#शब्द : ५०
बुझ बुझ पण्डित बिरवा न होय, आधे बसे पुरुष आधे बसे जोय : १
बिरवा एक सकल संसारा, स्वर्ग शीश जर गयी पतारा : २
बारह पखुरिया चौबिस पात, घने बरोह लागे चहूँ पास : ३
फूले न फले वाकी है बानी, रैन दिवस बेकार चुवै पानी : ४
कहहिं कबीर कछु अछलो न तहिया, हरि बिरवा प्रतिपालेनि जहिया : ५
#शब्द_अर्थ :
बिरवा = वृक्ष , संसार रूपी वृक्ष ! पुरुष = चेतन तत्व राम ! जोय = पत्नी , प्रकृति , माया ! स्वर्ग = ऊपर , आकाश ! पतारा = पाताल , जमीन के अंदर , नीचे ! पखुरिया = फूलों की पंखुड़ियां , गुच्छे ! बरोह = जटा , लता ! बानी = स्वभाव ! अछलो = अकेला !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से पूछते हैं हे ब्राह्मणों बतवों तुम्हारे वैदिक धर्म में संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? तुम कहते हो तुम्हारे ब्रह्मा की उत्पति विष्णु के पेट से हुई और तुम्हारी उत्पत्ति उस ब्रह्मा के मुख से और तुम मानव को जाती वर्ण उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता छुआछूत में बाटकर चार वर्ण उसी ब्रह्मा ने बनाया तो ब्राह्मणी किस ने और कैसे बनी ! पेड़ पौधे किधर से पैदा हुवे ? कुछ जानते नहीं और खुद को ज्ञानी पंडित बताते हो और मानव का शोषण करते हो !
सुनो मैं तुम्हे बताया हुं एक चेतन तत्व राम से ये संसार रूपी वृक्ष की निर्मिती हुई ! जब संसार बना नहीं था तब चेतन तत्व राम निर्वाण अवस्था में था और संसार की निर्मिती भी निर्वाण की अवस्था में संसारी जीव जन्तु प्राणी सब को जीने के लिये की गई पर संसार के जीव वो भूलकर , चेतन राम के स्वरुप को भूलकर संसारी जीव मै मै , ये मेरा करने लगे तब माया मोह इच्छा अहंकार में पन निर्माण हुआ और ये संसार उसी मै मेरा अहंकार में ग्रस्त होकर जीव अर्थात चेतन राम, प्रज्ञा बोध को भूलकर जड़ अर्थात पृथ्वी तत्व को ही सब कुछ समझ कर माया मोह में दिनरात , बारह महीने बस जड़ धन संपत्ति, पद प्रतिष्ठा , राज पाट में उलझकर रह गया नतीजा ये हुआ कि ब्राह्मणों अपने स्वार्थ के लिये विषमता शोषण की व्यवस्था को धर्म बताने लगे जब वो विकृति और अधर्म हैं !
कबीर साहेब कहते है आसक्ति , मोह माया ने न केवल जड़ को मजबूती से जकड़ लिया उसकी जाटा और बेली ने भी संसार के वृक्ष को जकड़ लिया ! संसार के वृक्ष में मोह माया इच्छा अधर्मि विकृत ब्राह्मण के रहते सुख शांति कैसे मिलेगी , अधर्म का पालन करोगे तो मुक्ति कैसे मिलेगी ? इन प्रपंची विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंके बहकावे में मत आवो वो तुम्हे सुखी देखना नहीं चाहते वो संसार और चेतन तत्व राम का सत्य स्वरूप से अवगत नहीं कर सकते क्यू की वो जानते ही नहीं उन्होंने स्वर्ग नरक , ज्योतिष कुंडली, होम हवन , झूठे देवी देवता का जाल बुन रखा है ! राम के दर्शन उस मार्ग से संभव नहीं ! न इस जन्म में ब्राह्मण धर्म तुम्हे सुख देगा न मरणोत्तर तुम्हे सुखद गति प्राप्त होगी !
सुख चाहते हो तो अपना स्वदेशी मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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