पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 1 : 13
चाचर : 1 : 13
खेलनहारा खेलि हैं , बहुरि न वाकी दावैं !
शब्द अर्थ :
खेलनहारा = परमात्मा चेतन तत्व राम ! खेलि हैं = खेलता है ! बहुरि = बाहरी ! न = नही ! वाकी = उसकी ! दावैं = दावपेच !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में बताते है जो चेतन तत्व राम है उसकी अपनी बाहरी कोई विभिन्न चाल नही ! तुटना जुड़ना यही उसकी गती है ! वह निराकार निर्गुण अविनाशी किसी को न कोई दुख देता है न सुख देता है न किसी से बदला लेता है न अहंकार करता है जब की वही सब का निर्माता और मालिक है ! उसकी गती इच्छा आप के समझ के परे है ! वो कब क्या करे उसी की शोभा है !
वह केवल आप मे चेतना स्वरूप है जो कुछ करते हो तुम स्वयं करते हो ग्यान इन्द्रिय का सदपयोग य़ा दूर्पयोग आप की प्रग्या पर निर्भर करता है ! धर्म अधर्म का पालन कर सुख या दुख का निरधारण तुम खुद करते हो इस लिये शिल सदाचार का मुलभारतिय हिन्दूधर्म का पालन करो ! विकृत अधर्म विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद मनुस्मृती त्याज्य है , अहितकारी है , पाप है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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