चाचर : 2 : 11
मर्कट मूठी स्वाद की , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
मर्कट = बन्दर ! मूठी = मिठाई ! स्वाद की = स्वाद की = स्वाद भरी ! मन बौरा हो = मान विचालित हो !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है की बन्दर क्या जाने अद्रक का स्वाद ! अद्रक बहुत गुणी पदर्थ , खाने की वस्तु है पर बन्दर के हाथ लग जाये तो उसे इधर उधर ऊछल धुम मचा कर फेक देगा ! उसे बहुत महंगी स्वाद भरी कोई मिठाई दो तो भले वो आपके लिये मुल्यवान है पर बन्दर तो उसका मुल्य जानता नही वो उसके साथ ऊछल कुद का खेल कर बर्बाद कर देगा ! वैसे ही जो लोग धर्म शिल सदाचार का मुल्य नही जानते वे बन्दर की तरह ही है जो आपना अमुल्य मानव जीवन खेल कुद माया मोह अहंकार अग्यान में व्यर्थ गवा रहे है वे पागल ही है समजो !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दुधर्म विश्वपीठ
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