#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ७६ : आपन पौ आपुहि बिसरयो !
#शब्द : ७६
आपन पौ आपुहि बिसरयो : १
जैसे श्वान काँच मंदिर में, भरमित भूसि मरयो : २
ज्यों केहरि बपु निरखि कूप जल, प्रतिमा देखि परयो : ३
वैसे ही गज फटिक शिला में, दशनन आनि अरयो : ४
मर्कट मुठि स्वाद नहिं बिहुरे, घर घर रटत फिरयो : ५
कहहिं कबीर ललनी के सुवना, तोहि कवने पकरयो : ६
#शब्द_अर्थ :
आपन पौ = अपना स्वरूप ! भूसि = भौंकना ! केहरि = सिंह ! बपु = देह ! प्रतिमा = परछाई ! गज = हाथी ! फ़टिक शिला = स्पटिक पत्थर ! दशनन = दांत ! अरियो = टक्कर मारना ! मर्कट = बंदर ! नहिं बिहुरे = बंधन से नही छूटा ! ललनी = बास की चरखी ! सुवना = शुक पंछी !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो आप ही अपने स्वरूप को भूल गये हो ! आप ही अपने भीतर के चेतन राम स्वरूप को भूल गये हो !
जैसे किसी कुत्ते को काँच घर यानी शीशे के घर में बंद कर दो तो वह शीशे में अपनी ही प्रतिमा को दूसरा कुत्ता समझकर भौंकते भौंकते मर जाता है पर लड़ना भौंकना नही छोड़ता जैसे जंगल का सिंह अपनी ही प्रतिमा कुवे के पानी में देख कर उस प्रतिमा को दूसरा शेर अपना शत्रु और प्रतिबंद्धि मान कर कुवे में छलांग लगा कर पानी में डूब कर मर जाता है , जैसे हाथी अपनी प्रतिमा स्पटिक पत्थर में को दूसरा हाथी समझकर सर मार मार कर लहू लोहान होकर अंत में मर जाता है जैसे बंदर पूरे जंगल के पेड़ के फल खाते रहने के बाद भी कुछ चनों के लिये सींग दाने के लिये बंदर पकड़ने वाले मदारी के चने के लिये अपना हाथ फंदे में डालकर पकड़ा जाता है और जिंदगी भर जम्भुरा बन कर मदारी के इशारे पर करतब नाच दिखाया मर जाता है , जैसे सुवा पंछी , तोता कुछ हरि मिर्ची के लालच में लकड़ी के पिंजरे में कैद हो जाता है और पंख तोड़ दिये जाते है ताकि उड़ ना सके और पूरी जिंदगी एक गुलाम और कैदी जैसे जी कर मर जाता है वैसा ही हाल दुर्दशा मानव की हो रही है !
मूलभारतीय लोग अपने मूलभारतीय हिन्दूधर्म को भूलकर पराये धर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और विदेशी तुर्की मुस्लिमधर्म में फस गये है , वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार के अधर्म विकृति को अपनाकर , धर्मांतर कर उसके गुलामी लाचारी को स्वीकार कर अपना स्वरूप निर्भय मानवता , आजादी , समता खो गये है !
कबीर साहेब अपनी आजादी स्वतंत्रता सत्व को कभी ना भूलो का संदेश यहाँ देते है , लालच मोह माया के फंदे में ना अटको अपना देश धर्म समाज संस्कृति को पहचानो अपना अस्तित्व , मूलभारतीय हिंदूधर्म, मूलभारतीयपन ना खोवे यही सिख कबीर साहेब यहां देते हैं !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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