Wednesday, 12 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 8

पवित्र  बीजक :  प्रग्या बोध : चाचर  : 2 : 8

चाचर  : 2 : 8

चित्र  रचो  जगदिश , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

चित्र = विश्व  ! रचो  = निर्मिती  ! जगदिश  = देव  , ईश्वर  ! समुझि  मन  बौरा  हो  = मन  का  पागलपन  है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते है  यह  संसार  किसी  अन्य  देवी  देवता  ईश्वर  ने  नही  निर्मांण  किया  है  !  ज़िस  तत्व  ने  यह  संसार  की  उत्पत्ती  हुवी  है  वह  खुद  निराकार  निर्गुण  अजर अमर   सार्वभौम  सदा  के  लिये  रहने  वाले  चेतन तत्व  राम  से  स्व  निर्मित  है !   उसका  कार्य  है  टूटना जुड़ना !  यही  क्षय  उत्पत्ती  है ! यहाँ  स्थिर  कुछ  भी  नही !   अन्य  कोई  देवी  देवता नही  !   ना  ब्रह्मा  विष्णु  जैसे  कोई  ईश्वर  है  जैसे  की  वैदिक  और  अन्य  बताते  है  ! यह  संसार  और  चेतन  तत्व राम   एक  ही  है  !  उस  चेतन  तत्व का  ना  कोई  चेहरा  है  न  गूण  है ,   वो  केवल  कैवल्य  शिवशक्ती  है  ! माया  मोह  इच्छा  वासना  कामना  लालच  तृष्णा  यह  मन  के  विकार  है !   जब  मन  में  यह  विकार  आते  है  तब  अधर्म  घटित  होता  है  और  उसके  परिणाम  अधर्म  का  कार्य  चक्र  से  और  अधर्म  निर्मांण   होता  है  ! इससे  बचने  का  उपाय  कोई  ईश्वर  देवी  देवता की  मूर्ती  पूजा  आराधना  उपासना  होम  हवन  बली आदी  विकृत  मार्ग  नही  ! मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  शिल  सदाचार  के  मार्ग  से  ही  मन  ही  अशांती और  अधर्म  से  बचा  जा  सकता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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