पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : बसंत : 10 : 9
बसंत : 10 : 9
चंचल मन के अधम काम , कहहिं कबीर भजु राम नाम !
शब्द अर्थ :
चंचल मन = अस्थिर मन ! अधम काम = धर्म विरुद्ध कार्य ! कहहिं कबीर = कबीर कहते है ! भजु राम नाम = चेतन तत्व परमात्मा , स्वराम !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर बसंत दस के इस अंतिम पद में मानव का मन जो सभी कार्य को प्रेरित करता है उसका स्वभाव बताते हुवे कहते है की मानव मन बहुत ही चंचल और अस्थिर होता है पल पल मे यहाँ वहाँ भटकता है और माया मोह लालच झूठ अहंकार हत्या आदी किसी भी अधर्म या गलत कार्य को वो तब तक गलत य़ा अधर्म नही मानता जब तक उसे प्रग्या बोध का दर्शंन नही होता यह धर्म ग्यान तभी प्राप्त होता है जब मानव स्वराम अर्थात स्व में बसे चेतन तत्व निराकार निर्गुण अमर अजर परमात्मा राम अर्थात राम के विरुद्ध मर्त्य या मरा की अवस्था विचार मन उत्पन्न नही होता ! जब मानव मरे मानव शरीर को देखता है तब उसे क्षणभर के लिये खुद भी मर्त्य या मरण को प्राप्त होने वाला है यह बोध आता है वह राम या परमात्मा नही तो एक सामान्य मर्त्य मानव है ये ग्यान को स्वयम में स्वराम ही निर्मांण कर सकता है और इस के लिये शिल सदाचार का धर्म मार्ग मुलभारतिय हिन्दूधर्म मार्ग के शिवाय कोई रास्ता नही ! इस शिल सदाचार का धर्म कबीर साहेब ने फिर से प्रस्थापित किया ज़िसे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण अधर्म और विकृती ने आपनी जाती वर्ण वादी भेदभाव विषमता शोषण अस्पृष्यता छुवाछुत अमानविय वैदिक मनुस्मृती विचार से तहस नहस किया था और अधर्म को धर्म बता रहे थे ! कबीर साहेब ने सत्य को फिर से स्थापित किया !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतरां
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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