पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 1 : 3
चाचर : 1 : 3
शोभा अदभुत रूप वाकी , महिमा वरणि न जाय !
शब्द अर्थ :
शोभा = दिखना , सजावट ! अदभुत = अद्भूत , अचंभीत करने वाली ! रूप वाकी = रूप सुन्दरी ! महिमा = किर्ती ! वरणि न जाय = वर्णन किया नही जा सकता !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद मे माया की शोभा , दिखावट , सजावट अद्भूत अचंभीत करने वाली है बातते है इसके मोहक रूप की बडी चर्चा है उसका वर्णन करना बहुत मुष्कील है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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