Wednesday, 26 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 22

पवित्र बीजक  : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 22

चाचर  : 2 : 22

ज्यों  आवै  त्यों  जाय , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

ज्यों  = जो  ज़हाँ  मर्जी  चाहे  ! आवै  = मन  मे  आवे  , मनमाना  ! त्यों  = वह  ! जाय  = गलत  जगह  जाय  ! मन  बौरा  हो  = मन  बे  काबू  है ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  है  भाईयों  कुछ  लोग  गलत  रास्ते  पर  चलते  है  जैसे  दारू  पिना  , जुवा  खेलना  , वेश्या के  पास  जाना  आदी  आदी  ! उनका  उनके  मन  पर  कोई  काबू नही  होता  है  वे  अच्छा  बुरा  में  भेद  नही  कर  पाते  जब  की  वे  भी  जानते   है  ये  अधर्म  है  गलत  है  पाप  है  ! एसा  इस  लिये  होता  है  क्यू  की  वो  गलत  संगत  मे  पड  जाते  है  ! विदेशी यूरेशियन  वैदिक ब्राह्मणधर्म यह गलत  संगत  है  उसे  छोडो  और  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  सुसंगत में  आवो  तो  मन  इधर  उधर  ना  भटके  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ संस्थान 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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