Thursday, 20 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 16

पवित्र बीजक :  प्रग्या बोध :  चाचर :  2 : 16

चाचर  : 2 : 16 

घर  घर  खायो  ड़ाँग  , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

घर  घर  =  द्वार  द्वार  भतकना  : खायो  = अन्न  और  अन्य  वस्तु  के  लिये  ! डाँग  = कुत्ता  ! मन  बौरा  हो  = मन  अस्थिर  है  !

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते  है  भाईयों  अगर  कोई   व्यक्ती  कुत्ते  की  तरह घुम  रहा  है  तो  समजो  वह  अस्थिर  और  चंचल  है  वह  एक  घर  के  लोग  ,अन्न  बर्ताव  से  खुश  नही  है  वैसा  ही  मानव  जब  मोह  माया  के  कारण  अस्थिर  मन  का  हो  जाता  है  तब  अपना  विवेक  खो  देता  है ! कबीर  साहेब  आत्म  संतुष्ठी  और  अपने   भीतर  झाकना  पर  विशेष बल  देते  है  , भटकाव  का  कारण  ही  अतृप्ती  है  वासना  तृष्णा  है  वर्णा  कुत्ता  क्यू   द्वार  द्वार  भटकता  ? वैसे  ही  अतृप्त  मानव  कुत्ते  की  तरह  माया  मोह  में  पड  इच्छा  तृष्णा  के  पिछे  विवेक  खो  कर  भटकता  रहता  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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