पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 10
चाचर : 2 : 10
अंकुश सहियो सीस , समुझि मन बौरा हो !
अंकुश = गुलामी , लाचारी ! सहियो = सहन कर रहा है ! सीस = सर , पगडी , सन्मान, आत्म सन्मान ! समुझि मन बौरा हो = मन काबु मे न होना , लाचार मन !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है मानव की इज्जत मान सन्मान , आत्म सन्मान का प्रतिक उसकी टोपी , पगडी , सर और सर का ताज होता है ! जब आदमी उसको किसी के कदमो में रख देता है और गुलामी लाचारी स्विकार लेता है अधर्म स्विकार लेता है तब समजो उसने विवेक खो दिया है ! अपना विवेक बुद्धी आत्मसन्मान कभी भी गीरवी ना रखो किसिके गुलाम न बानो , आत्म सन्मान को ठेच पुहचे एसे विकृत संस्कार अस्पृष्यता छुवाछुत ऊचनीच भेदाभेद मानने वाले धर्म संस्कृती को मान्य ना करो ! समता शिल सदाचार आत्म सन्मान ही मानव की पहचान है जो मुलभारतिय हिन्दू धर्म की सिख है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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