Saturday, 8 November 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 4

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  चाचर  :  2 : 4

चाचर  : 2 : 4 

भस्म  कीन्ह  जाके  साज  , समुझि  मन  बौरा  हो  ! 

शब्द  अर्थ  : 

भस्म  = राख  ! कीन्ह  = किया  ! जाके  = ज़िसके  ! साज  = शरीर  ! समुझि = समज  ले  ! मन  बौरा  हो  ! मन  दुखी , पागल  है  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है  जो  लोग  अपने  अद्भूत शरीर  को  जानबुझ  कर  हानी  पूहचाते  जैसे  की  नेशेड़ी  , दारूबाज ,  गंजेडी ,  घूटका  खाने  वाले  तंबाकु  बीडी  सिगारेट  आदी  के  शौक करने  वाले  वेश्या  स्त्री   गामी  ये  सभी  अपने  शरीर  का  दुरपयोग  कर  हानी  पहचाते  है  !  ये  सब  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा वासना   के  गुलामी  के  कारण  होता  है  इन  से बचने  के  लिये  ही  धर्म  का  उपदेश  है  शिल  सदाचार  का  मार्ग  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  !  वही  मार्ग  परमात्मा  कबीर  अपनी  वाणी  पवित्र  बीजक  में  बताते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान  , शिवशृष्टी

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