#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६७ : जो पै बीज रूप भगवान !
#शब्द : ६७
जो पै बीज रूप भगवान, तो पण्डित का पूछो आन : १
कहाँ मन कहाँ बुधि कहाँ हंकार, सत रज तम गुण तीन प्रकार : २
विष अमृत फल फले अनेका, बहुधा वेद कहै तरबे का : ३
कहहिं कबीर तैं मैं क्या जान, को धौं छूटल को अरुझान : ४
#शब्द_अर्थ :
आन = अन्य , दूसरा ! बहुधा = बहुत प्रकार , विविध ! धौं = भला ! छूटल = मुक्त ! अरुझान = बंधा !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पण्डित पाण्डे पुजारी ब्राह्मण सभी वैदिक धर्म गुरु शंकराचार्य , काशी के वैदिक पंडित से पूछते है तुम्हारा वास्तविक वैदिक ब्राह्मणधर्म क्या है ?
तुम कहते हो सुवर की नाक से विष्णु पैदा हुआ , विष्णु के पेट से कमल पर बैठा चार मुख वाला पके बाल , सफेद दाढ़ी बाल वाला ब्रह्मा पैदा हुआ , तुम कहते हो ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मण पैदा किया , भुजा से क्षत्रिय , पेट से वैश्य और पाव से शुद्र पैदा किया , इस प्रकार चार वर्ण धर्म का तुम पुरस्कार करते हो और उसे वर्णधर्म कहते हो ! फिर तुमने त्रिगुण और त्रि देव बताते हो और सत रज तम इन त्रि गुण से मानव में भेदाभेद , अस्पृश्यता विषमता छुआछूत और अनेक जाती भी, वर्ण संकर से उपजाति , जाती बाह्य अस्पृश्य का समर्थन करते हो और उसलिए विषमता , अस्पृश्यता उचनिच , भेदाभेद का समर्थन करने वाली मनुस्मृति का दण्ड विधान बताकर चार वर्णधर्म को असंख्य जातीधर्म में परावर्तित कर अपरिवर्तनीय जातिधर्म , वर्णधर्म का पुरस्कार करते हो !
फिर तुम तुम्हारा विदेशी यूरेशियन वैदिक का तुम्हारे देश यूरेशिया में चलित वैदिक होम हवन में बलि प्रथा में गाय घोड़े जैसे गोमेध , अश्वमेध का समर्थन करते हुवे होम अग्नि अग्नि से साक्षात विस शरीर ब्रह्मा , रुद्र इंद्र सोम वरुण विष्णु आदि ब्राह्मण वर्ण जनेऊ धारी देवता प्रगट होते है कहते हो और सोम रस , दारू , घोड़े के साथ लैंगिक वेभीचार का समर्थन करते हो , होम हवन के बलि दिए गाय के अंतड़ी का जनेऊ बनाकर पहनते हो और उसे अग्नि पवित अर्थात जनेऊ कहते हो !
तुम अब होम हवन से साक्षात प्रगट होते देवी देवता नहीं आते देख और वैदिक मंत्र में कोई दम नहीं जान कर उन त्रि देव का समूह बनकर प्रमुख देवता और उप करोड़ो देवता बताते वो और उनके मिट्टी , पत्थर के पुतले वैदिक मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा की बात करते हो , करोड़ों देवी देवता उसके अवतार , उप अवतार , स्वामी बाबा की बात करते हो , साथ साथ तुम्हने वैदिक होम हवन की पूजा पद्धति बनाई रखी है ताकि वर्ण जाति उचनीच विषमता अस्पृश्यता आदि अमानवीय विचार कायम रहे !
तुम एक ब्रह्म की बात करते हो और द्वैत अद्वैत की बात करते हो हिंदुस्तानी मूलभारतीय हिन्दूधर्म मानवधर्म के मानवता शील सदाचार भाईचारा समता अहिंसा की बात भी अब करने लगे हो , कर्म सिद्धांत , कर्म फल , कार्य कारण भाव सिद्धांत आदि का विचार अमानवीय वैदिक ब्राह्मणधर्म में मिलाकर और सांख्य , वेदांत आदि विचार भी वर्ण जाती वाद के साथ मिलाकर ब्राह्मणवाद का समर्थन करते हो वर्ण जाति को मजबूती देने के लिए गोत्र , पाप पुण्य, पुनर्जन्म , अवतार, पत्थर की मूर्ति पूजा आदि का विचार धर्म मे मिलाकर उसपर अपना वैदिक धर्म का उल्लू सिधा करना चाहते हो !
आखिर तुम्हारे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का मूल सिद्धांत एक ही है भारतीय समाज को बेवकूफ बनाकर उनसे दान दक्षिणा लेते रहना , असंख्य देवी देवता की पूजा कराते रहना , जाती वर्ण व्यवस्था बनाए रखना विषमता अस्पृश्यता उचनिच भेदाभेद छुआछूत आदि अमानवीय विचार बनाए रखना !
धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म की पोल खोलने के बाद अपने आदिम सनातन पुरातन सिंधु हिन्दू संस्कृति के पूर्व काल से चला आ रहा मूलभारतीय हिन्दूधर्म का मानवता वादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा का मानवीय धर्म का समर्थन करने की बात करते है और विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म त्याज्य मानते है !
मन चंगा तो कटोरी में गंगा !
#धर्मविक्रादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ,
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