पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 12 : 1
बसंत : 12 : 1
हमरे कहलक नहिं पतियार , आप बूडे नर सलिल धार !
शब्द अर्थ :
हमरे कहलक = हमारी बात , धर्म , सुझाव ! नहिं पतियार = नही पटती , ठिक नही लगती ! आप बूडे = आप खुद का नुक्सान करते हो ! नर = हे मानव ! सलिल धार = नदी के किनारे की धार !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत बारह के प्रथम पद में ही बताते है भाईयों मै जो धर्म बताता हूँ वो सनातान पुरातन है आद्य मानव धर्म है , कल्याण का मार्ग है शिल सदाचार बंधुत्व का मार्ग है सहयोग और सहज जीवन का मार्ग है , जीवन जीने का सही सरल मार्ग है एक दुसरे को मदत करना उत्तम धर्म है मै वही कर रहा हूँ भाईयों जीवन के इस प्रवाह में तुम ड़ूब रहे हो , तुम्हारा खुद का नुक्सान हो रहा है तुम अधर्म की नाव पर सवार हो जहाँ छेद ही छेद है इस गलत विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्मी विकृत नाव को छोडो और सही और अच्छी नाव मे सवार हो नही तो अधर्म के बोज से कुकर्म से तुम्हारा ड़ूबना तय है निच्छित है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतरां
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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