#शब्द : ७८
अब हम जानिया हो, हरि बाजी को खेल: १
डंक बजाय देखाय तमाशा, बहुरी लेत सकेल : २
हरि बाजी सुर नर मुनि जहंडे, माया चाटक लाया : ३
घर में डारि सकल भरमाया, वृद्यय ज्ञान न आया : ४
बाजी झूठ बाजीगर साँचा, साधुन की मति ऐसी : ५
कहहिं कबीर जिन जैसी समुझी, ताकी गति भइ तैसी : ६
#शब्द_अर्थ :
हरिबाजी = ईश्वरीय धोखा , झूठ ! खेल = तमाशा ! डंक = डंका, नगाड़ा ! बजाय = बजाना , शोर करना ! बहुरी = बार बार ! जहंड़ें = ठगे गये ! चटाक : झूठी आशा ! घर में डारि = घर में चोरी ! बाजी = खेल, तमाशा ! बाजीगर = ईश्वर , ईश्वर के नाम से ! मति = समझ , ज्ञान ! गति = स्थिति , आगे बढ़ना !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाइयों अब मैने ईश्वर के नाम पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग जो धोखा कर रहे है उसे जान लिया है !
ईश्वर उसके अवतार , प्राण प्रतिष्ठा , पत्थर की मूर्तियां , उसकी पूजा सब झूठ है ! विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग शंख बजाकर , मंदिर में घंटी बजवाकर नगाड़े पिटवाकर , वैदिक होम हवन के तमाशे कर और बेकार के वैदिक मंत्र ज़ोर जोर से बोल कर आम जनता को भ्रमित कर रहे है जिस को भूल कर कुछ राजे रजवाड़े , धनिक व्यापारी सेठी उनके बहकावे में आ रह है , यहां तक की खुद को पढ़े लिखे लोग ज्ञानी साधु संत भी इनके तमाशे से भ्रमित हो कर ईश्वर , ईश्वर अवतार के बेहूदे , वाहियात तमाशे को सच मान रहे है ! इन विदेशी ब्राह्मणों का फंदा है झूठ बार बार बोला , सर चढ़ कर बोलो तो लोग झूठ को भी एक दिन सच मान लेते है !
कबीर साहेब कहते हैं भाईयो जैसा सोचोगे वैसे जीवन में गति मिलेगी , उसी रास्ते पर चल पडोंगे ! झूठ के ईश्वर और उसके अवतार , मूर्ति में विश्वास करोगे तो वैसे तुम्हारा अंधविश्वास होगा ! इस ईश्वर के अंधविश्वास से बाहर आवो ! ईश्वर मूर्ति में नहीं , मूर्ति पूजा में नहीं , अवतार और प्राण प्रतिष्ठा में नहीं , होम हवन और वैदिक मंत्र में नहीं वो है खुद तुम्हारे पास , तुम्हारे अंतकरण में ! तुम्ही राम हो , चेतन तत्व राम हो हरि हो शिव हो ! तुमसे अलग कोई खुदा नहीं ! खुदी को कर बुलंद इतना की खुदा तुमसे खुद पूछे बता तेरी मर्जी क्या है , वही तुम्हारी गति होगी ! सद्गति चाहो तो सद्गति मिलेगी दुर्गति चाहो तो दुर्गति होगी !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दधर्म_विश्वपीठ