बसंत : 11 : 7
ताकर जो कछु होय अकाज , ताहिं दोष नहिं साहेब लाज !
शब्द अर्थ :
ताकर = तुम्हारे साथ ! जो कछु = जो कुछ ! होय अकाज = अकारण होना ! ताहिं = उसका ! दोष नहिं साहेब लाज = उसमे चेतान राम का दोष नही !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत के इस पद में बाताते है की संसार की निर्मिती एक तत्व चेतन राम से हुवी है वो सब में है और हम सब उसमे ! वह निराकार निर्गुण अमर अजर सर्वव्यापी सार्वभौम मालिक परमात्मा है उसने निर्जीव सजीव सब बनाया वो बडा न्यायी और दयालू है उसके नियम सब एक जैसे लागु होते है वह भेद भाव नही करता ज़िसे शृष्टी के नियम कहते है सजीव प्राणी को कुछ विशेषता दी है जैसे चालना फिरना , ग्यानेंन्द्रिय , मन और बुद्धी आगे की सोच कल्पना आदी आदी इसका उपयोग खुद हर एक प्राणी निच्छित करता है और स्वायम ही उसके कार्य कारण भाव के नियम से परिणाम को बाध्य है इसका दोष उस चेतन तत्व परमात्मा राम को नही जाता न राम इसके परिणाम से लज्जित होता है ! उसने खुद कर भला सो हो भला नियम बनाया है ज़िसे धर्म कहते है प्रग्या बोध कहते है उसका सद बुद्धी से पालन करो दुखद परिणाम से ज़िते जी मुक्ती को ही मुक्ती , मोक्ष कहते है ! जीवन मरण के भवचक्र में मानव जन्म दूर्लभ है इस लिये हर काम सोच समझकर करो ! परमात्मा को दोष ना दो !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतरां
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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