Thursday, 30 October 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 20

पवित्र  बीजक  :  प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 1 : 20

चाचर  : 1 : 20 

एक  ओर  सुर  नर  मुनि  ठाढ़े , एक  अकेली  आप  ! 

शब्द  अर्थ  : 

एक  ओर   = एक  तरफ  , एक  पलडे  में  ! सुर  = राजे  , महाराजे   , सुरवीर !  नर  = सर्व  सामान्य  लोग  ! मुनि  = सन्यासी  , ग्यानी  ! ठाढ़े  = बिठाये  , खडे  किये  ! एक अकली आप   = एक  माया  , मोहनी   , तृष्णा  , इच्छा  सब  पर  भारी   ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  माया  मोह  तृष्णा , इच्छा  का  पडला  कितना  भारी  है  यह  समजाते  हुवे  कहते  है तराजू  के  एक  फलडे  में सभी  सामान्य  नर  नारि  , ग्यानी  मुनि  , राजा  महारजा  सभी  बीठावे  तोभी  एक अकेली तृष्णा  माया  मोह  इच्छा  वासना  का  पलडा  तबभी    भारी  है  ! कोई  माया  को  ज़ित  नही  सकता  जब  तक  कोई  इंसान  शिल  सदाचार  का  धर्म  पालन  नही  करता  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दुधर्म विश्वपीठ 
कल्याण  , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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