पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 1 : 4
चाचर : 1 : 4
चन्द्र बदनि मृगलोचनी , माया बुन्दका दियो उधार !
शब्द अर्थ :
चंद्र बदनि = चन्द्र जैसा सुन्दर मुखडा और चन्दकोर यह सुन्दर स्त्री के लिये उपमा है ! मृगलोचनी = मृग या हरिण जैसे बडे बडे आँखो वाली भी सुन्दर नयन वाली स्त्री के लिये उपमा है ! माया = इच्छा , तृष्णा , कामना , वासना ! बुन्दका दियो उधार = बुन्द, शरीर से पैदा , उत्पन्न हुवी !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद मे माया , इच्छा , तृष्णा वासना को एक मोहक मन भावन , अती सुन्दर स्त्री की संसार मे जो कल्पना की जाती है जैसे चन्दकोर , गोल पूर्णीमा का चन्द्र जो सब को प्यारा लगता है वह स्त्री ज़िसकी आँखे चपल हिरणी जैसे बडे बडे और चंचल कामनिय है हर किसी को अपनी और आकार्षित करती है और उसके लालसा प्यार चाहत मे दिवाना कर देती है ऐसी ही इच्छा तृष्णा माया है जो ये मानव शरीर है उसी से उत्पन्न हुवी है और उसी को मोहित कर उसी का शोषण करती है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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