पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 4
चाचर : 2 : 4
भस्म कीन्ह जाके साज , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
भस्म = राख ! कीन्ह = किया ! जाके = ज़िसके ! साज = शरीर ! समुझि = समज ले ! मन बौरा हो ! मन दुखी , पागल है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है जो लोग अपने अद्भूत शरीर को जानबुझ कर हानी पूहचाते जैसे की नेशेड़ी , दारूबाज , गंजेडी , घूटका खाने वाले तंबाकु बीडी सिगारेट आदी के शौक करने वाले वेश्या स्त्री गामी ये सभी अपने शरीर का दुरपयोग कर हानी पहचाते है ! ये सब माया मोह इच्छा तृष्णा वासना के गुलामी के कारण होता है इन से बचने के लिये ही धर्म का उपदेश है शिल सदाचार का मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म ! वही मार्ग परमात्मा कबीर अपनी वाणी पवित्र बीजक में बताते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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