#शब्द : ७१
चातुक कहाँ पुकारो दूरी, सो जल जगत रहा भरपूरी : १
जेहि जल नाद बिंद को भेदा, षट कर्म सहित उपनेउ वेदा : २
जेहि जल जीव शीव को बासा, सो जल धरणी अमर परकाशा : ३
जेहि जल उपजल सकल शरीरा, सो जल भेद न जानु कबीरा : ४
#शब्द_अर्थ :
चातुक = चातक पक्षी , आशा! जल = पानी , तृप्ति ! नाद = आवाज, शब्द! बिंद = बूंद , वीर्य ! षट कर्म = ब्राह्मण कर्म , कार्य , कर्मकांड ! जीव = सामान्य मानव ! शीव = कल्याणकारी ! अमर = अविनाशी !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो चातक पक्षी तो आप जानते हो पीयू पीयू की आवाज करता है लोग सोचते है वह केवल स्वस्ति नक्षत्र में बारिश का आकाश से बरसा पानी ही पीता है और उस नक्षत्र में बारिश नहीं हुई तो साल भर प्यासा ही रहता है हालांकि ये सच नहीं पानी पानी में कोई भेद नहीं हर नक्षत्र का पानी एक समान होता है और प्यास बुझाता है !
विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण लोगोने पानी को लेकर अनेक भ्रामक धारणाएं बनाई और फैलाए रखी है , मकसद है तीरथ , गंगा स्नान , पवित्र जल गंगा जल आदि की भ्रामक धारणाएं फैलाकर लोगोंसे कर्मकांड कराना पैसा दान दक्षिणा सोना चांदी जमीन जायजाद सामान्य लोगोंसे एटना ! इस कर्मकांड का जाल वेद , वैदिक होम हवन , उपवेद , मनुस्मृति में शुद्धिकरण पाप मोचन आदि के नाम पर किया जाता है यहाँ तक कि मृत व्यक्ति के मुख में गंगा जल डालकर उसे स्वर्ग मिलेगा कहना भी एक ढकोसला है !
कबीर साहेब कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से बचो, वो तुम्हे कंगाल बना देंगे ! पानी पानी में कोई भेद नहीं ये शरीर भी पानी से ही बना है , परमात्मा , चेतन राम ने पानी एक जैसा बनाया है , मिलावट करो , रंगीन करो तो वैसा हो जायेगा जैसा मीठा, खारा , हरा लाल पर चेतन राम ने पानी शुद्ध रूप में बनाया उसमें कोई भेदाभेद नहीं वहां कोई अस्पृश्यता विषमता छुआछूत नहीं !
ये विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोगोंकी चाल है पानी को छुआछूत से जोड़ना , शुद्धिकरण से जोड़ना , पाप मुक्ति से जोड़ना ! पानी का स्वरूप कल्याणकारी है एक जैसे गुणकारी है वह किसीसे कोई भेदाभेद नहीं करता जैसे परमात्मा चेतन राम !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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