#शब्द : ७३
फिरहु का फूले फूले फूले : १
जब दश मास ऊधर्व मुख होते, सो दिन काहेक भूले : २
ज्यों माखी सहते नहिं बिहुरे, सोचि सोचि धन कीन्हा : ३
मुये पीछे लेहु लेहु करें सब, भूत रहनि कस दीन्हा : ४
देहरि लौं बर नारी संग है, आगे संग सुहेला : ५
मृतक थान लौं संग खटोला, फिर पुनि हंस अकेला : ६
जारे देह भस्म होय जाई, गाड़े माटी खाई : ७
काँचे कुम्भ उदक ज्यों भरिया, तन की इहै बडाई : ८
राम न रमसि मोह के माते, परेहु काल वश कुवा : ९
कहहिं कबीर नर आप बंधायो, ज्यों लालनी भ्रम सूवा : १०
#शब्द_अर्थ :
सहते = कष्ट सहनकर ! बिहुरे = छोड़ना ! भूत = बीता ! धन = संपत्ति ! देहरि = दरवाजे की चौखट ! सुहेला = प्रियजन ! मृतकथान = श्मशान घाट ! खटोला = खटिया , अर्थी ! हंस = जीव ! कुंभ = घड़ा ! उदक = पानी ! रमसि = रमना, निवास करना ! काल = अज्ञान ! कुवा = कूप ! ललनी = बॉस की नली जिसमें छोटी चरखी का सुग्गा फसा होता है ! शुक = शुक पंछी !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर बार बार मानव को उसके शरीर की नश्वरता बताते हुवे कहते है भाइयों क्यों इस नश्वर शरीर पर इतराते हो , घमंड करते हो ? जरा याद करों वो नौ मास जब तुम माँ के उदर में उल्टे लटके पड़े थे ! तब तुम्हारा काई बस नही चलता था ! चेतन राम की इच्छा और इजाजत के बैगर पत्ता तक नहीं हिलाता , तुम किस खेत की मूली हो ?
किसी मक्खी चूस की तरह तुमने जीवन भर धन दौलत संपत्ति बटोरने में लगा दिया , ये मेरा ये मेरा कहते रहे और अंत समय में केवल एक अर्थी पर तुम्हारी बिदाई हुई ! कोई साथ में नहीं आया न धन संपत्ति न प्रियजन , सब यही छूट गया ! अनेक लोगोके यही हाल तुमने देखे होंगे ! उनके शव को जलाते या मिट्टी में दफनाते देखे होंगे तब भी तुम नहीं जागते हो !
कबीर साहेब कहते हैं अरे भाई यह शरीर काँच के बर्तन जैसा है , तड़कते , टूटते देर नहीं लगती ! इस तन की बढ़ाई और शेखी बेकार है ! होश में आवो , चेतन तत्व परमात्मा राम को याद करो वो तुमसे क्या चाहता है ओर तुम क्या कर रहे हो जरा समझो ! वो राम चाहता है तुम गर्व ना करो , प्रेम से रहो , भाईचारे से रहो , झूठ ना बोले , चोरी ना करो , लालच ना करो , विषमता शोषण ना करो ! तुम सब उल्टा कर रहे हो धर्म के जगह अधर्म का पालन कर रहे हो , संस्कृति के बदले विकृति अपना रहे वो ! नीति , न्याय, शील सदाचार के बदले विकृत अधम पर धर्म अपना कर अपने भाई बहनों का शोषण कर रहे हो ! यह राम का काम नहीं रावण का काम है ! उसे छोड़ो , भाई तुम भ्रम से बाहर आवो !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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