
कहहिं कबीर हम जात पुकारा, पण्डित होय सो लेय बिचारा : ५

#शब्द_अर्थ : 

बिरवा = वृक्ष , संसार !  तिनि डारा = तीन डाल  ! मध्य डाल = तना ! चारि फल = कर्म फल ! बेलि = तृष्णा माया मोह ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं जिसने यह पूरा संसार बनाया है उस चेतन तत्व राम को जानो और उसे जो जानेगा और जीयेगा वह जरा मरण रहित तन का होगा जैसा कि अमर अजर तत्व राम है ! ऐसे राम जीवन जीने वाले बिरले है ! 

प्रज्ञा का बोध जिसे हो जाता है वही राममय हो जाता है ! उसे न जन्म की जरूरत होती है वह अजर अमर  होता है !  संसार ज्ञान विज्ञान प्रज्ञान से चलता है लोग जो शरीर धारण करते है वे इंद्रियोंसे ज्ञान लेते है , संज्ञान लेते है , ज्ञान का नियम विज्ञान है जिसे हम जैसा करोगे वैसा भरोगे कहते है जिसे कर्म फल भी कहा जाता है , प्रज्ञा वो राम ज्ञान है जिसे जानने किसी शरीर की जरूरत नहीं इस लिये चेतन राम बिना शरीर से ही सब कुछ जानते है , त्रिकाल जानते है ! इस त्रिकाल को जानना ही प्रज्ञा बोध है इसे त्रिकाल दर्शी कोई बिरला ही होता है जैसे बुद्ध हुवे , कबीर हुवे ! 

प्रज्ञा बोध की कुछ कुछ झलक जब मर्त्य मानव शील सदाचार का जीवन जीना शुरू करता है मोह माया इच्छा तृष्णा अहंकार को त्याग कर आगे बढ़ता है तो एक राह नजर आती है जो स्व प्रकाशमान है उसी पर एक एक पग आगे आगे बढ़ाकर चलना होता है पर मानव जल्दी वो राह छोड़ अपनी पुरानी आदतें माया मोह इच्छा तृष्णा की तरफ बार बार वापस आकर गिरता है उठता है कोई बिरला ही अंतिम पड़ाव राम स्वरूप निर्वाण को प्राप्त करता है जैसे की बुद्ध कबीर हुवे और मार्गस्थ कबीरसत्व बोधिसत्व है ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग इसके विपरीत उल्टा ज्ञान बताते है , झूठ बोल कर लूटते है झूठे देवी देवता , पत्थर की पूजा आदि शील रहित आचरण से वे अधर्म विकृति फैलाते है , मोह माया तृष्णा के दलदल में खुद वहीं फंसे हुए हैं और अन्य को भी फसाते है !  

कबीर साहेब संसार का रहस्य बताते हुवे कहते है संसार जरा मरण ग्रस्त है , जहां तन है  वहां मन है और विकार माया मोह इसके कारण है इस से जो बाहर निकलेगा वही अजर अमर स्वरूप तत्व चेतन राम के दर्शन कर सकता है निर्वाण को प्राप्त कर राममय हो सकता है ! 

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Monday, 4 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 52 : Buz Lijai Brahmagyani !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५२ : बुझ लीजै ब्रह्मज्ञानी !

#शब्द : 

बुझ लीजै ब्रह्मज्ञानी : १
धूरि धूरि बरसा बरसावै, परिया बुंद न पानी : २
चिऊंटी के पग हस्ती बाँधो, छेरी बीग रखावै : ३
उदधि माँह ते निकरि छाँछरी, चौड़े ग्रह करावै : ४
मेंढुक सर्प रहत एक संगे, बिलैया श्वान बियाई : ५
नित उठि सिंह सियार सौं डरपै, अदबुद कथ्यो न जाई : ६
कौने संशय मृगा बन घेरे, पारथ बाणा मेले : ७
उदधि भूपते तरिवर डाहै, मच्छ अहेरा खेले : ८
कहहिं कबीर यह अदबुद ज्ञाना, को यह ज्ञानहि बुझईं : ९
बिनु पंखे उड़ि जाय अकाशै, जीवहि मरण न सुज़ै : १०

#शब्द_अर्थ : 

छेरी = बकरी ! बीग = भेड़िया ! उदधि = समुद्र ! छाँछरी = मछली !  चौड़े = मैदान ! ग्रह = घर ! अदबुद = अद्भुत ! मृगा = मन , मृगा !  बन = संसार ! पारथ = पारधी, शिकारी! भूपते = सम्राट ! मच्छ = मछली , मायर !  अहेरा = शिकार ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से पूछते हैं ये कैसा ब्रह्मज्ञान है जो मालिक , राजा  , सम्राट, मूलभारतीय , आदिवासी , बहुजन , स्थानीय लोगों को  शुद्र , अस्पृश्य बना दे, दूसरे तीसरे दर्जे का नागरिक बना दे गुलाम बनाकर उनके मानव अधिकार छीन ले !  ऐसा वैदिक ब्रह्मज्ञान आपको ही मुबारक !

हमे ऐसा उल्टा निर्दयी अधमी विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का ना धर्म चाहिए ना धर्मज्ञान ! 

हमे ऐसी विकृत ब्राह्मण संस्कृति नहीं चाहिए जो वास्तव में संस्कृति है ही नही जो असभ्यता , पागलपन है ! 

यहां चूहा बिल्ली पर हावी हो रहा है , चींटी के पैर में हाथी बैठा है , सियार शेर को डरा धमाका रहा है मछलियां मछुआरे को जाल में कैद कर रहे है  मेंढक नागराज को खा रहा है और सम्राट नौकर को हवा कर रहा है और  उल्टे वैदिक ज्ञान के कारण शरणार्थी ब्राह्मण मालिक बन गये है मूलभारतीय हिन्दूधर्मी मालिक गुलाम बन गये है ! 

कबीर साहेब यहां मूलभारतीय हिन्दूधर्मी आदिवासी हिन्दू समाज के सभी लोग जो कभी राजे सम्राट थे धनपति थे गणमान्य और गणराज थे उन सब को चेताते हुवे कहते है भाइयों विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का वेद , मनुस्मृति , जाति वर्ण अस्पृश्यता विषमता का उल्टा धर्म ना मानो अपने समतावादी समाजवादी वैज्ञानिक मूलभारतीय हिन्दूधर्म को मानो और वैदिक ब्राह्मणधर्म के गुलामी से बाहर आवो अपने देश धर्म समाज को विदेशी गुलामी से मुक्त करो ! 

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Sunday, 3 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 51 : Buz Buz Pandit Man Chitalaay !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५१ : बुझ बुझ पण्डित मन चितलाय ! 

#शब्द : ५१

बुझ बुझ पण्डित मन चितलाय, कबहि भरलि बहै कबहिं सुखाय : १
खन ऊबै खन डूबै खन औगाह, रतन न मिलै पावै नहिं थाह : २
नदिया नहिं सांसरि बहै नीर, मच्छ न मरे केवट रहै तीर : ३
पोहकर नहिं बाँधल तहाँ घाट, पुरइनि नाहिं कँवल मैह बाट : ४
कहहिं कबीर ये मन का धोख, बैठा रहै चला चहै चोख : ५

#शब्द_अर्थ : 

खन = क्षण ! औगाह = पानी के भीतर खोज , सुर लगाना , डुबकी लगाना ! रतन = रत्न , मोती , ज्ञान ! सांसरि = निरंतर प्रवाह ! मच्छ = मछ्ली ! केवट = मछुआरा , साधक ! पोहकर = पोखरा , तालाब ! पुरइनि = पेड़ के नीचे सुस्त बैठ कर हवा खाना ! कँवल = कमल फूल , सुखद अवस्था ! चोख = बढ़िया ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से पूछते है हे ब्राह्मणों बतावों तुम्हारे मन की थाह कभी तुमने ली है ? लोगोंको तुम गलत धर्म बताते हो अधर्म को धर्म कहते हो , विकृति को तुम संस्कृति कहते हो , वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार तुम्हारे मन में सदा बसे रहते है उसपर क्या तुमने कभी गहन अध्ययन विचार किया है ? या बस होमहवन , गाय घोड़े की बलि , झूठे देवी देवता और पत्थर पूजा आदि में ही रम रहे ? कभी अंतरात्मा में बसे घट घट निवासी चेतन तत्व राम के दर्शन किये या केवल तोताराम बनकर राम राम रटते रहे और पराया माल हड़पते रहे ! 

भाइयों सुनो मन के विकार मोह माया अहंकार आलस लालच है ! ये जब तक मन में रहेंगे मन एकाग्र नहीं होगा और यहां वहां भटकता रहेगा ! उस अनमोल रतन राम को चाहते हो तो बिना मन में उतरे और मोह माया को त्यागे आगे नहीं बढ़ पावोगे बिना मन के सागर में डुबकी लगाए मोती हीरे रतन नहीं मिलेंगे ना तालाब के किनारे किसी पेड़ के नीचे सुस्ताते हुवे हवा खानेसे किसी मछुआरे को मछली मिलेगी , रतन की बात तो और ही है ! 

चेतन राम कमल के उस पुष्प जैसा है जो अति सुंदर और ऐश्वर्य का प्रतीक है , उसे पाना है तो मन के जल में उतर कर मोह माया का मैल न लगे इस तरह संसार में जी कर ही उत्तम फूल कमल और फल प्राप्त होता है ! 

पंडितों बाहर के अवडंबर , दिखावा अंधश्रद्धा , झूठे देवी देवता , झूठी प्राणप्रतिष्ठा , अवतार आदि ढकोसले को छोड़ो अपने मन के भीतर देखो ! मन का मैल साफ किये बैगर राम के दर्शन कहाँ संभव है ?  

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Saturday, 2 November 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 50 : Buz Buz Pandit Birava N Hoy !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ५० : बुझ बुझ पण्डित बिरवा न होय ! 

#शब्द : ५० 

बुझ बुझ पण्डित बिरवा न होय, आधे बसे पुरुष आधे बसे जोय : १
बिरवा एक सकल संसारा, स्वर्ग शीश जर गयी पतारा : २
बारह पखुरिया चौबिस पात, घने बरोह लागे चहूँ पास : ३
फूले न फले वाकी है बानी, रैन दिवस बेकार चुवै पानी : ४
कहहिं कबीर कछु अछलो न तहिया, हरि बिरवा प्रतिपालेनि जहिया : ५

#शब्द_अर्थ : 

बिरवा = वृक्ष , संसार रूपी वृक्ष ! पुरुष = चेतन तत्व राम ! जोय = पत्नी , प्रकृति , माया ! स्वर्ग = ऊपर , आकाश ! पतारा = पाताल , जमीन के अंदर , नीचे ! पखुरिया = फूलों की पंखुड़ियां , गुच्छे ! बरोह = जटा , लता ! बानी = स्वभाव ! अछलो = अकेला ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से पूछते हैं हे ब्राह्मणों बतवों तुम्हारे वैदिक धर्म में संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? तुम कहते हो तुम्हारे ब्रह्मा की उत्पति विष्णु के पेट से हुई और तुम्हारी उत्पत्ति उस ब्रह्मा के मुख से और तुम मानव को जाती वर्ण उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता छुआछूत में बाटकर चार वर्ण उसी ब्रह्मा ने बनाया तो ब्राह्मणी किस ने और कैसे बनी ! पेड़ पौधे किधर से पैदा हुवे ? कुछ जानते नहीं और खुद को ज्ञानी पंडित बताते हो और मानव का शोषण करते हो ! 

सुनो मैं तुम्हे बताया हुं एक चेतन तत्व राम से ये संसार रूपी वृक्ष की निर्मिती हुई ! जब संसार बना नहीं था तब चेतन तत्व राम निर्वाण अवस्था में था और संसार की निर्मिती भी निर्वाण की अवस्था में संसारी जीव जन्तु प्राणी सब को जीने के लिये की गई पर संसार के जीव वो भूलकर , चेतन राम के स्वरुप को भूलकर संसारी जीव मै मै , ये मेरा करने लगे तब माया मोह इच्छा अहंकार में पन निर्माण हुआ और ये संसार उसी मै मेरा अहंकार में ग्रस्त होकर जीव अर्थात चेतन राम, प्रज्ञा बोध को भूलकर जड़ अर्थात पृथ्वी तत्व को ही सब कुछ समझ कर माया मोह में दिनरात , बारह महीने बस जड़ धन संपत्ति, पद प्रतिष्ठा , राज पाट में उलझकर रह गया नतीजा ये हुआ कि ब्राह्मणों अपने स्वार्थ के लिये विषमता शोषण की व्यवस्था को धर्म बताने लगे जब वो विकृति और अधर्म हैं !

कबीर साहेब कहते है आसक्ति , मोह माया ने न केवल जड़ को मजबूती से जकड़ लिया उसकी जाटा और बेली ने भी संसार के वृक्ष को जकड़ लिया ! संसार के वृक्ष में मोह माया इच्छा अधर्मि विकृत ब्राह्मण के रहते सुख शांति कैसे मिलेगी , अधर्म का पालन करोगे तो मुक्ति कैसे मिलेगी ? इन प्रपंची विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंके बहकावे में मत आवो वो तुम्हे सुखी देखना नहीं चाहते वो संसार और चेतन तत्व राम का सत्य स्वरूप से अवगत नहीं कर सकते क्यू की वो जानते ही नहीं उन्होंने स्वर्ग नरक , ज्योतिष कुंडली, होम हवन , झूठे देवी देवता का जाल बुन रखा है ! राम के दर्शन उस मार्ग से संभव नहीं ! न इस जन्म में ब्राह्मण धर्म तुम्हे सुख देगा न मरणोत्तर तुम्हे सुखद गति प्राप्त होगी ! 

सुख चाहते हो तो अपना स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो !

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Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Shabd : 49 : Buz Buz Pandit Pad Nirbaan !

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४९ : बुझ बुझ पण्डित पद निर्बान ! 

#शब्द : ४९ 

बुझ बुझ पण्डित पद निर्बान, साँझ परे कहवाँ बसे भान : १
ऊंच नीच पर्वत ढेला न ईट, बिनु गायन तहवां उठे गीत : २
ओस न प्यास मंदिर नहिं जहवाँ, सहसों धेनु दुहावैं तहवाँ : ३ 
नित अमावस नित संक्रांति, नित नित नौग्रह बैठे पाँति : ४
मैं तोहि पूछौं पण्डित जना, हृदया  ग्रहण लागु केहि खना : ५
कहहिं कबीर इतनो नहिं जान, कौन शब्द गुरु लागा कान : ६

#शब्द_अर्थ : 

पद निर्बान = निर्वाण पद ! साँझ = मृत्यु , समाधि !  भान = सूर्य , चेतना ! सहसों धेनु =  हजारों उल्हासित वृत्तियां !  संक्रांति = ग्रहों का  गमन !  नौग्रह = नव ग्रह  , नव वृत्तियां !  खना = क्षण ! 

#प्रज्ञा_बोध : 

कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पण्डित पुजारी ब्राह्मण से पूछते है बताओ पंडितो तुम्हारे वेद ,मनुस्मृति में निर्वाण के बारे में क्या कहा गया है  ?  तुम तो कहते हो हम ब्राह्मण है ब्रह्मा के बेटे है ब्रह्मा के मुख से  पैदा हुवे है , ब्रह्मा इन्द्र रुद्र सोम इत्यादि देव अमर है , विष्णु अवतार लेता है ! उस विष्णु की उत्पति तुम वराह की नाक से बताते हो , ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु के पेट से बताते हो और तुम्हारी उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से बताते हो और बताते हो सारे देव जो होम हवन से सशरीर प्रगट होते है और वर देकर अदृश्य होते है वे तुम्हारे  विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद मंत्र के अधीन है और मंत्र ब्राह्मणों के अधीन है ! बतावो है कोई यहां मोक्ष , निर्वाण ! तुम कहते हो ब्राह्मण को कोई पाप नहीं लगता , गैर ब्राह्मण कभी ब्राह्मण बन नहीं सकता , और वे नर्क में जाते है , स्वर्ग ब्राह्मणों की बपौती है !  ऐसा तुम्हारा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म जाती पाती वर्ण व्यवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता छुआछूत आदि को मानने वाला धर्म दर असल अधर्म और विकृति के शिवाय कुछ नहीं वो क्या जानेगा निर्वाण , मोक्ष को ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ज्योतिष तो नौ ग्रह , ग्रहण अमावस्या ,संक्रमण , संक्रांत आदी की  आकाशीय घटना को भुनाते है डराते हेयर अपना उल्लू सीधा करते है गरीब गैर ब्राह्मण मूलभारतीय को इन का दुष्परिणाम आदि का डर दिखाकर लूटते है वे क्या जाने मोक्ष , निर्वाण !  ब्राह्मण तो शांति देने के बजाय लोगों के हृदय में डर अशांति भर देते है ! वे क्या जाने मोक्ष, निर्वाण!  

मूलभारतीय हिन्दूधर्म मोक्ष , निर्वाण पद की गरिमा जानते है ! ज्योति का बुझ जाना या जीव का मृत्यु होना मोक्ष नही ! निर्वाण नही !  निर्वाण की अवस्था जीते जी शांति , तृष्णा की समाप्ति की है ! यहां बाहरी देव देवता पूजा अर्चना ग्रह तारे आदि से कोई लेना देना नहीं !  कबीर साहेब चेतन राम के स्वरुप को प्राप्त होना को मोक्ष, निर्वाण मानते है जो तृष्णा के विलय की बाद की अवस्था है ! 

विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म किस प्रकार अलग अलग है ये बात यहां स्पष्ट करते है उसी प्रकार उस समय के अन्य धर्म को भी कबीर साहेब खारिज करते हुए मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार के मार्ग से चलने की शिक्षा देते है ताकि लोग सही मार्ग पर चलकर मोक्ष निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं ! 

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