#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #शब्द : ६८ : जो चरखा जरि जाय बढईया न मरै !
#शब्द : ६८
जो चरखा जरि जाय बढ़ेंया न मरे : १
मैं कातों सूत हजार,चरखुला जिन जरे : २
बाबा मोर बियाह कराव,अच्छा बरहि तकाय : ३
जों लों अच्छा बर ना मिलै, तों लौं तुमहि बिहाय : ४
प्राथमें नगर पहुंचते, परिगौ सोग संताप : ५
एक अचम्भव हम देखा, जो बिटिया ब्याहिल बाप : ६
समधी के घर लमधी आये, आये बहु के भाय : ७
गोडे दूल्हा दै दै, चरखा दियो दृढ़ाय: ८
देव लोक मरि जाएंगे, एक न मरे बढ़ाय : ९
यह मनरंजन कारने , चरखा दियो दृढ़ाय : १०
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, चरखा लखे जो कोय : ११
जो यह चरखा लखि परे, ताको अवागवन न होय : १२
#शब्द_अर्थ :
चरखा = शरीर , भवचक्र ! बढ़ेंया = मन! सूत हजार = हजारों कर्म ! बाबा = गुरु ! बरहि = वर , दूल्हा ! नगर = अंतकरण ! बिटिया = पुत्री, अविद्या ! बाप = पिता , जीव ! गोडे = पैर , चलना ! चूल्हा = भट्टी अज्ञान की आग ! बढ़ाय = आगे ले जाना ! मनरंजन = विषय लालसा !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है इस संसार में जीव बार बार जन्म लेता है क्यू की उसका संसार के प्रति मोह माया इच्छा कभी भरती नहीं , ये शरीर छूट जाता है तो वो दूसरा शरीर धारण करता है और फिर वही मोह माया इच्छा की पूर्ति में लग जाता है इस प्रकार भवचक्र भवसागर में जीव फसा हुआ है !
जीव का पिता मन है , जीव अपनी इच्छा मोह माया के पूर्ति के लिये मन को सदैव काम में लगाये रखता है वो मन से अधिक अधिक की मांग करता है और मन को शरीर के इच्छा पूर्ति के लिये गुलाम बना देता है जब की मन मालिक होना चाहिए जीव ने उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए पर यहां उल्टा ही हो रहा है जीव जो शरीर में बसता है उस शरीर के सारे अवयव जो भाईबंध , रिश्तेदार है सब को इच्छा पूर्ति के काम में लगा देता है पैर उसी तरफ आगे बढ़ते है जहां जीव चाहता है , दारू के अड्डे, चोरी के घर , वैश्या के मकान , जुवा घर सब प्यारे लगते है ! अच्छे लोग , ज्ञानी , राजे भी इस माया मोह से छुटे नहीं वो भी इसी भव चक्र में फंसे है !
मन के इस मनोरंजन का कोई अंत नहीं और जीव का भवचक्र तब तक मुक्तता नहीं जब तक प्रज्ञा बोध अर्थात चेतन राम अपने स्वरूप को पहचानते नहीं और जीव तृष्णा मोह माया इच्छा अधार्मिक त्याग कर मूलभारतीय हिन्दूधर्म के शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक दृष्टि का अपना मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन कर यह जीवन और कर्म नहीं सुधारता , तब तक वो बार बार जन्म मृत्यु के फेरे में कर्म फल भोगता रहेगा , यही वह चरखा है जिसका वर्णन कबीर साहेब हम को समझाने के लिए कर रहे हैं !
चरखा में कर्म का हजारों सूत कातना छोड़ो , पहले बुरे कर्म करना छोड़ो तो एक कदम आगे बढ़ोगे और अंततः सारे कर्म फल भी गिर जायेंगे और जीव भव सागर से मुक्त होगा ! वही सच्चा सुख है शांति है ! वही परमात्मा कबीर पद चेतन राम है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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