पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 8
चाचर : 2 : 8
चित्र रचो जगदिश , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
चित्र = विश्व ! रचो = निर्मिती ! जगदिश = देव , ईश्वर ! समुझि मन बौरा हो = मन का पागलपन है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है यह संसार किसी अन्य देवी देवता ईश्वर ने नही निर्मांण किया है ! ज़िस तत्व ने यह संसार की उत्पत्ती हुवी है वह खुद निराकार निर्गुण अजर अमर सार्वभौम सदा के लिये रहने वाले चेतन तत्व राम से स्व निर्मित है ! उसका कार्य है टूटना जुड़ना ! यही क्षय उत्पत्ती है ! यहाँ स्थिर कुछ भी नही ! अन्य कोई देवी देवता नही ! ना ब्रह्मा विष्णु जैसे कोई ईश्वर है जैसे की वैदिक और अन्य बताते है ! यह संसार और चेतन तत्व राम एक ही है ! उस चेतन तत्व का ना कोई चेहरा है न गूण है , वो केवल कैवल्य शिवशक्ती है ! माया मोह इच्छा वासना कामना लालच तृष्णा यह मन के विकार है ! जब मन में यह विकार आते है तब अधर्म घटित होता है और उसके परिणाम अधर्म का कार्य चक्र से और अधर्म निर्मांण होता है ! इससे बचने का उपाय कोई ईश्वर देवी देवता की मूर्ती पूजा आराधना उपासना होम हवन बली आदी विकृत मार्ग नही ! मुलभारतिय हिन्दूधर्म का शिल सदाचार के मार्ग से ही मन ही अशांती और अधर्म से बचा जा सकता है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment