#शब्द : ५१
बुझ बुझ पण्डित मन चितलाय, कबहि भरलि बहै कबहिं सुखाय : १
खन ऊबै खन डूबै खन औगाह, रतन न मिलै पावै नहिं थाह : २
नदिया नहिं सांसरि बहै नीर, मच्छ न मरे केवट रहै तीर : ३
पोहकर नहिं बाँधल तहाँ घाट, पुरइनि नाहिं कँवल मैह बाट : ४
कहहिं कबीर ये मन का धोख, बैठा रहै चला चहै चोख : ५
#शब्द_अर्थ :
खन = क्षण ! औगाह = पानी के भीतर खोज , सुर लगाना , डुबकी लगाना ! रतन = रत्न , मोती , ज्ञान ! सांसरि = निरंतर प्रवाह ! मच्छ = मछ्ली ! केवट = मछुआरा , साधक ! पोहकर = पोखरा , तालाब ! पुरइनि = पेड़ के नीचे सुस्त बैठ कर हवा खाना ! कँवल = कमल फूल , सुखद अवस्था ! चोख = बढ़िया !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पाण्डे पुजारी ब्राह्मण से पूछते है हे ब्राह्मणों बतावों तुम्हारे मन की थाह कभी तुमने ली है ? लोगोंको तुम गलत धर्म बताते हो अधर्म को धर्म कहते हो , विकृति को तुम संस्कृति कहते हो , वर्ण जाति वेवस्था उचनीच भेदाभेद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार तुम्हारे मन में सदा बसे रहते है उसपर क्या तुमने कभी गहन अध्ययन विचार किया है ? या बस होमहवन , गाय घोड़े की बलि , झूठे देवी देवता और पत्थर पूजा आदि में ही रम रहे ? कभी अंतरात्मा में बसे घट घट निवासी चेतन तत्व राम के दर्शन किये या केवल तोताराम बनकर राम राम रटते रहे और पराया माल हड़पते रहे !
भाइयों सुनो मन के विकार मोह माया अहंकार आलस लालच है ! ये जब तक मन में रहेंगे मन एकाग्र नहीं होगा और यहां वहां भटकता रहेगा ! उस अनमोल रतन राम को चाहते हो तो बिना मन में उतरे और मोह माया को त्यागे आगे नहीं बढ़ पावोगे बिना मन के सागर में डुबकी लगाए मोती हीरे रतन नहीं मिलेंगे ना तालाब के किनारे किसी पेड़ के नीचे सुस्ताते हुवे हवा खानेसे किसी मछुआरे को मछली मिलेगी , रतन की बात तो और ही है !
चेतन राम कमल के उस पुष्प जैसा है जो अति सुंदर और ऐश्वर्य का प्रतीक है , उसे पाना है तो मन के जल में उतर कर मोह माया का मैल न लगे इस तरह संसार में जी कर ही उत्तम फूल कमल और फल प्राप्त होता है !
पंडितों बाहर के अवडंबर , दिखावा अंधश्रद्धा , झूठे देवी देवता , झूठी प्राणप्रतिष्ठा , अवतार आदि ढकोसले को छोड़ो अपने मन के भीतर देखो ! मन का मैल साफ किये बैगर राम के दर्शन कहाँ संभव है ?
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरू_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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