पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर 2 : 14
चाचर : 2 : 14
घर घर नाचेउ द्वार , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
घर घर = ये गुरू से वो गुरू , ये धर्म से वो धर्म विचार आदी ! नाचेउ : भटकाना ! द्वार = घर का द्वार य़ा रास्ता , गली गली ! बौरा = पागल , अशांत !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों मन को स्थिर रखो इधर उधर ना भटकने दो , जब मन इधर उधर भटके तो समजो सही रास्ते पर नही हो सही संगत मे नही हो सही धर्म का पालन नही कर रहे हो सही गुरू नही मिला है जो आपकी तृष्णा को शांत कर दे ! माया मोह इच्छा वासना कामना लालच तृष्णा ये सब द्वार है जो हम द्वार द्वार भटकते है ! सही धर्म और गुरू मित्र आपको धर्म अर्थात शिल सदाचार भाईचार समता ममता का मार्ग बताता है तभी मन में ठहराव आता है वही स्थिरता ,शांती लाने का मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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