#शब्द : ६९
जंत्री जंत्र अनुपम बाजे, वाके अष्ट गगन मुख गाजे : १
तू ही बाजे तू ही गाजे, तूहि लिये कर डोले : २
एक शब्द मो राग छतीसों, अनहद बानी बोले : ३
मुख कै नाल श्रवण कै तुम्बा, सतगुरू साज बनाया : ४
जिभ्या के तार नाशिका चरई, माया का मोम लगाया : ५
गगन मंडल में भया उजियारा, उल्टा फेर लगाया : ६
कहहिं कबीर जन भये विवेकी, जिन जंत्री सो मन लाया : ७
#शब्द_अर्थ :
जंत्री = यंत्री , चेतन राम, बाजा बजाने वाला ! जंत्र = यंत्र , वीणा, बाजा ! अनुपम = विलक्षण ! अष्ट = आठ , कमल ! गगन = आकाश , खोपड़ी ! मुख : द्वार ! गाजे = गर्जना करना , आवाज करना ! अनहद : अन सुनाई आवाज ! नाल = डंडी ! तुम्बा = लुकी का खाली गोल ! चरई = खूंटी! माया = चमड़ा ! गगन मंडल = खोपड़ी, आकाश ! जंत्री = चेतन राम, परमात्मा चेतन राम स्वरूप कबीर !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो अपना शरीर एक वाद्य यंत्र वीणा जैसा है ! इसमें मुख एक डंडी जैसा है , कान दोनों तरफ लगे तुम्बे है , जीभ तार है नाक खूंटी है और तुम्बे पर चाम अर्थात चमड़ा चढ़ाया है और उसे माया के मोम से पकड़ रखा है ! साज का आवाज ऊपर यानी खोपड़ी में जा कर फिर उल्टा फेर लेकर मुख तक नाक के कम ज्यादा मात्रा अनुपात से छत्तीस वर्ण से अनेक शब्द से ये वीणा निर्माण करने वाला परमात्मा चेतन राम अपनी अनसुनी अनहद , अनाघात वाणी से पूरा मानव शरीर सम्मोहित कर उसे नानाविधि कर्म करता है !
कबीर साहेब कहते भाई यह मानव शरीर तो बड़ा आलौकिक विलक्षण अनुपम है पर इसमें ही ना रमो उसे बनाने वाले चेतन राम परमपिता परमेश्वर परमात्मा को पहचानो ! यह वीणा रूपी बाजा बड़ा अच्छा है पर अगर उसमें गलत गीत बजवोगे तो पछताओगे ! वीणा यानी इस शरीर से परमात्मा के गुण गांवों ना की अपना अहंकार सुनावो !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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