पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 1 : 23
चाचर : 1 : 23
कज्जल वाकी रेख है , अदग गया नहिं कोय !
शब्द अर्थ :
कज्जल = काजल , कालिख, कोयला ! वाकी = उसकी ! रेख = रेखा , रेषा , पहचान ! अदग = बेदाग , अनछुवा ! गया = बचा ! नहिं कोय = कोई नही !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है की माया इच्छा तृष्णा वासना का घर एक प्रकार की कोयले की खान खदान है , जैसे ललाना आँख मे काजल लगाती है सुन्दर और मादक आँख बनाने के लिये और उसकी मोहकता से पुरूष आकार्शित होते है और बिना देखे जा नही सकते अन्देखा नही कर सकते वैसे ही कोयले के धन्धे मे हाथ काले होते है वैसे ही मानव तृष्णा वासना इच्छा मोह माया से बेदाग बच नही सकता ! इस से बचाने का उपाय है धर्म शिल सदाचार का पालन !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी
No comments:
Post a Comment