Tuesday, 30 September 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Basant : 11 : 6

पवित्र  बीजक  : प्रग्या  बोध  :  बसंत  : 11 : 6

बसंत  : 11 : 6 

जो  जेहिँ  मन  से  रहल  आय , जिव  का  मरण  कहु कहाँ  समाय  ! 

शब्द  अर्थ  : 

जो  जेहि  = जो  जैसा  , अगर ! मन  मे  रहल  आय  = मन  चाहे  जैसा  हो  ! जीव  का  मरण  = सजीव  का  मृत्यू  ! कहु   कहाँ  समाय  = मृत्यू  कहाँ  रहता है  !

प्रग्या   बोध  : 

परमात्मा  कबीर  बसंत  के  इस  पद  मे  सजीव  का  शरीर  और  मन  को  स्पस्ट  करते  हुवे  बताते  है  भाईयों   इस  शृष्टी  का  निर्माता  रचियता  , परमपिता  चेतान  तत्व  राम  है  और  सारी  चर  अचर  दृष्य  अदृश्य  वस्तु  उसी  की  निर्मिती  है  और  उसी मे  समाहित  होती  है  विलिन  होती  है  उसी  से  उदय  और  उसी  मे  समापन  होता  रहता है  चेतन   तत्व  राम  निराकार  निर्गुण  अविनाशी   अमर अजर  सार्वभौम  है  ! मन  की  निर्मिती  भी  मानव  या  सजीव  के  ग्यानेन्द्रिय  से  ही  हुवी  है  जीव  का  मृत्यू  यानी  मन  का  भी  समापन  है  और  ग्यानन्द्रिय  से  मन  की  उत्पती  होने  के  कारण  मन   मे  जो  चाहत  इच्छा  मोह  माया  तृष्णा  का  निर्मांण  भी  मानव या  जीव   के  बस मे  होता  है  गलत  इच्छा  अधर्म  है  तो  अच्छी  इच्छा  धर्म  है  जो  शिल  सदाचार  है  इस  लिये  अच्छा  और  बुरे  का  चयन  और  उसके  परिनाम  यानी  फल  भी  जीव  ही  निर्धारित  करता   है  चाहे  वे  ततकाल  हो  य़ा  कालांतर  से  !  

जहाँ  चेतन  तत्व  परमात्मा  राम  जहाँ  काबिर साहीब  विराजमान  है  वह  मोक्ष  की  अवस्था  सब  के  लिये  संभव  है  और  वो  मार्ग  भी  कबीर  साहेब  स्वायम  उनकी  वाणी  पवित्र  बीजक  मे  बताते  है  जो  शिल  सदाचार  भाईचारा  समाता  ममाता  का  सत्य  धर्म  विचार  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  है  ! 

कबीर  साहेब  मन  के  उत्पन्न  विकार  से  दुर  रहने की  शिक्षा  देते  है  ! 

धर्मविक्रमादित्य   कबीरसत्व परमहंस 
दौलतरां
जगतगुरू   नरसिंह  मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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