पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 3
चाचर : 2 : 3
तन धन से क्या गर्भ सी , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
तन = शरीर ! धन = संपत्ती , पैसा ! क्या गर्भ सी = क्या गर्व करना , क्या अहंकार करना ! मन बौरा हो = मन की मूर्खता है , पागलपन है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों जो लोग शरीर और धन संपत्ती का गर्व करते है वे अहंकारी और मूर्ख है ! क्या शरीर , काया उसकी सुन्दारता तारुण्य जोश सदा के लिये रहता है ? धन संपत्ती शरीर काया तो आनी जानी है , उसका क्या गर्व और अहंकार करना ! ये अहंकार ये गर्व निरर्थक है ज़िसमे धर्म नही ! धर्म अहंकारी नही बनाता ना मर्त्य शरीर का मोह सिखता है ! शिल सदाचार भाईचार समता ममता सिखो और उसका गर्व करो क्यू की ये धर्म है और सदा के लिये सुखदाई है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment