पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 17
चाचर : 2 : 17
ज्यों सुवना ललनी गह्यो , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
ज्यों = ज़िसके ! सुवना = वासना , अच्छा लगना , भाना , तारीफ , गीत ! ललनी = स्त्री ! गह्यो = गया ! मन बौरा = मन पगला गया , बेकाबू हो गया !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों सैय्यम बहुत अच्छी और बडी बात है ! पर स्त्री पर लालच भरी वासना न रखो , जो एसा करता है पर स्त्री पर बुरी नजर रखता है , उसकी तारीफ कर उसके गीत गाता है समजो वह वासना मे अंध हुवा है ! विवेकहीन हुवा है और खुद का ही नुक्सान करने वाला है ! एसा अधर्म कर भला किसी का क्या भला हो सकता है ! यह वृत्ती ज़हाँ नही वहाँ चोच मारने वाले सुवे जैसी है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय , हिन्दुधर्म , विश्वपीठ
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