पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 2
चाचर : 2 : 2
जामें सोग सन्ताप , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
जामें = ज़िसमे , ज़िस कारण , जब भी ! सोग = शोक , दुख , माया, मोह , आसक्ती , वेदना ! सन्ताप = क्रोध , नफरत , अहंकार , घुस्सा , मारपिट , युद्ध ! समुझि = समजो ! मन = अंतकरण , व्हृदय , प्रेम ! बौरा = पागल , गलत !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों अगर तुम्हारे मन में शोक और संताप उठ रहा है तो समजो एसा कोई कार्य तुमसे या अन्य से हुवा है ज़िस कारण तुम्हारा कोई नुक्सान हुवा है या होने वाला है और उसको सोच कर तुम्ह शोक ग्रस्त हुवे जा रहे हो ! या एसा कोई कर्म तुमसे या अन्य से हुवा है ज़िसके कारण तुम्हारा मन चंचल , विचलित हो रहा है ! तुम्हारे अहंकार को चोट पहूची है ! जो तुम चाहते हो वैसा नही हो रहा है ! तब तुम्हारा मन मास्तिक क्रोधित हुवा है तब समजो तुम्हे शांती की जरूरत है ! तब शोक और संताप दुर रख शांती से कारण और निवारण पर सोचने की जरूरत है ! मनस्ताप करने से और काम खराब ना करो ! जरा रुक जावो , धर्म के बारे मे सोचो ! शिल सदाचार क्या है जानो और तब आगे बढो ! जब मन क्रोध भरा हो , अहंकार से भरा हो , नफरत से भरा हो वह खुद को हानी पहूचाता है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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