पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 9
चाचर : 2 : 9
काम अन्ध गज बशि परे , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
काम = कामना , वासना , इच्छा , तृष्णा , लैंगिक इच्छा ! अन्ध = अन्य कुछ न शुझने वाला , इच्छा मे पागल हुवा ! गज = हाथी ! बशि परे = नियंत्रण के बाहर , कुछ नही सुनता ! मन बौरा हो = मन विचालित हुवा , पगला गया !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों जैसा मदमस्त हुवा हाथी केवल लैंगिक सुख , इच्छा पूर्ती के लिये हस्थिनी चाहता है और अन्य किसी भी बात से संतुष्ठ नही होता किसी की कुछ नही सुनता ना माहुत के आदेश का पलान करता है वैसे ही इच्छा तृष्णा के कारण मन किसी की कुछ नही सुनता उस समय केवल धिरज और संयम से ही काम लिया जा सकता है और इसकी शिक्षा मुलभारतिय हिन्दू धर्म के शिलाचरण से ही संभव होता है शिल का धर्म ही मन के विकार दुर करता है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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