Saturday, 18 October 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 7

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 1 : 7

चाचर  : 1 : 7

गर्भ  गहेली  गर्भ  ते , उलटि  चली  मुसकाय  ! 

शब्द  अर्थ  : 

गर्भ  गहेली  = गर्भ  का  कारण  , इच्छा , तृष्णा  , माया  , मोह  ! गर्भ  ते  = उस  शरीर  मे  ! उलटि  = विपरित  ! चली  मुस्काय  = आनन्द  लेना  ! 

प्रग्या  बोध : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  मे  कहते  है  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  जन्म  का  कारण  है  और  जन्म  से  ही  माया  मोह  इच्छा  तृष्णा  शरीर  से  जुड  जाती   है  ! इच्छा  नही  तो  जन्म  नही  !  जन्म  नही  तो  इच्छा  नही !  इच्छा  से  जुडे  शरीरिक  कर्म  दोष  नही  , पाप  नही  पुण्य  नही  ,जन्म  मरण  का  भवचक्र  नही  ! इच्छा  एसे  कारण  उत्पन्न  करती  है  की  कार्य  कारण  भाव  मे  मानव  उलझकर  रह  जाता  है  और  इच्छा  खुश  होती  है  , मानव  को   संसारिक  दुखो   मे  देख  कर  मन्द  मन्द  मुस्कुराती  रहती  है  क्यू  की  उसकी  संगत  का  यही  परिणाम है  ! इच्छा  से  निजात  छुटकार  केवल प्रग्या  बोध  से  संभव  है  !  वही  मार्ग  सनातन  पुरातन  आद्यधर्म   मुलभारतिय  हिन्दूधर्म   का  शिल  सदाचार  का  मार्ग  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम  
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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