पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 1 : 20
चाचर : 1 : 20
एक ओर सुर नर मुनि ठाढ़े , एक अकेली आप !
शब्द अर्थ :
एक ओर = एक तरफ , एक पलडे में ! सुर = राजे , महाराजे , सुरवीर ! नर = सर्व सामान्य लोग ! मुनि = सन्यासी , ग्यानी ! ठाढ़े = बिठाये , खडे किये ! एक अकली आप = एक माया , मोहनी , तृष्णा , इच्छा सब पर भारी !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में माया मोह तृष्णा , इच्छा का पडला कितना भारी है यह समजाते हुवे कहते है तराजू के एक फलडे में सभी सामान्य नर नारि , ग्यानी मुनि , राजा महारजा सभी बीठावे तोभी एक अकेली तृष्णा माया मोह इच्छा वासना का पलडा तबभी भारी है ! कोई माया को ज़ित नही सकता जब तक कोई इंसान शिल सदाचार का धर्म पालन नही करता !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दुधर्म विश्वपीठ
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