Tuesday, 4 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 25

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 1 : 25

चाचर  : 1 : 25

कहहिं  कबीर  ते  ऊबरे , जाहि  न  मोह  समाय  ! 

शब्द  अर्थ  : 

कहहिं  कबीर  = कबीर  कहते  है  ! ते  = वे  लोग  ! ऊबरे  = भव  सागर  से   पार  होते  है  !  जाहि  = ज़िसमे !   न   मोह  = मोह  नही , अहंकार  नही   ! समाय  = है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  भाईयों  इस  भवसागर  से  उनकी  ही  नैय्या  पार  होती  है  ज़िनमे  माया  मोह  नही  है  ! ज़िसमे  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  वासना  आ  जाती  है  वह  फिछड  जाता  है  वही  घुमते  रहता  है  ! जीवन   के  भवंडर  मे  चक्रव्यूह  मे  फसा  घुमता  रहता  है  ! बार  बार  अनेक  योनियो  मे जन्म  लेकर  बार  बार  माया  मोह  के  कारण  लालच  मद  मत्सर  राग  द्वेश  आदी  षडरिपू  से  मार  खाता  रहता  है !   वासना  और  चाहत  का  गुलाम  गुलामी  मे  ही  सुख  धुन्डता है  ! 

कबीर  साहेब  कहते  वही  इस  भवसागर   से पार  हुवे  है  ज़िन्होने  इच्छा  माया  मोह  वासना  तृष्णा  का  रूप  पहचान  लिया  और  इसकी  पारख  करना  सिखा  ! कबीर  साहेब  ने  वो  धर्ममार्ग  बताया  जो  सहज  सरल  जीवन  योग  है ,   ज़िसे  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  कहा  जाता  है  !  जो  सनातन  पुरातन आदिवाशी  आद्यधर्म  है !   विश्व  का  प्रथम  धर्म  है  जो  शिल  सदाचार   समता  ममता  भाईचारा  सत्य  अहिंसा  का  मार्ग  है  ज़िसने  विश्व  की  कल्याणकारी  सिंधु  हिन्दू  नाग  गणराज्य  वेवस्था संस्कृती   का  निर्मांण  किया  ! 

धर्मात्मा  कबिर  उसी समतावादी  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  को अपनी  वाणी  पवित्र  बीजक  में पंधरा वी  शती  मे  फिर  से  बताया  और   सत्यधर्म  पुनरस्थापित  किया  ज़िसे  विदेशी  यूरेशियन  विषमतावादी  वैदिक  ब्राम्हणधर्म ने  कालुशित  किया  था  ! कबीर  साहेब  ने  बताया   विदेशी  यूरेशियन  वैदिक ब्राह्मणधर्म  और  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  अलग  अलग  है  ! मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  मुक्ती  का  मार्ग  है  तो  विदेशी  यूरेशियन विषमतावादी  वैदिक  ब्राह्मणधर्म नर्क  का  द्वार  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती  
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

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