पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 22
चाचर : 2 : 22
ज्यों आवै त्यों जाय , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
ज्यों = जो ज़हाँ मर्जी चाहे ! आवै = मन मे आवे , मनमाना ! त्यों = वह ! जाय = गलत जगह जाय ! मन बौरा हो = मन बे काबू है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है भाईयों कुछ लोग गलत रास्ते पर चलते है जैसे दारू पिना , जुवा खेलना , वेश्या के पास जाना आदी आदी ! उनका उनके मन पर कोई काबू नही होता है वे अच्छा बुरा में भेद नही कर पाते जब की वे भी जानते है ये अधर्म है गलत है पाप है ! एसा इस लिये होता है क्यू की वो गलत संगत मे पड जाते है ! विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म यह गलत संगत है उसे छोडो और मुलभारतिय हिन्दूधर्म के सुसंगत में आवो तो मन इधर उधर ना भटके !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ संस्थान
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