Friday, 31 October 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 21

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  : चाचर  : 1 : 21

चाचर  : 1 : 21

दृष्टी  परे  उन काहु  न  छाड़े , कै  लीन्हो  एकै  धाप  ! 

शब्द  अर्थ  : 

दृष्टी परे   =  आँख  से  देखा  !  उन  = उसे  ! काहु  न  छाड़े  = किसी  को  नही  छोडाती  ! कै  = कितने ! लीन्हो  एकै  धाप  = एक  ही  घास  में  चबा जाना  ! 

प्रग्या  बोध  :

परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है की  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  वासना  बहुत  ही  फूर्तिली  है  किसी  पर  दृष्टी  पडी  नही  की  वो  उसे  चाहती  है  , दृष्टी  मे  आने  वाली  हर  चिज  को  वो  बडे  लालच  भरी  निगाहे  से  देखती  है  और  एक  झपटे मे  उसे  हाँसिल  करना  चाहती  है  निगाहे  इतनी  कातिल  होती  है  की  एक  ही  घास  मे  ग्रास मे  उसे  निगलना  चाहती  है  !  कबीर  साहेब  तृष्णा  का  रूप  और  उसके  काम  का  तारिका  बताते  है  ताकी  उसके ग्रास  से  बचा  जा  सके  ! 

धर्मविक्रमादित्य  कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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