पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 1
चाचर : 2 : 1
जारो जग का नेहरा , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
जारो = जलावो , नस्ट करो ! जग का नेहरा = जग की लालच माया मोह तृष्णा इच्छा वासना कामना ! मन = मानव मन जीस पर माया का अधिकार है ! बौरा = पागल , दिवाना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते इस संसार में लोग दुखी क्यू दिखते है इस का कारण ही संसार का मोह है ! संसार के प्रती लगाव , माया तृष्णा ही है ! विरक्त भाव का निर्मांण करो , संसार की आसक्ती ने लोगोंको उसका गुलाम और दिवाना बना दिया ! मन माया मोह वश अहंकारी लालची झूठा मक्कार अधमी चौर लूटेरा पापी हो कर केवल क्षणिक सुख के लिये गलत और अधार्मिक कृत्य करता है और जैसे की अधर्म का फल दुख ही है आगे उसे दुख झेलना पडता है !
कबीर साहेब यहाँ सावधान करते है , जग के प्रती आसक्ती को सहज सरल जीवन योग मार्ग अर्थात मुलभारतिय हिन्दूधर्म पालन से काबू मे रखने की बात करते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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