#शब्द : ६६
योगिया के नगर बसो मत कोई, जो रे बसे सो योगिया होई : १
ये योगिया के उलटा ज्ञान, काला चोला नहिं वाके म्यान: २
प्रगट सो कंथा गुप्ता धारी, तामें मूल सजीवन भारी : ३
वो योगियो की युक्ति जो बुझे, राम रमै तेहि त्रिभुवन सूझे : ४
अमृत बेली छिन छिन पीवै, कहैं कबीर योगी युग युग जीवै : ५
#शब्द_अर्थ :
नगर = समाज , संसार ! काला चोला = मैल मन ! म्यान = मध्य भाग , शरीर ! कंथा = गुदड़ी , शरीर ! गुप्ता धारी = गुप्त शस्त्र धारी ! मूल सजीवन = संजीवन , चेतन तत्व, राम ! भारी = महान ! युक्ति = चाल, हाथ चलाखी ! त्रिभुवन = सारा विश्व ! अमृत बेली = अमृत लता , स्वरूप , चेतन तत्व ! युग युग जीवै = मोक्ष निर्वाण प्राप्त !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो आज कल जहां देखो वहां योगी बड़े करामात , खेल दिखाते नजर आ रहे है वे केवल नजर का खेल है जैसे नींबू काटना और लाल रंग का अर्क आना जिसे इनके जैसे बेहूदे योगी खून बताते हुवे लोगोंको डराते है और पैसा एटते है ! ये लोगोंको डरने के लिये काले लिबास भी पहनते है और गुप्ति आदि शस्त्र भी रखते है , न इनका तन साफ है न मन साफ है !
ये ढोंगी योगी खुद को बड़े तपस्वी बताते है पर सब झूठ है कुछ हाथ की सफाई और वस्तु के मिश्रण आदि से कुछ करामात , खेल , जादू दिखाने की कला उन्होंने गुरू से सिख ली इसे ही वे ज्ञान , विद्या योग सिद्धि कहते है ! इस पर ही इनका गुरूर है , अहंकार है!
ये योगी कच्चे गुरु के चेले है और माल कामना यही उनका फंडा और धंधा है , इनके जाल में मत फंसो ये काई सच्चा धर्म ज्ञान नहीं बस ऊपरी सतही शो बाजी है ! योग के नाम से उल्लू बनकर पैसा धन कमाना , भौतिक सुख सुविधा हासिल करना यही इनकी मनीषा है , ये धर्म के विपरीत जीवन जीते है झूठ फरेब है, भौतिक सुख यही इनका धर्म है !
मूलभारतीय हिन्दूधर्म का इनको जरा भी ज्ञान नहीं ना वो शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करते है न इसे चरितार्थ करते है तो इन कच्चे गुरु के चेलोंको अमरत्व , मोक्ष, निर्वाण , कैसे प्राप्त होगा ? ये राह भटके लोग है , हट धर्मीता ही इनका योग है ! इसमें कोई राम नही !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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