पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 6
बिन कहगिल की ईँट , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
बिन कहगिल = बिन सुना , बिन अस्तित्व ! ईट = मकान बनाने वाली सामुग्री , ईटे आदी ! मन बौरा हो = मन मूर्ख है, पागल है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है भाईयों जो लोग बिना मजबुत पाया के केवल ईट के उपर ईट रखकर मकान बनाते है और सोचते है पक्का मकान बन गया और निर्विघ्न उसमे रह सकते है वो लोग मूर्ख अथवा पागल ही होंगे ! पकी इट , मजबुत पाया घर के लिये जरूरी है वैसे ही अच्छी सुखद ज़िन्दागी के लिये अच्छा धर्म और और अच्छी पकी संस्कृती जरूरी है जो मुलभारतिय हिन्दूधर्म है और सिंधु हिन्दू संस्कृती है जो शिल सदाचार भाईचार समता ममता का मार्ग है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दुधर्म विश्वपीठ
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