पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 7
चाचर : 2 : 7
कालबूत की हस्तिनी , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
कालबूत की हस्तिनी = मदमस्त हस्तिनी ! किसी की पर्वा न करने वाली ! मन बौरा हो = मन पागल !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है ज़िस प्रकार मस्ती में आई हस्तिनी और हस्थी किसी की पर्वा नही करते यहाँ तक की पालतु हाथी अपने माहत यानी उसकी देखभाल करने वाले व्यक्ती के आदेश का भी पालन नही करते कभी कभी उसी को मार देते है उसी प्रकार मोह इच्छा वासना कामना लालच माया मानव मन को उस मदमस्त हाथी जैसे बना देती है ! जो किसी के बस मे नही रहता ! और तो और खुद की भी पर्वा नही करता उसे हाथी पगला गया कहते है ! यहाँ केवल स्वधर्म और सतधर्म ही अंकुश रख सकता है ! बडा कठीण होता है ! शिल सदाचार का पालन करना जरूर है ! यही समय होता है मानव जन्म के य़तार्थ को क्रितार्थ बना देने की ! मानव जीवन का यही उद्देश है चेतन तत्व राम को समजनेकी ! पगलाये मन को धर्म आचरण से काबू मे रख कर निराकार निर्गुण राम के दर्शन करने की अवस्था ही निर्वांण है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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