चाचर : 10 : 1
अनहद धुनि बाजा बजै , श्रवण सुनत भौ चाव !
शब्द अर्थ :
अनहद = बिना बजाये ! धुनि = ध्वनी , आवाज ! बाजा = यन्त्र ! बजै = बजता है ! श्रवण = शरीर के कान ! सुनत = सुनते है ! बहुत चाव = मन पूर्वक !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है इस शरीर की बनावट बहुत ही अद्भूत है ! जब तक ज़िन्दा है शरीर मे एक एसी आवाज गुंजती रहती है ज़िसको कोण निकाल रहा है कोई नही जानता ! पर कान खुद सुनता है ! लोग इसे मन की आवाज अंतर आत्मा की आवाज , वृदय की आवाज कहते है ! यही आवाज माया की आवाज भी है ! मोह की आवाज भी है और इच्छा तृष्णा की आवाज भी ! इस अनहद आवाज को ठिक से पहचानो जानो यह माया मोह इच्छा तृष्णा की आवाज है या चेतान तत्व राम ने दी हुवी प्रग्या बोध की आवाज ! धर्म की आवाज या अधर्म की आवाज ! सत्य की आवाज या असत्य की आवाज ! ग्यानी वही है जो इसके शुक्षम भेद को तुरंत पहचान लेते है और अधर्म पाप से बचते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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