#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६२ : माई मैं दूनों कुल उजियारी !
#शब्द : ६२
माई मैं दूनों कुल उजियारी : १
सासु ननद पटिया मिलि बंधलो, भसुरहि पारलों गारी : २
जारों माँग मैं तासु नारि की, जिन सरवर रचल धमारी : ३
जना पाँच कोखिया मिलि रखालों, और दुई औ चारी : ४
पार परोसिनि करों कलेवा, संगहि बुधि महतारी : ५
सहजे बपुरे सेज बिछावल, सुतलिऊं मैं पाँव पसारी : ६
आवों न जावों मरों नहिं जीवों, साहेब मेट लगारी : ७
एक नाम मैं निजु कै गहलौं, ते छूटल संसारी : ८
एक नाम मैं बदि कै लेखों, कहहिं कबीर पुकारी : ९
#शब्द_अर्थ :
माई = चेतन , आत्म ! मै = स्वरूपस्थ राम चेतन तत्व, स्वभाव , वृत्ति ! दुनों कुल = व्यवहार और परमार्थ ! सासु = संशय ! ननद = कुमति ! भसुर = जेठ, अहंकार ! तासु नारि = अविद्या ! सरवर = सरोवर, अंतकरण ! धमारीं = उपद्रव ! जना पाँच = पाँच इंद्रिय ! कोखिया = कोख , पेट ! दुई = शुभ अशुभ ! चारी = चार अंतकरण वृत्ति ! पार परोसिनि = सर्व साधारण ! कलेवा = भोजन ! सहजे = सहज स्वरूप ! साहेब = सदगुरु , चेतन राम कबीर ! मेट = नष्ट ! लगारी = लगाव ! बदि = बोलना ! लेखों = विचार !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो इस सृष्टि में केवल ही वस्तु अविनाशी है वो है चेतन तत्व राम , निर्गुण निराकार अविनाशी परमतत्व चेतन राम !
जीव , मानव शरीर मर्त्य है वह मोह माया इच्छा ग्रस्त है उसके पॉच इंद्रिय , अंतकरण की वृत्तीया , स्वभाव जरूरतें उसपर अमल करते है और कुमति उसकी दुर्गति करती है , अहंकार उसे दूसरे का तिरस्कार करता है , अविद्या , संशय उसे अधर्म और विकृति असभ्यता बना देते हैं !
कबीर साहेब सहज वृत्ति को धर्म कहते है कोई दिखावा नहीं , सत्य मार्ग को सहज मार्ग कहते है ! कबीर साहेब इस संसार को वास्तविक मानते हुवे उसे सत्य , शिव , सुंदर मानते है , स्वार्थ नहीं , परमार्थ ही परमार्थ दूसरे का कल्याण सोचो कहते है, कल्याणकारी मानते है ! व्यवहार और परमार्थ दोनों को एक जैसा मानने की सिख देते है ताकि दोनों में धर्म का पालन हो तो मानव जीवन कृतार्थ होगा ! कबीर साहेब कहते हैं मैने जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म मार्ग बताया है उसपर चलो तो अवागमन , जन्म मृत्यु के फेरे से मानव को मुक्ति मिले ! परमेश्वर परमपिता चेतन तत्व राम कबीर के दर्शन हो !
#धर्मविक्रमादित्य_परमहंस_दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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