Thursday, 23 October 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 1 : 13

पवित्र बीजक : प्रग्या  बोध  :  चाचर  : 1 : 13

चाचर  : 1 : 13 

खेलनहारा  खेलि  हैं , बहुरि  न  वाकी  दावैं  ! 

शब्द  अर्थ  : 

खेलनहारा  = परमात्मा  चेतन  तत्व  राम  ! खेलि हैं   = खेलता  है   ! बहुरि    = बाहरी  ! न  = नही  ! वाकी  = उसकी  ! दावैं  = दावपेच  ! 

प्रग्या  बोध  : 

परमात्मा  कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  बताते  है   जो  चेतन  तत्व  राम  है  उसकी  अपनी  बाहरी  कोई  विभिन्न  चाल  नही  ! तुटना जुड़ना  यही  उसकी  गती  है  !  वह  निराकार  निर्गुण  अविनाशी  किसी  को  न  कोई  दुख  देता  है  न  सुख देता  है  न  किसी  से  बदला लेता  है  न  अहंकार  करता है  जब  की  वही  सब  का  निर्माता  और  मालिक  है  ! उसकी  गती इच्छा  आप   के  समझ के  परे  है  !  वो  कब  क्या  करे  उसी  की  शोभा  है !  

वह  केवल  आप  मे  चेतना  स्वरूप   है  जो  कुछ  करते  हो तुम  स्वयं करते  हो  ग्यान  इन्द्रिय  का  सदपयोग य़ा  दूर्पयोग  आप  की  प्रग्या   पर  निर्भर  करता है  ! धर्म  अधर्म  का  पालन  कर  सुख  या  दुख  का  निरधारण  तुम  खुद  करते  हो  इस  लिये  शिल  सदाचार  का  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  का  पालन  करो  ! विकृत  अधर्म  विदेशी  यूरेशियन  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  वेद  मनुस्मृती त्याज्य  है  , अहितकारी  है , पाप  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू  नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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