#शब्द : ६१
मरिहो रे तन का लै करिहो, प्राण छुटे बाहर लै डरियो : १
काया बिगुर्चन अनबनि भाँति, कोई जारे कोइ गाड़े माटी : २
हिन्दू ले जारे तुरुक ले गाड़े, यहि बिधि अंत दुनो घर छाड़े : ३
कर्म फ़ाँस यम जाल पसारा, जस धीमर मछरी गहि मारा : ४
राम बिना नर होईहैं कैसा, बाट माँझ गोबरौरा जैसा : ५
कहहिं कबीर पाछे पछतैहो, या घर से जब वा घर जैहो : ६
#शब्द_अर्थ :
बिगुर्चन = बिगुचना , उलझन ! अनबनि = बिगड़ा ! अंत = मरने पर ! गोबरौरा = गोबर का कीड़ा ! या घर = सँसार , नर योनि ! वा घर = पशु योनि , पशु जन्म , नरक !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते भाईयो सुनो हम सब मर्त्य है , अमर कोई नहीं एक चेतन राम के शिवाय ! मृत्यु के बाद इस शरीर का विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग क्या करते है ? विदेशी तुर्की धर्म के लोग क्या करते है ? या तो वे जलाते है या दफनाते है ! मृत्यु के बाद प्राण रहित इस नश्वर शरीर की यही दशा होती है ! फिर इस शरीर का घमंड किस लिऐ , अहंकार किस लिऐ ?
कबीर साहेब कहते है भाई कर्म फांस और कर्म फल से कोई बच नहीं सकता ! हम सब मछली जैसे है जो धीमर के जाल में आ गया वो मर गया ! इस लिये संसार में जो मृत्यु का जाल बिछा है उसे देख कर चलो , उस से बचो और जीवित रहते अच्छे कर्म करो , यही मौका है सदधर्म का पालन कर जीवन को सफल बनानेका नहीं तो नर्क के कीड़े गोबरेला जैसे तुच्छ वस्तु गोबर मल को जीवन का यथार्थ समझकर इकठ्ठा करते रहोगे और अंत में पछताओगे !
कर्म फल के सिद्धांत को पहचानो मूलभारतीय हिन्दूधर्म इसी कर्म फल को आसान भाषा में बताते हुवे कहता है , जिसे करोगे वैसे भरोगे ! वैदिक अधर्म के रास्ते पर चलोगे तो अंततः तुम नर्क कीड़े बनोगे जैसे गोबर का कीड़ा है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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