पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 12 : 7
बसंत : 12 : 7
कहहिं कबीर नर किया न खोज , भटकि मुवा जस बन के रोझ !
शब्द अर्थ :
कहहिं कबीर = कबीर का कहना है ! नर = मानव ! किया न खोज = मानव समझ नही पाया ! भटकि मुवा = मूर्ख यहाँ वहाँ भटक रहा है ! जस = ज़िस प्रकार ! बन के रोझ = बन मे उड रहे रूई जैसे !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत बारा के अंतिम पद में कहते है मानव ने बहुत सारी खोज किये है , वैग्यानिक उपक्रम खोजे है बनाये है विभिन्न धर्म संप्रदाय मत पंथ भी बनाये पर वो परमात्मा खोज नही पाया क्यू की परमात्मा खोजा नही जाता वह पंच इन्द्रिय और मन परे है न उसकी कल्पना की जा सकती है न इन्द्रिय उसे जान सकते है क्यू की वो निराकार निर्गुण अमर सर्व व्यापी सर्वत्र सार्वभौम एकमात्र मालिक कर्ता धरता है ! उसने मानव को कुछ हदे दी है उसके भीतर ही उसकी खोजे रहती है पर तब भी मूर्ख मानव जंगल मे ज़िस प्रकार रूई इधर उधर ऊडते रहती है वसे ही मानव परमात्मा की खोज में निरर्थक भटकता रहता है इसका ही फायदा कुछ लालची झूठे ढ़ोंगी जैसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण धर्मी पोंगा पंडित पुजारी उठा रहे है और होमबली सोंमरस , ज़नेऊ ऊचनीच भेदाभेद अस्पृष्यता विषमाता शोषण के अधर्म को धर्म बता रहे है और पत्थर की मुर्ती पूजा अवतार प्राण प्रतिष्ठा आदी से मूर्ख बना रहे है ! वो चेतन तत्व राम सत्य शिल सदाचार भाईचारा के मुलभारतिय हिन्दूधर्म के आचरण मार्ग से ही जाना जा सकता है ! वही मार्ग परमात्मा कबीर बताते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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