पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 1 : 7
चाचर : 1 : 7
गर्भ गहेली गर्भ ते , उलटि चली मुसकाय !
शब्द अर्थ :
गर्भ गहेली = गर्भ का कारण , इच्छा , तृष्णा , माया , मोह ! गर्भ ते = उस शरीर मे ! उलटि = विपरित ! चली मुस्काय = आनन्द लेना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद मे कहते है माया मोह इच्छा तृष्णा जन्म का कारण है और जन्म से ही माया मोह इच्छा तृष्णा शरीर से जुड जाती है ! इच्छा नही तो जन्म नही ! जन्म नही तो इच्छा नही ! इच्छा से जुडे शरीरिक कर्म दोष नही , पाप नही पुण्य नही ,जन्म मरण का भवचक्र नही ! इच्छा एसे कारण उत्पन्न करती है की कार्य कारण भाव मे मानव उलझकर रह जाता है और इच्छा खुश होती है , मानव को संसारिक दुखो मे देख कर मन्द मन्द मुस्कुराती रहती है क्यू की उसकी संगत का यही परिणाम है ! इच्छा से निजात छुटकार केवल प्रग्या बोध से संभव है ! वही मार्ग सनातन पुरातन आद्यधर्म मुलभारतिय हिन्दूधर्म का शिल सदाचार का मार्ग है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment