Monday, 24 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 20

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : चाचर  : 2 : 20

चाचर  : 2 : 20

अन्त  बिलैया  खाय , समझु  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

अन्त  = अन्त्तता  , आखिर  में  , मृत्यू  पर  ! बिलैया = बिल्ली  ! खाय  = मार  देना ,  खाना   !  

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  यह  जीवन  लालच  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  वासना भरा  है  जैसे  ये  सभ  चुहे   बिल्ली  का  खेल  हो ! ज़िस  प्रकार  बिल्ली  चुहे  को  पकडने   के  बाद आसनी  से  एक  दम  मारती  नही  बिच  बिच  में  उसे  छोड  देती  है  ताकी  वो  थोडा  भागे , फिर  उसे  बिल्ल  पकडती  है  , यह  चुहे  बिल्ली  का  खेल  बहुत  देर  तक  चलते  रहता  है और  खेल  खेल  कर  अंत  में  बिल्ली  चुहे  को  मार  कर  खा  जाती  है  वैसे  ही  माया  जीवन के  साथ  खेल  करती  है  और  अंत  में  जीवान  कोही  खा  जाती  है  यहाँ  तात्पर्य  है  अनंता  अधर्म  आप  पर  हावी  हो  जाये  तो  जीवन  व्यर्थ  ही  गया  समाजो  ! इस  लिये  हमेशा  सतर्क  रहो  , जागृत  रहो  शिल  सदाचार  के  मार्ग  से  ना  भटको  माया  मोह  की  बिल्ली  को  नजदिक  ना  आने  दो  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दुधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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