#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ४९ : बुझ बुझ पण्डित पद निर्बान !
#शब्द : ४९
बुझ बुझ पण्डित पद निर्बान, साँझ परे कहवाँ बसे भान : १
ऊंच नीच पर्वत ढेला न ईट, बिनु गायन तहवां उठे गीत : २
ओस न प्यास मंदिर नहिं जहवाँ, सहसों धेनु दुहावैं तहवाँ : ३
नित अमावस नित संक्रांति, नित नित नौग्रह बैठे पाँति : ४
मैं तोहि पूछौं पण्डित जना, हृदया ग्रहण लागु केहि खना : ५
कहहिं कबीर इतनो नहिं जान, कौन शब्द गुरु लागा कान : ६
#शब्द_अर्थ :
पद निर्बान = निर्वाण पद ! साँझ = मृत्यु , समाधि ! भान = सूर्य , चेतना ! सहसों धेनु = हजारों उल्हासित वृत्तियां ! संक्रांति = ग्रहों का गमन ! नौग्रह = नव ग्रह , नव वृत्तियां ! खना = क्षण !
#प्रज्ञा_बोध :
कबीर साहेब विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पण्डित पुजारी ब्राह्मण से पूछते है बताओ पंडितो तुम्हारे वेद ,मनुस्मृति में निर्वाण के बारे में क्या कहा गया है ? तुम तो कहते हो हम ब्राह्मण है ब्रह्मा के बेटे है ब्रह्मा के मुख से पैदा हुवे है , ब्रह्मा इन्द्र रुद्र सोम इत्यादि देव अमर है , विष्णु अवतार लेता है ! उस विष्णु की उत्पति तुम वराह की नाक से बताते हो , ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु के पेट से बताते हो और तुम्हारी उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से बताते हो और बताते हो सारे देव जो होम हवन से सशरीर प्रगट होते है और वर देकर अदृश्य होते है वे तुम्हारे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद मंत्र के अधीन है और मंत्र ब्राह्मणों के अधीन है ! बतावो है कोई यहां मोक्ष , निर्वाण ! तुम कहते हो ब्राह्मण को कोई पाप नहीं लगता , गैर ब्राह्मण कभी ब्राह्मण बन नहीं सकता , और वे नर्क में जाते है , स्वर्ग ब्राह्मणों की बपौती है ! ऐसा तुम्हारा विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म जाती पाती वर्ण व्यवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता छुआछूत आदि को मानने वाला धर्म दर असल अधर्म और विकृति के शिवाय कुछ नहीं वो क्या जानेगा निर्वाण , मोक्ष को !
विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ज्योतिष तो नौ ग्रह , ग्रहण अमावस्या ,संक्रमण , संक्रांत आदी की आकाशीय घटना को भुनाते है डराते हेयर अपना उल्लू सीधा करते है गरीब गैर ब्राह्मण मूलभारतीय को इन का दुष्परिणाम आदि का डर दिखाकर लूटते है वे क्या जाने मोक्ष , निर्वाण ! ब्राह्मण तो शांति देने के बजाय लोगों के हृदय में डर अशांति भर देते है ! वे क्या जाने मोक्ष, निर्वाण!
मूलभारतीय हिन्दूधर्म मोक्ष , निर्वाण पद की गरिमा जानते है ! ज्योति का बुझ जाना या जीव का मृत्यु होना मोक्ष नही ! निर्वाण नही ! निर्वाण की अवस्था जीते जी शांति , तृष्णा की समाप्ति की है ! यहां बाहरी देव देवता पूजा अर्चना ग्रह तारे आदि से कोई लेना देना नहीं ! कबीर साहेब चेतन राम के स्वरुप को प्राप्त होना को मोक्ष, निर्वाण मानते है जो तृष्णा के विलय की बाद की अवस्था है !
विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म किस प्रकार अलग अलग है ये बात यहां स्पष्ट करते है उसी प्रकार उस समय के अन्य धर्म को भी कबीर साहेब खारिज करते हुए मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार के मार्ग से चलने की शिक्षा देते है ताकि लोग सही मार्ग पर चलकर मोक्ष निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिंदूधर्म_विश्वपीठ
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