पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 11 : 1
बसंत : 11 : 1
शिवकाशी कैसे भई तुम्हारि , अजहूँ ही शिव लेहु विचारि !
शब्द अर्थ :
शिवकाशी = वाराणशी , काशी , उत्तर प्रदेश का गंगा किनारे का प्रसिद्ध नगर ! कैसे = किस प्रकार ! भई = हुवी ! तुम्हारि = पंडो की ! अजहूँ ही = आज ही ! शिव = आदिवाशी भूतनाथ , शंकर , महादेव , लोकनाथ , पशुपतीनाथ आदी नामोसे जानेवाला मुलभारतिय हिन्दूधर्मी महापुरुश ! लेहु विचारि = जानकारी लेते है पुछते है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत ग्यारह के प्रथम पद में ही काशी अर्थात वाराणशी जो गंगा किनारे बसा मुलभारतिय हिन्दूधर्मी , बौधधर्मी जैनधर्मी आदी का एक पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है और विश्व का पहला बडानगर माना जाता है ज़िसके किनारे हिन्दू लोग मृत्यशरीर दाह संस्कार कारते है गंगा अस्थी विसर्जित करने भारत भर से आते है जहाँ बुद्ध ने पहला धम्मचक्र प्रवर्तित किया , राजा राम के पूर्वज ने दाह संस्कार मे सेवा दी ज़िस नगरी की मिलकियत मुलभारतिय राजा डोंम की थी जो निराकार निर्गुण चेतन तत्व ग्यानी थे और ऊँहोने ही ये ग्यान विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्मी बालाक आदी शंकाराचार्य को दिया उस डोम राजा ने ही ग्यानपिंड शिव की स्थापना काशी मे की थी वो मंदिर वो स्थल वो घाट वो डोंम शिव की मोक्षवाली मानवकल्याण वाली नगरी ज़िसे शिवकाशी भी कहाँ जाता है वहाँ विदेशी यूरेशियन वैदिक होमहवन करने वाले गाय घोडे की बली देनेवाले और उनके होम अग्नी से उनके देवी देवता सशरिर बलातकारी देव इन्द्र , सोम , रुद्र , ब्रह्मा प्रगट होते है इच्छित वरदान देते है कहने वाले देश के दुष्मन जाती वादीवर्ण वादी छुवाछुतवादी अस्पृष्यतावादी विदेशी पांडे पुजारी कैसे घूसे यह जानना जरूरी है कहते है परमात्मा कबीर ! इन विदेशी लोगोने जो वाराणशी काशी के मन्दिर मठ आदी पर अवैध कबजा किया है उसे मुक्त करो यही बात कबीर साहेब यहाँ इंगित करते है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतरां
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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