#शब्द : ७२
चलहु का टेढो टेढ़ों टेढ़ों : १
दशहूँ द्वार नरक भरि बूडे, तू गन्दी को बेड़ों : २
फूटे नैन वृदय नहिं सूझे, मति एकौ नहिं जानी : ३
काम क्रोध तृष्णा के माते, बूडि मुये बिनु पानी : ४
जो जारे तन भस्म होय धुरि, गाड़े किरमिटी खाई : ५
सीकर श्वान काग का भोजन, तन की इहै बडाई : ६
चेति न देखु मुग्ध नर बौरे, तोहि ते काल न दूरी : ७
कोटिन यतन करो यह तन की, अन्त अवस्था धुरी : ८
बालू के घरवा में बैठे, चेतत नहिं अयाना : ९
कहहिं कबीर एक राम भजे बिनु, बूडे बहुत सयाना : १०
#शब्द_अर्थ :
दशहु द्वार : शरीर में दस छिद्र !; गन्दी = गंदगी ! बेड़ों = जहाज ! किरमिट = कीड़े ! सीकर = सियार ! मुग्ध = मोह ग्रस्त ! अयाना = बोला , अडानी , अज्ञानी ! सयाना = होशियार , ज्ञानी !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाई अहंकार मत करो , किस बात का घमंड ? जिस का तुम घमंड अहंकार कर रहे हो वो तन वो शरीर जिस की सुंदरता में तुम मोहग्रस्त हो मदमस्त हो वो काई वैसा ही रहने वाला नहीं है बालपन , तरुण , वृद्धा अवस्था , रोग आदि से गुजर कर एक दिन ये प्रिय शरीर तुम्हे बोझ लगाने लगेगा ! इस शरीर को ठीक से देखो नाक कान आंख बेंबी मुख और मूत्र मार्ग गुदा से गंदगी बाहर आकर बहती रहती है ! अंदर गंदगी भरी पड़ी है ! इस का तुम्हे घमंड हो गया ? कितने मूर्ख हो ! अरे भाई इस तन की काई बढ़ाई ना करो , तन से राम हट जाए तो निर्जीव तन को लोग तुरंत अपने से दूर करते है , उसे कौवे गिद्ध सियार कुत्ते नोच नोच कर खाते है मिट्टी में दफनावो तो मिट्टी के कीड़े चट कर जाते है , मिट्टी मिट्टी बना देती है , जलवो तो लकड़ी के धुवां बन कर धुवां बन कर उड़ जाती है और मुट्ठी भर राख बन जाती है ! ऐसे तन की तुम बढ़ाई करते हो ! सुंदर दिखाने वाला ये तन एक दिन झूर्रिया दाग धब्बे से भर जाता है और खुद ही खुद को पहचान नहीं पाते हो उस तन को सोने चांदी हीरे मोती से सजावा तब भी एक दिन विद्रूप होगा ही ऐसे तन के मोहजाल में फंसे हो उसकी इच्छा तृष्णा में फंसे हो , भाई जागो !
कबीर साहेब इस शरीर को बालू का घर कहते है, सीकर श्वान का भोजन कहते है , कीड़े का खाना कहते है , नर्क का द्वार कहते है , धुवां और राख कहते है और सभी ज्ञानी अग्यानी को चेताते हुवे कहते है शरीर का माया मोह आसक्ती बेकार है , जितना जल्दी त्यागो उतना अच्छा क्यू की वह नाशिवंत है , मिटने वाला है ! अमर अजर अविनाशी केवल एक तत्व है चेतन राम ! निर्गुण निराकार अविनाशी परमतत्व परमात्मा चेतन राम ! उसकी भक्ति करो जब तक वो शरीर में है वो जीव है वरना निर्जीव ! उस सजीव सदाशिव को पहचानो उसकी बात मानो भ्रम में ना पड़ो ! उसी में मन की स्थिरता , सुख और शांति है ! नैतिक शील सदाचार के आचरण से राम के दर्शन होते है अन्य कोई मार्ग नही !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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